चल जयतय जे जेठ, बदरा अयतय घनघोर I
रौद्र रौदा जैतय तखने मनवा नाचतय मोर I
ठनकल जाहिया भुइयां, ठनकत गंयता खंती I
खुर्पी कुद्रा करे कलह, कोई मत्ते करिहा जोर I
बर्खाअयतय, तर कर जैतय, कुइयां खत्ता पोर I
ठुमक ठुमक भरतय गोरकी घयला कोरे कोर I
देह थिरकयतय, जे झूमक झूमक झूम मेघ I
मेहरारू संग खैबय, खिचड़ी, चोखा, अमझोर I
लत्ती चढ़तय छप्पर भर, कोंहड़ा कद्दू परोर I
भुट्टा, गोहूम, कोठी धान, पयदा होत झकझोर I
प्रभु जी कृपा करहो, जीवन समृद्धि चौकोर I
पूजा अर्चना करबय हम्नि नित दिन भोरे भोर I
बाट जोहली नयन निहरली, सैयां बड़ी कठोर I
सात पहरिया ध्यान लगयनी नयना लगलन भोर I
नुक्का छुप्पी खेल मुझौंसा ताके मूहाँ बिसोर I
बनबे बत्या मोहले कैसन, बलमा रे चित चोर I
सांझ सवेरा एक्के फेरा बांकुरा डाले डोर I
टुक्कुर टुक्कुर घूरा है नियतिया भयल कमजोर I
गीत रंग सावन झूला सखियन ढेंगा मस्ती I
कूक कोयलिया, सुग्गा, मैना नाचे संग मयूर I
पुरवैया अयतय राजा, तोहर मनमा तनी किसोर I
गौना कर नित्रयबय सगरो, जैबय जे घर तोर I
फोड़ गगरिया ठहके सजना कलय्या काहे मरोड़ I
भीतरे भीत्तर चद्दर तर, हे भैंसिया जैतय बोर I
— मोनव्वर रहमान
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(मगही ‘मागधी’ से ही निकली भाषा है।इसकी लिपी कैथी है।
मगही या मागधी भाषा भारत के मध्य पूर्व में बोली जाने वाली एक प्रमुख भाषा है। इसका निकट का संबंध अवधी भोजपुरी और मैथिली भाषा से है और अक्सर ये भाषाएँ एक ही साथ बिहारी भाषा के रूप में रख दी जाती हैं। इसे देवनागरी लिपि में लिखा जाता है। मगही बोलनेवालों की संख्या (2002) लगभग १ करोड़ ३० लाख है। मुख्य रूप से यह बिहार के गया, पटना, राजगीर ,नालंदा ,जहानाबाद,अरवल,नवादा,शेखपुरा,लखीसराय,जमुई ,मुंगेर, औरंगाबाद के इलाकों में बोली जाती है।
मगही का धार्मिक भाषा के रूप में भी पहचान है। कई जैन धर्मग्रंथ मगही भाषा में लिखे गए हैं। मुख्य रूप से वाचिक परंपरा के रूप में यह आज भी जीवित है। मगही का पहला महाकाव्य गौतम महाकवि योगेश द्वारा 1960-62 के बीच लिखा गया। दर्जनो पुरस्कारो से सम्मानित योगेश्वर प्रसाद सिन्ह योगेश आधुनिक मगही के सबसे लोकप्रिय कवि माने जाते है। 23 अक्तुबर को उनकी जयन्ति मगही दिवस के रूप मे मनाई जा रही है।
मगही भाषा में विशेष योगदान हेतु सन् 2002 में डॉ॰रामप्रसाद सिंह को साहित्य अकादमी भाषा सम्मान दिया गया।
ऐसा कुछ विद्वानों का मानना है कि मगही संस्कृत भाषा से जन्मी हिन्द आर्य भाषा है, परंतु महावीर और बुद्ध दोनों के उपदेश की भाषा मागधी ही थी। बुद्ध ने भाषा की प्राचीनता के सवाल पर स्पष्ट कहा है- ‘सा मागधी मूल भाषा’। अतः मगही ‘मागधी’ से ही निकली भाषा है।इसकी लिपी कैथी है।
— विकिपीडिआ