यह शहर भौगोलिक इकाई मात्र नहीं है बल्कि एक मिज़ाज है, एक मौज है,
एक अल्हड़ मस्ती है, एक बेफिक्री है और सबसे उपर एक रस है
समुद्र मंथन से निकले विष को सहर्ष पी लेना और उसके बाद अमरत्व पा जाना, यह बस महादेव को ही उपलब्ध हो सकता था। विष पी लेना कहीं न कहीं से मृत्यु के भय के पार जाने जैसा ही रहा होगा। महादेव तांडव भी करते हैं और लास्य भी। यूँ तो महादेव कल्पनातीत हैं पर मोटे तौर पर उनको जीवन में मृत्यु की सहज स्वीकार्यता के परिचायक माना जा सकता है और फिर जब यह स्वीकार हो गया तो फिर किसीअस्वीकृति की बात ही कहाँ रह जाती है। बनारस उन्हीं महादेव के त्रिशूल पर बसा एकमात्र शहर है।
जहाँ क्रोध सामान्य व स्वाभाविक है, वहाँ मुस्कुराहट, जहाँ मुस्कुराना है वहाँ धाराप्रवाह गालियाँ… एक अजीब सा विरोधाभास है यहाँ की सभी बातों में। और यही विरोधाभास बनारस की खूबसूरती है। यूँ हीकोई शहर , शहरवासियों का महबूब नहीं हो जाता
यह शहर भौगोलिक इकाई मात्र नहीं है बल्कि एक मिज़ाज है, एक मौज है, एक अल्हड़ मस्ती है, एक बेफिक्री है और सबसे उपर एक रस है। जलेबी का सामान्य रस नहीं बल्कि जलेबी वाली बूढ़ी चाची की प्रेम पूर्ण गालियों का रस। गालियों का बनारस की बोली में विशेष महत्त्व है। मित्रों के सामान्य गप में भी गालियाँ बहुतायत में इस्तेमाल की जाती हैं, ऐसी गालियाँ जो क्रोध की अवस्था में इस्तेमाल होने पर गोलियां चलवा दें।
बनारस शहर में जब दो गाड़ियाँ परस्पर रगड़ जाती हैं तो अधिकांश मौकों पर दोनों चालक एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा देते हैं। जहाँ क्रोध सामान्य व स्वाभाविक है, वहाँ मुस्कुराहट, जहाँ मुस्कुराना है वहाँ धारा प्रवाह गालियाँ… एक अजीब सा विरोधाभास है यहाँ की सभी बातों में। और यही विरोधाभास बनारस की खूबसूरती है। यूँ ही कोई शहर , शहरवासियों का महबूब नहीं हो जाता।
“बनारस इश्क है।”
आज का यह पोस्ट उन स्नेहिल मित्रों को समर्पित है जो थोड़ा-बहुत ही सही, बनारस अपने साथ लिए घूमते हैं और पटना, दिल्ली, पूर्णिया, मधेपुरा, मुजफ्फरपुर, कलकत्ता, बम्बई इत्यादि किसी भी शहर को कुछ पलों के लिए ही सही बनारस कर देते हैं।
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