हमारी इन्द्रियाँ अपने अनुभवों की सूचना निरंतर मन को पहुँचाती हैं| जहाँ मन इनकी छँटनी बुद्धि एवं विवेक के द्वारा करता है| जैसे उपजाऊ जमीन को तैयार करने के लिए हमेशा मोंथे को निकालना पड़ता है ठीक वैसे ही प्रतिदिन साक्षी भाव से अपनी अभिव्यक्तियों का अवलोकन एवं अनुपयोगी सूचनाओं का निष्कासन मनोनिग्रह (दान्ती) एवं इन्द्रिय निग्रह की प्रक्रिया द्वारा निरंतर करना चाहिए|
क्योंकि सूचनाऐं कभी बंद नही होतीं — सोते, जागते — चलती रहती हैं और हमारे मानस पटल पर इसकी छाप छोड़ती जाती है| ऐसी स्थिती में ही निग्रह की बात आती है| जीवन को शान्तिपूर्ण व्यतीत करने के लिए अनुशासन अर्थात् नियंत्रण की आवश्यकता है|
— सं. योग प्रिया (मीना लाल)