तोषी ज्योत्स्ना
पिछले दिनों महाराष्ट्र खास कर मुम्बई सुर्खियों में है लेकिन गलत कारणों से। मुंबई पुलिस, जो अपनी कार्यकुशलता और त्वरित कार्रवाई के लिए जानी जाती है, बीते दिनों में इतनी शर्मसार हुई कि पूरे देश में इसकी चर्चा जोरों पर है,पूरा भारत पूछ रहा है कि जब रक्षक ही भक्षक बन जाए तब जनता किसके पास जाए, किसका भरोसा करे ।
किसी भी राज्य का पुलिस महकमा राज्य सरकार के दिशा निर्देश पर ही चलता है। सत्तालोलुप और अनुभव रहित सरकार के आने से अराजकता का माहौल पैदा हुआ है। चाहे वह कोरोनाजन्य परिस्थितियों से निपटने का मामला हो, अतिक्रमण का मामला हो, या फिर हाई प्रोफाइल मामलों की हैंडलिंग हो।
हमेशा अपने आदर्श वाक्य “सद्रक्षणाय खलनिग्रहणाय” पर चलने वाली मुम्बई पुलिस के दामन पर भी कई दाग उभर आये हैं। वैसे तो हमारे देश में पुलिस का ख़ौफ़ कुछ ज्यादा ही है और सरकारों द्वारा सरकारी तंत्र का इस्तेमाल दबे छिपे रूप में अपने फ़ायदे के लिए किया जाना भी कोई नई बात नहीं है, लेकिन शिवसेना शासन काल में जिस प्रकार मायानगरी मुम्बई में खुलेआम पुलिस विभाग का इस्तेमाल सियासत और निजी हितों और स्वार्थ के लिए हुआ है, उसने सबकी पोल खोल कर रख दी है।
मायानगरी कही जाने वाली मुंबई में भले ही कोरोना की वजह से फिल्में बनने की रफ्तार में कमी आ गई हो लेकिन इस दौर में अपराध और सियासत की रोमांचक फिल्म खूब चली और ऐसी चली कि पूरे देश का ध्यान अपनी तरफ खींच लिया है।
पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह की डीजी होमगार्ड की पनिशमेंट पोस्टिंग तथा बदले में उनके द्वारा अदालत का दरवाज़ा खटखटाने की प्रतिक्रिया ने शिवसेना की गठबंधन सरकार को सवालों कठघरे में ला खड़ा किया है।
क्राइम ब्रांच के कुख्यात ऑफ़िसर सचिन वझे की पुनः बहाली और आननफानन में हाईप्रोफाइल मामलों को उनके सुपुर्द किया जाना भी सरकार की नीयत पर सवाल खड़े करता है। सचिन वझे की बर्खास्तगी के बाद शिवसेना से उनकी नजदीकियां किसी से छिपी नहीं हैं और विपक्ष ने यह भी खुलासा किया है कि सचिन वझे की बहाली के प्रयास में शिवसेना बहुत दिनों से लगी थी।
हमेशा अपने आदर्श वाक्य “सद्रक्षणाय खलनिग्रहणाय” पर चलने वाली मुम्बई पुलिस के दामन पर भी कई दाग उभर आये हैं। वैसे तो हमारे देश में पुलिस का ख़ौफ़ कुछ ज्यादा ही है और सरकारों द्वारा सरकारी तंत्र का इस्तेमाल दबे छिपे रूप में अपने फ़ायदे के लिए किया जाना भी कोई नई बात नहीं है, लेकिन शिवसेना शासन काल में जिस प्रकार मायानगरी मुम्बई में खुलेआम पुलिस विभाग का इस्तेमाल सियासत और निजी हितों और स्वार्थ के लिए हुआ है, उसने सबकी पोल खोल कर रख दी है।
सत्ता हाथ आते ही पुलिस महकमे को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने की गरज़ से सचिन की बहाली की गई, और सुशांत सिंह राजपूत, टीआरपी कांड, अर्नव गोस्वामी केस, और एंटीलिया विस्फोटक केस आदि सभी अतिसंवेदनशील मामले असिस्टेंट इंस्पेक्टर सचिन वझे जैसे छोटे और विवादित पुलिस अधिकारी को सौंपा जाना सरकार और पुलिस आलाकमान की मंशा साफ करता है।
पोल खुलने पर पुलिस कमिश्नर परमवीर सिंह को बलि का बकरा बना दिया गया। जिस पर उन्होंने गृहमंत्री अनिल देशमुख पर भी गंभीर आरोप लगाए हैं। पूरा घटनाक्रम किसी हाई वोल्टेज सस्पेंस थ्रिलर से कम नहीं है जिसमे रोज़ नए रोमांचक मोड़ आते जा रहे हैं, नित नए खुलासे हो रहे हैं। कोतवाल की कोतवाली में पड़ने वाले छापे ने मुंबई पुलिस के मुख पर कालिख़ पोत दी है। सफाई में मुम्बई पुलिस को आगे आकर बयान जारी करना पड़ा कि मुम्बई पुलिस की साख़ को बचाने की जरूरत है।
इस बयान पर अगर गौर करें तो कहीं न कहीं यह एक स्वीकारोक्ति है जो पुलिस विभाग की अंदरूनी खींचतान को उजागर कर रही है। पूरा घटनाक्रम दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि आम जनता का विश्वास सरकार और पुलिस विभाग ने उठने लगा है। डैमेज कंट्रोल यानी क्षति-नियंत्रण के तौर पर सुपरकॉप हेमंत नागराले की नियुक्ति कमिश्नर पद पर की गई है। अब देखना यह है कि नए पुलिस कमिश्नर किस प्रकार मुम्बई पुलिस की साख़ को पुनःस्थापित कर जनता का भरोसा जीतने में कामयाबी हासिल करते हैं।
(तोषी ज्योत्स्ना आईटी पेशेवर हैं। हिंदी और अंग्रेजी दोनों में समकालीन मुद्दों पर लिखने में गहरी दिलचस्पी रखती हैं। एक स्तंभकार और पुरस्कार विजेता कहानीकार भी हैं।)