योग के विभिन्न आयामों में इन्द्रिय निग्रह एवं मनोनिग्रह की बहुत अहम भूमिका हमारे यौगिक जीवन में रही है। हमारी इंद्रियाँ अपने अनुभवों की सूचना निरंतर मन को पहुँचाती हैं । जहाँ मन इनकी छंटनी बुद्धि एवं विवेक के द्वारा करता है । जैसे उपजाऊ जमीन को तैयार करने के लिए हमेशा मोथे को निकालना पड़ता है , ठीक उसी प्रकार प्रतिदिन साक्षी भाव से अपनी अभिव्यक्तियों का अवलोकन एवं अनुपयोगी सूचनाओं का निष्कासन मनोनिग्रह (दांती) एवं इन्द्रिय निग्रह की प्रक्रिया द्वारा निरंतर करना चाहिए ।
क्योंकि सूचनाएं कभी बंद नहीं होतीं….. सोते , जागते, चेतन , अचेतन अवस्था में चलती रहती हैं और हमारे मानस पटल पर इनकी छाप छोड़ती जाती हैं । परिणाम स्वरूप चाही – अनचाही सूचनाओं का भंडारण मस्तिष्क में होता रहता है । इन सबका सीधा प्रभाव हमारी कार्य क्षमता पर पड़ता है और अनगिनत मनोकायिक समस्याओं को जन्म देता है । यहीं पर निग्रह की बात आती है ।
जीवन को शांतिपूर्ण एवं रचनात्मक दिशा प्रदान करने के लिए इन पर नियंत्रण आवश्यक है जिसे अनुशासन के द्वारा किया जा सकता है । अपने मन को अनुशासित करना या नियंत्रित करना एक दिन का काम नहीं अपितु निरंतर प्रयास एवं अभ्यास की प्रक्रिया है जिसे साक्षी भाव से युक्त हो कर ही किया जा सकता है :—श्रीमदभागवत गीता में भी श्री कृष्ण जी ने अर्जुन को यही शिक्षा दी है कि मन को अभ्यास के द्वारा ही वंश में किया जा सकता है।
सं. योग प्रिया ( मीना लाल )