Thursday, December 19, 2024

 योग के आयाम: आत्मसाक्षात्कार; प्रत्याहार+भक्ति = आंतरिक स्थिरता

 

“चुन- चुन कर अनुभव के मोती

बोलों में हूँ पिरोती

गुरू चरणों में हार बनाकर

करती उन्हें समर्पित ”

आत्मसाक्षात्कार—-इसका मतलब आत्मा का अनुभव नही हैअपितु पूर्ण संयम है| स्वयं को पहचानने की क्षमता| व्यक्तित्व की हर अवस्था का ज्ञान| जहाँ अपने से कुछ भी छिपा नहीं रहता| जहाँ हम अपनी वासना , कामना , क्रोध अहंकार सबको देखते हैं और धीरे- धीरे उसके कारण को जानने का प्रयत्न करते हैं( प्रत्याहार ) ताकि उनपर नियंत्रण किया जा सके| बल पूर्वक नहीं बल्कि स्वतः|

इन्द्रियों का स्वभाव है एक संबंध को पकड़ना| अतः दृश्य जगत से इन्होंने अपना एक संबंध बना रखा है| इसी प्रवाह का रुख बदलना है जिसका फार्मूला है—

प्रत्याहार + भक्ति = आंतरिक स्थिरता

सं. योग प्रिया ( मीना लाल)

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