Monday, April 29, 2024
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स्क्रीन डिटॉक्स: ख़ुद की खोज!

White smartphone with metal chain on blue background. Digital detox, dependency on tech, no gadget and devices concept

एक वो ज़माना था जब मनोरंजन के नाम पर पारिवारिक रविवासरीय अनुष्ठान रामायण महाभारत आदि धारावाहिक सुबह सवेरे की पूजा अर्चना के बाद कथा कीर्तन की तरह छोटे पर्दे पर समारोहपूर्वक देखे दिखाए जाते थे, और एक ये ज़माना है जहाँ हर कोई अपना संसार, अपना सामाजिक तामझाम, अपना पर्सनल छोटा पर्दा हथेली पर लिए घूम रहा है। पुराने समय में घर के बड़े बूढ़े की जबरन बच्चों और युवाओं को अपनी संस्कृति से रूबरू कराने  हेतु इन पौराणिक धारावाहिकों को दिखाने की क़वायद होती थी और आजकल तमाम नुस्ख़े इस बात के आजमाए जाते हैं कि अपने नौनिहालों और ख़ुद को इस अहर्निश अनंत ऑनलाइन के अंतर्जाल से कैसे निकाला जाए।

टेक्नोलॉजी और इंटरनेट ने अपना कब्ज़ा हमारे दिलोदिमाग और जीवन शैली पर ऐसा जमा लिया है कि अब निकलना नामुमकिन है। स्कूल, दफ्तर, शॉपिंग, ट्यूशन, राशन-रसद, फल-सब्जी, दवा-दारू सब कुछ तो ऑनलाइन हो गए हैं।यहां तक कि ऑनलाइन डेटिंग ऑनलाइन रिलेशनशिप का दौर भी आ चुका है।

बच्चे से लेकर बड़े बूढ़ों तक, सबकी अपनी आभासी दुनिया और इंटरनेट सबका प्रिय सखा बन इतरा रहा है।नए नए सोशल मीडिया एप्प जैसे जैसे जुड़ते गए लोग भी वैसे वैसे उसी आभासी सामाजिक संसार में भीतर और भीतर उतरते गए।शगल कब आदत बनी और आदत कब गिरफ़्त यह तय करना बड़ा मुश्किल है।  इंटरनेट और ऑनलाइन का खेल आत्मश्लाघा से शुरू होकर,कब आत्ममुग्धता पर जा पहुँचता है इसका हमें अंदाज़ा भी नहीं हो पाता। हर कोई गर्दन झुकाए दीदार-ए-स्क्रीन में लगा रहता है। कामकाज तो आजकल सब कंप्यूटर और ऑनलाइन के हिसाब वाले ही हो गए हैं उस पर मनोरंजन के लिए भी शत प्रतिशत ऑनस्क्रीन माध्यम ही चुना जाता है..चाहे वो सिनेमा हो, ओटीटी हो, टेलीविजन हो, लैपटॉप हो या मोबाइल हो ऐसे में ज्यादा स्क्रीन टाइम की वजह से धीरे धीरे कई परेशानियों की शुरुआत हो जाती है। आज कल छोटे छोटे बच्चों में अवसाद,चिड़चिड़ापन ध्यान की कमी आम  देखने को मिलती है।आँखों की समस्याओं में अप्रत्याशित इज़ाफ़ा होता जा रहा है। कमज़ोर याददाश्त, भुलक्कड़पन, बेख्याली का आलम, नींद उड़ जाना आम समस्या है।

मशहूर शायर ग़ालिब के शब्दों में कहें तो..

“बे-ख़ुदी बे-सबब नहीं ‘ग़ालिब’ 

कुछ तो है जिस की पर्दा-दारी है” 

यानि ये सब परेशानियाँ बे-सबब नहीं हैं इनके पीछे दिन-रात का मोबाइल स्क्रीन पर ताकना, उसकी आहट पर चौंकना और ख़ामोशी पर परेशान हो जाना है।

तकनीक और स्क्रीन के इस अपरिहार्य वर्चस्व का ख़ात्मा होना तो सम्भव नहीं है किन्तु इसपर लगाम लगाने का समय आ गया है। इसी सिलसिले  में कई देशों, जैसे अमेरिका, चीन ब्रिटेन  ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में स्क्रीन डिटॉक्स का ट्रेंड चल पड़ा है। हालांकि भारत में अभी यह विमर्श नया है लेकिन अब लोग इस बारे में सजग हो रहे हैं और ये कहना गलत नही होगा कि स्क्रीन डिटॉक्स धीरे धीरे वक़्त की जरूरत बनता जा रहा है।

क्या है स्क्रीन डिटॉक्स?

