अठारह वर्षीय राधा पटना के एक स्टूडियो में चुपचाप बैठी है। उसका ब्रश कैनवास पर इस आत्मविश्वास से चल रहा है, मानो उस दुनिया को चुनौती दे रहा हो, जहाँ से वह आती है। उसकी परंपरागत सोच वाली समाज में बेटियों को अक्सर बोझ समझा जाता है, जिनका भविष्य सपनों से नहीं बल्कि जल्दी शादी से जुड़ा होता है। लेकिन आज वह यहाँ है—पेंटिंग कर रही है, सृजन कर रही है और अपनी आवाज़ को फिर से पा रही है। राधा अकेली नहीं है। उसकी तरह दर्जनों लड़कियाँ कला के माध्यम से नई उम्मीद पा रही हैं। इसका श्रेय जाता है युवा कलाकार सिन्नी सोश्या को, जिन्होंने उन्हें न केवल रोज़गार दिया, बल्कि आज़ादी, सम्मान और सीमाओं से परे सपने देखने का साहस भी दिया।
बिहार की सिन्नी सोश्या पटना में एक आर्ट स्टूडियो चलाती हैं। इस स्टूडियो के ज़रिए वह 55 लोगों को रोज़गार दे रही हैं और कईयों को आर्ट की ट्रेनिंग भी देती हैं। उन्होंने अपने हुनर को ही अपनी पहचान बना लिया है और आज ‘बिहार की मशहूर आर्टिस्ट’ के रूप में पूरे देश में जानी जाती हैं।
सिर्फ 27 साल की उम्र में उन्होंने अपने जुनून के दम पर जो मुकाम हासिल किया है, वह वाकई काबिले-तारीफ़ है। कभी डॉक्टर बनने का सपना देखने वाली सिन्नी को आर्थिक तंगी के चलते डॉक्टरी की पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी।
उनके पिता कोचिंग चलाते हैं और माँ नर्स हैं। दोनों चाहते थे कि बेटी एक सुरक्षित नौकरी करे, लेकिन सिन्नी की कला पर उन्हें भी भरोसा था। यही वजह है कि उन्होंने हर कदम पर उसका साथ दिया।
बचपन से ही सिन्नी को मेहंदी के कोन से डिज़ाइन बनाना पसंद था। धीरे-धीरे उन्होंने इसी कोन में एक्रेलिक कलर डालकर पेंटिंग बनाना शुरू किया। पटना में फाइन आर्ट्स की पढ़ाई के साथ वह पेंटिंग भी बनाती रहीं।
2017 में उन्होंने पहली बार अपनी पेंटिंग्स को एक प्रदर्शनी में रखा। उनकी थीम-आधारित पेंटिंग्स लोगों को बेहद पसंद आईं। कई सरकारी अफसरों ने भी उनकी तारीफ़ की। तभी उनका आत्मविश्वास और बढ़ा। इसी बीच उन्हें दिल्ली में जामिया मिल्लिया इस्लामिया में मास्टर्स के लिए इंटरव्यू देना था।
सिन्नी बताती हैं, “इंटरव्यू के दौरान ही मुझे राजधानी ट्रेन पर पेंटिंग बनाने का ऑफर मिला। इसके लिए हमें एक थीम पेश करनी थी। मैंने ‘बिहार की बेटी’ थीम चुनी। जजों को मेरा आर्टवर्क इतना पसंद आया कि मुझे राजधानी ट्रेन पर पेंटिंग का काम मिल गया।”
यही उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। उन्हें एहसास हुआ कि कला की दुनिया में भी अनगिनत संभावनाएं हैं।
इसके बाद उन्होंने डिस्टेंस लर्निंग से मास्टर्स किया और पेंटिंग व मेहंदी का काम जारी रखा। उन्होंने पटना में Designpoint नाम से स्टूडियो खोला। अब वे घर, ऑफिस, कैफ़े, होटल की दीवारों पर पेंटिंग बनाती हैं और शादियों में थीम-आधारित मेहंदी भी लगाती हैं।
सिन्नी कहती हैं, “हम शादी के लिए मेहंदी लगाते हैं तो दूल्हा-दुल्हन की कहानी पूछते हैं और उसे हाथों पर उकेरते हैं। यही हमारी पहचान है।”
आज तक वह तीन अलग-अलग ट्रेनों पर पेंटिंग बना चुकी हैं।
सिन्नी कहती हैं, “पहले मेहंदी लगाने वाले को कोई खास सम्मान नहीं मिलता था। इसे लोग टाइम पास काम समझते थे। लेकिन अब लोग हमें आर्टिस्ट कहकर बुलाते हैं। कई लड़कियां मेरे पास काम सीखने आती हैं और इसे अपना करियर बनाना चाहती हैं। यह देखकर मुझे बहुत खुशी मिलती है।”
सिन्नी की कहानी इस बात का सबूत है कि अगर काम पूरे जुनून और ईमानदारी से किया जाए, तो सफलता ज़रूर मिलती है।