योग सम्पूर्ण व्यक्तित्व के रुपांतरण की प्रक्रिया है जो कहने , सुनने अथवा देखने की नहीं अपितु अनुभूति की अभिव्यक्ति है । यह मात्र आसन , प्राणायाम नहीं बल्कि जीवन जीने की कला है । इसकी अभिव्यक्ति हमारे व्यवहार में तब होने लगती है जब यह हमारी दिनचर्या में हर पल रच बस जाती है ।
इस अभिव्यक्ति का मुख्य आधार “यम” एवं “नियम” है जो यौगिक जीवन की पहली सीढ़ी है, जिस पर पहला कदम संकल्प के सहारे बढ़ाया जा सकता है । संकल्प का बीजारोपण श्रद्धा और विश्वास से होता है , अपने कर्म के प्रति , अपने ईष्ट के प्रति तथा अपने गुरु के प्रति । जिस प्रकार एक किसान जमीन के टुकड़े की जुताई करता है , उसमें से कंकड़ , पत्थर और मोथों को निकाल कर नरम बनाता है , फिर खाद , पानी डालकर बीज बोने के लिए खेत तैयार करता है उसी प्रकार ” यम और नियम ” भी हमारे व्यवहार में आने वाले नकारात्मक प्रवृतियों को समायोजित करने के साधन हैं।
योग के ज्योत की अलख श्री स्वामी शिवानंद जी ने जलाई जिसको उनके परम प्रिय शिष्य श्री स्वामी सत्यानंद जी ने विज्ञान की कसौटी पर कस कर घर – घर ही नहीं अपितु देश विदेशों में भी पहुंचाया । इसी परंपरा को आगे कायम रखते हुए उनके एकमात्र परम प्रिय शिष्य श्री स्वामी निरंजनानंद सरस्वती जी ने जो ” बिहार योग विद्यालय ” के परम आचार्य एवं संचालक हैं , आधुनिक परिवेश को देखते हुए जीवन शैली के रूप में सर्व सुलभ कराने का प्रयास जारी रखा है ।
मानवजाति की मानसिकता में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए यम एवं नियम को साधने की आवश्यकता है , जिसे मन को संयमित करके ही संभव है । मन का स्वभाव बच्चे की भांति चंचल है जिसको बल पूर्वक संयमित नहीं किया जा सकता , इसे मैत्री भाव से अनुशासित किया जा सकता है ।मन को अनुशासित करके ही इन्द्रियों को नियंत्रित करने का प्रयास किया जा सकता है ।
आधुनिक सामाजिक परिवेश को देखते हुए स्वामी जी ने यम और नियम के नूतन आयामों को प्रतिपादित किया है , जैसे
यम — अर्थात — प्रसन्नता , क्षमा , इन्द्रिय निग्रह ……आदि
नियम — अर्थात — जप , नमस्कार ( विनम्रता ) , मनोनिग्रह ….. आदि
ये सभी हमारी दिनचर्या के पहलू हैं जो ठीक वैसे ही एक दूसरे से अनुगुंठित हैं जैसे माला में मोती और धागा । समय के भागते हुए रफ्तार को देखते हुए स्वामी निरंजनानंद सरस्वती जी ने यम एवं नियम के व्यवहारिक पक्षों की खोज की है और उसके छोटे से छोटे किन्तु महत्वपूर्ण पहलुओं को चलते फिरते अपनाने का मार्ग बतलाया है ।
— सं. योगप्रिया (मीना लाल )
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