कबूतर संदेशवाहक हुआ करते थे राजाओं और शासकों के, और साथ ही कबूतरबाज़ी भारतीय संस्कृति का हिस्सा बन गया। कबूतरों को प्रशिक्षित किया जाने लगा। PRAVASISAMWAD.COM अपने दिल्ली आवास में पिछले हफ़्ते जब बीमार पड़ी तो एक तो इस बात से चिढ़ हो रही
मेरे घुमक्कड़पन से चिढ़ते हैं मेरे परिवार के सदस्य! वर्जनाएँ ढेरों मिलती हैं … पर दुनिया को देख लेने की मेरी इस चाह को कोई वाजिब नहीं समझता। वे इस बात से अनभिज्ञ हैं कि चरंति वसुधां कृत्स्नां वावदूका बहुश्रुताः यानी बुद्धिमानऔर वाक्–कुशल व्यक्ति, सारी पृथ्वी का भ्रमण करते हैं ! PRAVASISAMWAD.COM ऐतरेय उपनिषद में कहा गया है कि सतत चलते रहो – चरैवति चरैवति! प्रवाह