स्क्रीन डिटॉक्स, पर्दे यानी स्क्रीन के मायाजाल से खुद को कुछ समय तक दूर रखने की कोशिश है। यह एक नियत समय तक रोज़ स्क्रीन से दूर रहने की कवायद है।लोग कभी कभार कुछ दिन या हफ्तों तक अपने मोबाइल फ़ोन और किसी भी प्रकार के डिजिटल यंत्र और सम्पर्क के साधनों से दूर रहते हैं जिसे डिजिटल डिटॉक्स कहा जाता है लेकिन स्क्रीन डिटॉक्स का अर्थ है दृश्य पटल या स्क्रीन से कुछ समय तक नियम पूर्वक दूरी।। इसको अगर अपनी दिनचर्या में शामिल कर लिया जाए तो यह हमारे जीवन में बहुत सकारात्मक प्रभाव ला सकती है।

 कैसे करें स्क्रीन डिटॉक्स?

 

 

 

स्क्रीन डिटॉक्स करने के लिए मोबाइल के उपयोग को दृश्य से श्रव्य की ओर ले जाने की जरूरत होती है।अपनी दिनचर्या के कुछ काम हम पर्दे यानी स्क्रीन देखे बगैर करने की शुरुआत से कर सकते हैं। सुबह की सैर,  आसन प्राणायाम,स्नान ध्यान,  चाय नाश्ता, ड्राइविंग आदि करते वक़्त एहतियातन मोबाइल को हाथ न लगाएं। जितना हो सके मेसेजिंग टेक्सटिंग से बचें क्योंकि फ़ोन पर बात करना एक बेहतर विकल्प है जो आपका स्क्रीन टाइम तो बचाता ही है साथ ही  पर्सनल यानी व्यक्तिगत जुड़ाव को भी बढ़ाता है।ऑफिस के अनिवार्य स्क्रीन टाइम के अतिरिक्त  स्क्रीन इंटॉक्सिफिकेशन यानी सोशल प्लेटफॉर्म तथा अन्य जानकारी, सूचना, खरीद-फ़रोख़्त के लिए समय नियत कर  उसकी प्लानिंग ठीक तरीके से कर लेनी चाहिए। हम कब ऑनलाइन होंगे, और कितनी देर ऑनलाइन होंगे इसका एक बंधा हुआ समय होना चाहिए। 24 घण्टे में 5-6 घण्टे जो हम औसतन  सो कर गुज़ारते हैं, हमारा स्क्रीन डिटॉक्स टाइम होता ही है लेकिन इस समय को बढ़ा कर कमसेकम 10-12 घण्टे करने की जरूरत है।

महीने में कम से कम एक पूरा दिन स्क्रीन डिटॉक्स का रख के देखना चाहिए जिसे धीरे धीरे दो से तीन दिन तक बढ़ाया भी जा सकता है। 

स्क्रीन डिटॉक्स: आश्चर्यजनक परिणाम!

आज के तकनीकी दौर में पर्दों से पर्दादारी ख़ुद से मिलने का दरवाज़ा है।

आभासी दुनिया को दिया जाने वाला समय अगर परिवार, माता पिता बच्चों के साथ मिलकर बिताया जाए तो रिश्ते मजबूत होते हैं परिवार में प्रेम और सौहार्द बढ़ता है। नींद की गुणवत्ता बढ़ जाती है ।तनाव और चिड़चिड़ापन ख़त्म हो जाता है। हमारी पुरानी हॉबीज़ जैसे किताबें पढ़ना, लिखना, पेंटिंग, बागबानी, योग ध्यान, संगीत-नृत्य कुछ भी हम नए सिरे से शुरू करने का समय मिलता है।

यक़ीन मानिए, बस एक दिन स्क्रीन डिटॉक्स आज़मा कर देखिये और अगले दिन दुनिया सुबह की ओस में नहाई हुई नर्म हरी घास पर नंगे पांव चलने के तरोताज़ा अहसास जैसी लगेगी। जरूरत है तो बस दृढ़ संकल्प और इच्छाशक्ति की। कर के देखिये, थोड़ा मुश्किल तो है पर असम्भव नहीं!

Toshi Jyotsna
Toshi Jyotsna
(Toshi Jyotsna is an IT professional who keeps a keen interest in writing on contemporary issues both in Hindi and English. She is a columnist, and an award-winning story writer.)

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