हालही में हरितवीर समिट-21 को वीरजी ने संबोधित किया, निम्नांकित रूप में इसी उद्भोदन को लेखित किया गया:
मैं समझता हूँ, शक्ति ही सबकुछ है, और जहाँ शक्ति है वहां सुनवाई है, कार्यवाही है। ताकत, शक्ति, पॉवर, कुछ ऐसे शब्द हैं, जो सबकुछ कर सकते हैं। हम सभी इसी शक्ति की तलाश कर रहे हैं। यदि मॉं प्रकृति की सेवा करनी है, तो हमें यह शक्ति नाम की वस्तु/तत्व कहाँ मिलेगा, समझने का प्रयास करना है। आज जब हम सभी साथ हैं, तब लगता है, वह शक्ति ज्यादा दूर नहीं है।
इस शक्ति की बात, बाद में करेंगे, अभी बात करेंगे कि हम सभी को हरित वीर बनने की आवश्यकता क्यों आन पड़ी।
अभी हाल ही में एक देश में उसी देश के बहिष्कृत संगठन ने सीधा देश पर कब्ज़ा कर लिया। १९० देश देखते रहे। सबके अपने स्वार्थ थे। सबने देखा है कि एकीकरण न होने पर कोई भी लूट लेता है, कब्ज़ा कर लेता है।
सब जानते हुए भी, हम सब वही कर रहे हैं, फिर कहते हैं, ‘हम हरित वीर क्यों बनें‘ !
इथोपिया में अकाल है,… कोई बात नहीं, हमें क्या। चेन्नई में पानी 2000 फीट तली में पहुँच गया,…हमें क्या। जब हम बिना जरूरत एसी चलाते हैं, तब हम क्या कर रहे हैं? क्या हमें नहीं पता नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत (रिन्यूएबल एनर्जी सोर्स) कितने कम हैं?
हम सब वह बन रहे हैं, जैसे एक परिवार किसी जगह पानी बढ़ने पर केवल ऊँचे और ऊँचे स्थानों पर मकान शिफ्ट करता जाता है पर यह कभी नहीं सोचता कि हर साल डूब में मेरा घर ही क्यों आता है और एक दिन इसी गलती की सजा उसे मिलती है। ‘सबसे ऊँची जगह भी एक दिन डूब जाती है।‘
यही हम भी कर रहे हैं, ‘पानी हम तक तो नहीं आया, हम हरित वीर क्यों बनें?’
कोई बात नहीं, आज नहीं तो कल, वह दिन आएगा तो जरुर। भले आपको- मुझे न डुबाये, पर मेरी- आपकी आने वाली पीढ़ी को जरुर डुबायेगा, तब वह हमें प्यार से याद नहीं करेंगे, गालियॉं देंगे। चाहे उस समय मैं और आप नरक में हों या किसी खूबसूरत जन्नत में, गालियाँ पक्की हैं।
‘हरित वीर वाहिनी‘ एक शक्ति है, जिसमें हम- आप मिलकर एक हो रहे हैं, एकीकरण हो रहा है। जब हम शक्ति होते हैं तब हम कुछ करते हैं। कोई प्रश्न नहीं होता है।
बस हमें वही शक्ति बनना है, जहाँ काम करना आसान हो। जब शक्ति होंगे तब लोग हमें रोकेंगे नहीं हमारे साथ होंगे, एक- दूसरे की ताकत बनेंगे, तब आप अपनी माँ को अनाथ नहीं छोड़ेंगे।
माँ की रक्षा बनने वाली शक्ति पर सवाल नहीं, साथ खड़े होंगे, क्योंकि वहां सभी के अन्तस् में माँ की रक्षा का जूनून होगा न कि सवाल।
हम क्यों जुड़ें? हमें क्या मिलेगा?
यह सवाल कभी अपनी माँ से करना। ‘माँ, हमें पैदा होते वक्त मारा क्यों नहीं, तुझे हमें बड़ा करने में इतनी जिन्दगी नहीं खपानी पड़ती और आज के सवाल से दु:खी नहीं होना पड़ता।‘
क्या नहीं सुनना पड़ता हम हरित वीरों को! माँ की रक्षा के लिए बन रही आर्मी ज्वाइन करने की बात पर कैसे कैसे सवाल झेलने पड़ते हैं! कई नये भाई- बहिन यह तक पूछते हैं, ‘इसमें कुछ मिलने वाला है क्या? हो तो बताओ, फिर तो हम भी शामिल हो जाएँ।‘
हालत यह है कि माँ के साथ भी बिज़नेस करने को तैयार हैं हम- आप।
क्या कहूं! माँ की सेवा करना भी आज सवाल है! लानत है!
