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अनुकूल एवं प्रतिकूल परिस्थितियों का महत्व
अनुकूल एवं प्रतिकूल परिस्थितियों का महत्वजीवन की यात्रा में अनुकूल एवं प्रतिकूल दोनों परिस्थितियाँ आती हैं जिसमें पूरी प्रकृति की संलग्नता होती है | न जाने कितने उद्धेश्य निर्धारित किये जाते हैं और उन्हें पूरी करने में अथक परिश्रम करने पड़ते हैं | मंजिल पा जाने की अनुभूति उत्साहवर्धक होती है जो आकाश की ऊँचाइयों को छूने के लिए प्रेरित करती है | पीछे मुड़कर प्रतिकूल परिस्थितियों की स्मृति में उलझना वेदना , संताप एवं कुंठाओं को जन्म देती है जो स्वयं में निहित सामर्थ्य को क्षीण करती है | इनसे बचने की कोशिश विवेकपूर्ण निर्णय है एवं साध्य भी|
संवाद
मानव ही सृष्टि का एकमात्र साधन है जो अपनी उर्जा, भावनाओं, विचारों , संवेदनाओं का आदान – प्रदान कर एक स्वस्थ , सकारात्मक वातावरण सौगात स्वरूप दे सकता है| संवाद सकारात्मक हो अथवा नकारात्मक मानव जीवन के लिए दोनो ही वरदान स्वरूप हैं |
अगर संवाद सकारात्मक रहा तो अच्छे वातावरण का निर्माण और अगर नकारात्मक रहा तो मन , मस्तिष्क से उनका निष्कासन , भंडारण नहीं| निर्णय हमें लेना है सुखद भविष्य का निर्माण अथवा विस्फोटक पृष्टभूमि में योगदान ? मोबाइल पर सिर्फ अंगुलियों से उर्जा ही शोषित होती है बाकी सब गौण !!! आइये संवाद को पुनःस्थापित करने का संकल्प लें |