Thursday, May 9, 2024
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माँ की सेवा सवाल है, तो आइये हम उत्तर बन जायें.- वीर

हालही में हरितवीर समिट-21 को वीरजी ने संबोधित कियानिम्नांकित रूप में इसी उद्भोदन को लेखित किया गया:

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 मैं समझता हूँशक्ति ही सबकुछ हैऔर जहाँ शक्ति है वहां सुनवाई हैकार्यवाही है। ताकतशक्तिपॉवरकुछ ऐसे शब्द हैं,  जो सबकुछ कर सकते हैं। हम सभी इसी शक्ति की तलाश कर रहे हैं। यदि मॉं प्रकृति की सेवा करनी हैतो हमें यह शक्ति नाम की वस्तु/तत्व कहाँ मिलेगासमझने का प्रयास करना है। आज जब हम सभी साथ हैंतब लगता हैवह शक्ति ज्यादा दूर नहीं है।

इस शक्ति की बातबाद में करेंगेअभी बात करेंगे कि हम सभी को हरित वीर बनने की आवश्यकता क्यों आन पड़ी।

 अभी हाल ही में एक देश में उसी देश के बहिष्कृत संगठन ने सीधा देश पर कब्ज़ा कर लिया। १९० देश देखते रहे। सबके अपने स्वार्थ थे। सबने देखा है कि एकीकरण न होने पर कोई भी लूट लेता हैकब्ज़ा कर लेता है।

सब जानते हुए भीहम सब वही कर रहे हैंफिर कहते हैं, ‘हम हरित वीर क्यों बनें‘ !

इथोपिया में अकाल है,… कोई बात नहींहमें क्या। चेन्नई में पानी 2000 फीट तली में पहुँच गया,…हमें क्या।‌ जब हम बिना जरूरत एसी चलाते हैंतब हम क्या कर रहे हैंक्या हमें नहीं पता नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत (रिन्यूएबल एनर्जी सोर्स) कितने कम हैं?

हम सब वह बन रहे हैंजैसे एक परिवार किसी जगह पानी बढ़ने पर केवल ऊँचे और ऊँचे स्थानों पर मकान शिफ्ट करता जाता है  पर यह कभी नहीं सोचता कि हर साल डूब में मेरा घर ही क्यों आता है और एक दिन इसी गलती की सजा उसे मिलती है।  सबसे ऊँची जगह भी एक दिन डूब जाती है।

यही हम भी कर रहे हैं, ‘पानी हम तक तो नहीं आयाहम हरित वीर क्यों बनें?’

कोई बात नहींआज नहीं तो कलवह दिन  आएगा तो जरुर। भले आपको- मुझे न डुबायेपर मेरी- आपकी आने वाली पीढ़ी को जरुर डुबायेगातब वह हमें प्यार से याद नहीं करेंगेगालियॉं देंगे।  चाहे उस समय मैं और आप नरक में हों या किसी खूबसूरत जन्नत मेंगालियाँ  पक्की हैं।

 ‘हरित वीर वाहिनी‘ एक शक्ति हैजिसमें हम- आप मिलकर एक हो रहे हैंएकीकरण हो रहा है। जब हम शक्ति होते हैं तब हम कुछ करते हैं। कोई प्रश्न नहीं होता है।

 बस हमें वही शक्ति बनना हैजहाँ काम करना आसान हो। जब शक्ति होंगे तब लोग हमें रोकेंगे नहीं हमारे साथ होंगेएक- दूसरे की ताकत बनेंगेतब आप अपनी माँ को अनाथ नहीं छोड़ेंगे।

 माँ की रक्षा बनने वाली शक्ति पर सवाल नहींसाथ खड़े होंगेक्योंकि वहां सभी के अन्तस् में माँ की रक्षा का जूनून होगा न कि सवाल।

हम क्यों जुड़ें? हमें क्या मिलेगा?

यह सवाल कभी अपनी माँ से करना। माँहमें पैदा होते वक्त मारा क्यों नहींतुझे हमें बड़ा करने में इतनी जिन्दगी नहीं खपानी पड़ती और आज के सवाल से दु:खी नहीं होना पड़ता।‘ 

 क्या नहीं सुनना पड़ता हम हरित वीरों को! माँ  की रक्षा के लिए बन रही आर्मी ज्वाइन करने की बात पर कैसे कैसे सवाल झेलने पड़ते हैं! कई नये भाई- बहिन यह तक पूछते हैं, ‘इसमें कुछ मिलने वाला है क्याहो तो बताओफिर तो हम भी शामिल हो जाएँ।

 हालत यह है कि माँ के साथ भी बिज़नेस करने को तैयार हैं हम- आप।

 क्या कहूं! माँ की सेवा करना भी आज सवाल है! लानत है!