गलती सवाल में नहीं है, यह शिक्षा की तकनीकी कमी है। हमें दरवाजे बताये, घर की सीमाएँ, इतनी ज्यादा मन- मस्तिष्क में डाल दीं कि हम इससे आगे समझ को खोलने तैयार नहीं हैं।
हमारी हालत उस गधे की तरह है जिसको आप सिर्फ बाँधने की एक्टिंग भर कर दो, वह रात भर वहीं खड़ा रहता है, क्योंकि उसे लगता है, जो आपकी सोच का अहसास उसके अन्दर है। बस यही यथार्थ है। इसके आगे कुछ नहीं।
जबकि होना तो ये था कि समाजशास्त्रियों को किताबों में लिखना था कि घर का आरम्भ बस घर से होता है, इसके बाद तो सिर्फ उसका ही विस्तार है, कहीं कोई अलग घर नहीं है, यह तो एक व्यवस्था है, जिसको स्वीकार करना है, चिपके नहीं रहना है।
काश यह बताने में, समझाने में वह सफल हुए होते कि हम सभी वृहद् परिवार के एक कनिष्ठ कक्ष में चिंतन कर रहे अवयव मात्र हैं।
आपको पता है, चेन्नई में औसतन 1400mm वर्षा होती है, फिर भी पानी की त्राहि त्राहि है। क्यों? क्योंकि वहां की सरकार पर दबाव बनाने वाला हरित वीर समूह नहीं है। वहाँ के लोग कोई गलत नहीं हैं पर उन्हें कोई दिशा देने वाला स्थापित संगठन नहीं है, जो हर वर्ष होने वाले वर्षा जल को थाम सके, सरकारों से ब्लू प्रिंट निकलवा सके।
बिहार में हर वर्ष बाढ़ आती है। कौन जिम्मेदार है, कि सोचा ही नहीं गया कि इसका सुरक्षात्मक ढांचा कैसे बने?
क्योंकि वहां पर कोई प्रभावशाली संख्या में हरित वीर नहीं है।
अफ़सोस! ईश्वर न करे, यदि इसी सदी हम नहीं जागे तो बिहार झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, और पड़ोसी देश जो कभी हमारा पूर्वी बंगाल था, इसी बाढ़ के कारण अधिसंख्य हिस्से समुद्र में समा गए तो क्या करेंगे हम!
हम सब यह छोड़कर क्या कर रहे हैं? सिर्फ सवाल!
जब प्रेम होता है, तब हम सोचते हैं, उसके बारे में जिससे प्रेम होता है। एक बार प्रेम उपजेगा तो लोग पोंगल की पूजा पर चिंतन करेंगे कि दक्षिण में सूर्य के साथ हरे वृक्ष की पूजा क्यों कर रहे हैं, गन्ने को इतना मान क्यों दे रहे हैं। फिर जानेंगे, गन्ना सबसे ज्यादा सौर ऊर्जा को ले रहा है। हरे वृक्ष सौर ऊर्जा उठा रहे हैं, इसलिए हम पूजा कर रहे हैं। धर्म- आस्था समझ कर हम सीमित नहीं कर रहे होंगे, कि यह मैं नहीं कर सकता क्योंकि पूजा की इजाजत मेरा धर्म मेरी संस्कृति नहीं देती।
हमें जागना ही होगा। हमें एक ‘हरित वीर श्रृंखला’ बनानी होगी, जो इस धरा को हाथ मिलाने भर से पाट सके। तब हम एक शक्ति होंगे, एक ताकत होंगे। तब पर्यावरण की दुश्मन ताकत भी राह पर आ जाएगी।
फिर कहूँगा, हमें तालीम कमजोर दी गई। पूजा का अर्थ सही से क्यों नहीं बताया कि पूजा का अर्थ होता है, ‘सम्मानित करना‘। बस। इससे ज्यादा कुछ नहीं। पर किसी ने नहीं बताया।
नहीं तो सम्मान तो हम कर ही सकते थे। काश ये परिभाषाएं हमारे शिक्षाविदों ने दी होती तो हम आज कहीं और होते।
आपको लगता है कि विकास के सही तरीके विकसित किये जा सकते हैं, औद्योगिकीकरण के कई आयाम हो सकते हैं, जिन पर हम चल सकते हैं, पर हम नहीं चल रहे हैं। पर्यावरण को तार तार कर रहे उद्योग, अनियोजित अंधाधुंध शहरीकरण की होड़, गाँव को मिटाने की जालसाजी रुक नहीं रही।
कौन जिम्मेदार? सरकार? देश? या हम, जो कहते हैं,’हम हरित वीर क्यों बनें‘?
मैं समझता हूँ, प्रश्न तो यह होना चाहिए- ‘बताइए कैसे बनते हैं(हरित वीर), कैसे जुड़ें, मुझे भी मेरी माँ से प्यार है, मुझे जोड़ो।
हमें जागना ही होगा। हमें एक ‘हरित वीर श्रृंखला‘ बनानी होगी, जो इस धरा को हाथ मिलाने भर से पाट सके। तब हम एक शक्ति होंगे, एक ताकत होंगे। तब पर्यावरण की दुश्मन ताकत भी राह पर आ जाएगी।
हम सभी एकीकरण की शक्ति, जो इंटीग्रेटेड फॉर्म (एकीकृत रूप) में होगी, बनेंगे, जिससे काम करना, कराना आसान होगा। तब हम पोंगल, छठ पूजा, कान्हा उत्सव में पर्यावरण का विज्ञान ढूंढ रहे होंगे न कि सवाल।
क्योंकि जब माँ से प्यार जगाने के बात होती है, तब हमारा कार्य सवाल नहीं, संभालना होता है.
गलत है, तो संभालो। सही है, तो बढाओ। पर सवाल सिर्फ रोक लगाते हैं, धीमा करते हैं।
माँ की सेवा में जुड़ना यदि सवाल है, तो आइये हम सभी मिलकर उत्तर बन जायें।