By Jyoti Singh
बिहार की पारंपरिक कला से प्रेरित होकर छात्रा रिंकू अग्रवाल ने सिकी घास से एक सुंदर और अनोखी पोशाक तैयारकी है । रिंकू ने महीनों तक मेहनत कर इस पोशाक की बुनाई और डिजाइन की । सिकी घास, जो आमतौर परटोकरियाँ और सजावटी सामान बनाने में इस्तेमाल होती है, को रिंकू ने रचनात्मक ढंग से फैशन में ढाला। यह पोशाकन केवल रचनात्मकता का उदाहरण है, बल्कि यह भारतीय हस्तशिल्प को नई पहचान देने की दिशा में भी एक कदम है।
सिकी घास: मिथिलांचल की सुनहरी विरासत
सिक्की शिल्प का बिहार में गहरा सांस्कृतिक महत्व है।
सिकी एक प्रकार की तनों वाली घास है, जिसे उसकी अद्भुत सुनहरी आभा के लिए जाना जाता है। यह घास मुख्यतःउत्तर बिहार के मिथिला क्षेत्र के गीले और दलदली इलाकों में पाई जाती है।
महिलाएं सिकी घास को आभूषणों और रोज़मर्रा के उपयोग की वस्तुओं के लिए बुनती हैं, जो उनके लिए अपनीरचनात्मकता व्यक्त करने का एक माध्यम भी बनता है।
“हमारे छात्रों ने इस शिल्प को एक नए रूप में ढालकर बुनकरों और काम की तलाश करने वालों के लिए बेहतररोज़गार के अवसर बनाए हैं। चूंकि यह केवल ‘एक ऊपर, एक नीचे’ तकनीक का उपयोग करता है, इसलिए कपड़ाबुनना आसान होता है,” अग्रवाल ने कहा।
मिथिला की महिलाएं गांव के खेतों से इस घास को एकत्रित करती हैं। तने के ऊपरी भाग में जो फूल होते हैं, उन्हें हटादिया जाता है, और बाकी भाग को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर संग्रहित किया जाता है। इन टुकड़ों का उपयोगआकर्षक हस्तशिल्प बनाने के लिए किया जाता है।
सदियों पहले, मिथिलांचल की महिलाएं इस घास से बने हस्तशिल्प का उपयोग मुख्यतः अनाज भंडारण और घरेलूउपयोग की वस्तुओं में करती थीं। समय के साथ यह कला केवल उपयोगिता से आगे बढ़कर मनोरंजन और सजावटकी दिशा में भी विकसित हुई। आज सिकी से बनाए जाने वाले खिलौने, गुड़िया, आभूषण और चित्रकलाएं इसकीरचनात्मकता का प्रतीक हैं। सिकी घास से सुंदर चित्रों का निर्माण इस हस्तकला का एक नवीन प्रयोग है।
सिकी घास को जड़ों के पास से काटा जाता है और पानी से धोया जाता है। फिर उसके ऊपरी फूल वाले हिस्से कोहटाकर शेष भाग को सुखाया और चाकू से छीलकर तैयार किया जाता है। आवश्यकता अनुसार इसे रंगों में रंगा जाताहै। कई उपयोगी वस्तुओं में सिकी के साथ “मुंज” घास को भी जोड़ा जाता है ताकि उत्पाद अधिक टिकाऊ बन सके।
सिकी कला जटिल ज्यामितीय डिज़ाइनों के लिए जानी जाती है। इसमें एक निश्चित विषय के अनुसार घास कोचिपकाया जाता है और प्रतीक, रेखाएं, व आकृतियाँ उकेरी जाती हैं। मिथिलांचल में सिकी घास को शुभ माना जाताहै। यह कला कुशल हाथों, सोच-समझ और धैर्य से भरे दिल की माँग करती है।
साल 2007 में सिकी घास से बनी कलाओं को भारत सरकार द्वारा प्रतिष्ठित जीआई टैग (GI Tagged) का दर्जा दियागया। यह भारत का 46वाँ जीआई टैग प्राप्त उत्पाद बना।
रिंकू का यह प्रयास पर्यावरण के प्रति जागरूकता और पारंपरिक कला को संजोने का बेहतरीन उदाहरण है।