गलती सवाल में नहीं हैयह शिक्षा की तकनीकी कमी है। हमें दरवाजे बतायेघर की सीमाएँइतनी ज्यादा मन- मस्तिष्क में डाल दीं कि हम इससे आगे समझ को खोलने तैयार नहीं हैं।

 हमारी हालत उस गधे की तरह है  जिसको आप सिर्फ बाँधने की एक्टिंग भर कर दोवह रात भर वहीं खड़ा रहता हैक्योंकि उसे लगता हैजो आपकी सोच का अहसास उसके अन्दर है। बस यही यथार्थ है। इसके आगे कुछ नहीं।

जबकि होना तो ये था कि समाजशास्त्रियों को किताबों में लिखना था कि घर का आरम्भ बस घर से होता हैइसके बाद तो सिर्फ उसका ही विस्तार हैकहीं कोई अलग घर नहीं हैयह तो एक व्यवस्था हैजिसको स्वीकार करना हैचिपके नहीं रहना है।

काश यह बताने मेंसमझाने में वह सफल हुए होते कि हम सभी वृहद् परिवार के एक कनिष्ठ कक्ष में चिंतन कर रहे अवयव मात्र हैं।

आपको पता हैचेन्नई में औसतन 1400mm वर्षा होती हैफिर भी पानी की त्राहि त्राहि है। क्योंक्योंकि वहां की सरकार पर दबाव बनाने वाला हरित वीर समूह नहीं है। वहाँ के लोग कोई गलत नहीं हैं पर उन्हें कोई दिशा देने वाला स्थापित संगठन नहीं हैजो हर वर्ष होने वाले वर्षा जल को थाम सकेसरकारों से ब्लू प्रिंट निकलवा सके।

बिहार में हर वर्ष बाढ़ आती है। कौन जिम्मेदार हैकि सोचा ही नहीं गया कि इसका सुरक्षात्मक ढांचा कैसे बने?

क्योंकि वहां पर कोई प्रभावशाली संख्या में हरित वीर नहीं है।

 

अफ़सोस! ईश्वर न करेयदि इसी सदी हम नहीं जागे तो बिहार झारखण्डपश्चिम बंगालऔर पड़ोसी देश जो कभी हमारा पूर्वी बंगाल थाइसी बाढ़ के कारण अधिसंख्य हिस्से समुद्र में समा गए तो क्या करेंगे हम!

 हम सब यह छोड़कर क्या कर रहे हैंसिर्फ सवाल!

जब प्रेम होता हैतब हम सोचते हैंउसके बारे में जिससे प्रेम होता है। एक बार प्रेम उपजेगा तो लोग  पोंगल की पूजा पर चिंतन करेंगे कि दक्षिण में सूर्य के साथ हरे वृक्ष की पूजा क्यों कर रहे हैंगन्ने को इतना मान क्यों दे रहे हैं। फिर जानेंगेगन्ना सबसे ज्यादा सौर ऊर्जा को ले रहा है। हरे वृक्ष सौर ऊर्जा उठा रहे हैंइसलिए हम पूजा कर रहे हैं। धर्म- आस्था समझ कर हम सीमित नहीं कर रहे होंगेकि यह मैं नहीं कर सकता क्योंकि पूजा की इजाजत मेरा धर्म मेरी संस्कृति नहीं देती।

हमें जागना ही होगा। हमें एक ‘हरित वीर श्रृंखला’ बनानी होगी, जो इस धरा को हाथ मिलाने भर से पाट सके। तब हम एक शक्ति होंगे, एक ताकत होंगे। तब पर्यावरण की दुश्मन ताकत भी राह पर आ जाएगी।

फिर कहूँगाहमें तालीम कमजोर दी गई। पूजा का अर्थ सही से क्यों नहीं बताया कि पूजा का अर्थ होता है, ‘सम्मानित करना। बस। इससे ज्यादा कुछ नहीं। पर किसी ने नहीं बताया।

नहीं तो सम्मान तो हम कर ही सकते थे। काश ये परिभाषाएं हमारे शिक्षाविदों ने दी होती तो हम आज कहीं और होते।

आपको लगता है कि विकास के सही तरीके विकसित किये जा सकते हैंऔद्योगिकीकरण के कई आयाम हो सकते हैंजिन पर हम चल सकते हैंपर हम नहीं चल रहे हैं। पर्यावरण को तार तार कर रहे उद्योगअनियोजित अंधाधुंध शहरीकरण की होड़गाँव को मिटाने की जालसाजी रुक नहीं रही।

 कौन जिम्मेदारसरकारदेशया हमजो कहते हैं,’हम हरित वीर क्यों बनें‘?

 मैं समझता हूँप्रश्न तो यह होना चाहिए- बताइए कैसे बनते हैं(हरित वीर)कैसे जुड़ेंमुझे भी मेरी माँ से प्यार हैमुझे जोड़ो।

 हमें जागना ही होगा। हमें एक हरित वीर श्रृंखला‘ बनानी होगीजो इस धरा को हाथ मिलाने भर से पाट सके। तब हम एक शक्ति होंगेएक ताकत होंगे। तब पर्यावरण की दुश्मन ताकत भी राह पर आ जाएगी।

 हम सभी एकीकरण की शक्तिजो इंटीग्रेटेड फॉर्म (एकीकृत रूप) में होगीबनेंगेजिससे काम करनाकराना आसान होगा। तब हम पोंगलछठ पूजाकान्हा उत्सव में पर्यावरण का विज्ञान ढूंढ रहे होंगे न कि सवाल।

 क्योंकि जब माँ से प्यार जगाने के बात होती हैतब हमारा कार्य सवाल नहींसंभालना होता है.

 गलत हैतो संभालो। सही हैतो बढाओ। पर सवाल सिर्फ रोक लगाते हैंधीमा करते हैं।

 माँ की सेवा में जुड़ना यदि सवाल हैतो आइये हम सभी मिलकर उत्तर बन जायें।

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