जीवन की घटनाओं का अनुभव एवं मन पर उनके प्रभावों की अनुभूति हैं तो प्रकृति प्रदत्त किन्तु अनुभव का स्वरूप वाह्य है, जबकि अनुभूति का संबंध हमारे हृदय के आंतरिक धरातल से है।
अनुभव पर हमारा वश नहीं क्योंकि वह बाहरी घटनाओं पर आधारित है परन्तु अनुभूति के दुष्परिणामों का रूपांतरण सुलभ है और वो है “योग” के विभिन्न आयामों का अनुकरण करके।
विगत वर्ष में जब से कोरोना रूपी वैश्विक महामारी के संक्रमण का बादल गहराया है, हमने उनका अनुभव एवं उनसे जुड़ी वेदना की अनुभूतियों को बहुत गहरे तक महसूस किया है।….इस पूरे काल में एक ही तथ्य सामने उभर कर आया कि पूरी कायनात एक दिव्य शक्ति के अधीन है जो हर पल हमारे साथ है:—-
अनुभव :— अप्रत्याशित घटनाओं का घटित होना
— विपरीत परिस्थितियों का सामना
— समग्र प्रकृति रुपांतरित होने को आतुर
— मानव जाति असहाय, मानों पिंजड़े में बंद कर ताला मार दिया गया हो, बेबस , किंकर्तव्यविमूढ़
— पशु पक्षी स्वछंद , प्रफुल्लित
— नदियां निर्मल , आह्लादित
— वातावरण कोलाहल मुक्त- नि: शब्द
— मंदिर , गुरुद्वारे , मस्जिद तथा गिरजाघरों में प्रवेश निषेध का बड़ा सा पट्टा लगा
— सभी कर्मकाण्डौं पर रोक
— ऊपर वाले की कचहरी में – भर्ती एवं छंटनी की होड़
— मोह माया का छूटता- टूटता अनुगुंठित भंवर जाल
— जीवन की इहलीलाओं पर सम्पूर्ण विराम???
अनुभूतियां :—— असीम सत्ता की उपस्थिति का पल पल अहसास
— सभी घटनाएं मानों सुनियोजित , एक अदृश्य हाथों नियंत्रित
— विषय परिस्थितियों में किसी सहारे का अवलंबन
— भेदभाव को मिटाते हुए संतुलन की अद्भुत परिणीती
— सहनशक्ति की सीमा का इलास्टिक की भांति शनै: शनै विस्तार
— अन्तर्मन की चाही – अनचाही अभिव्यक्तियों का यथार्थ की धरातल पर लूका- छूपी का खेल
— और अंततः पूरी श्रद्धा एवं विश्वास के साथ एक नई , मनोरम सुबह के इन्तजार की आस।
सं. योग प्रिया ( मीना लाल )