साइलेंट कन्वर्सेशन्स’: जनजातीय कलाकारों की कूची से बाघ और सहअस्तित्व की कहानियाँ - pravasisamwad
October 27, 2025
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साइलेंट कन्वर्सेशन्स’: जनजातीय कलाकारों की कूची से बाघ और सहअस्तित्व की कहानियाँ

ताडोबा–अंधारी टाइगर रिज़र्व की प्रसिद्ध बाघिन माया की कहानी से लेकर असम के काज़ीरंगा, राजस्थान के रणथंभौर और अरुणाचल प्रदेश के कमलांग के बाघों से जुड़ी लोककथाओं तक  जहाँ स्थानीय समुदाय बाघ को परिवार का हिस्सा मानते हैं ऐसी ही कथाओं को जीवंत करती लगभग 250 पेंटिंग्स 50 जनजातीय कलाकारों द्वारा बनाई गई हैं। ये कृतियाँ अब नई दिल्ली के इंडिया हैबिटैट सेंटर में प्रदर्शित हैं।

“साइलेंट कन्वर्सेशन्स: फ्रॉम मार्जिन्स टू द सेंटर” शीर्षक वाली यह प्रदर्शनी 30 से अधिक टाइगर रिज़र्व के बफर जोन में रहने वाले कलाकारों के जीवन और प्रकृति के साथ उनके सामंजस्य को दर्शाती है। हर चित्र यह बताता है कि ये समुदाय किस प्रकार वन्य जीवन के संरक्षण में अपनी अहम भूमिका निभाते हैं।

जनजातीय कला, संस्कृति और संरक्षण के संगम के रूप में देखी जा रही यह प्रदर्शनी दिल्लीवासियों को भारत के वनों और उनमें बसती कहानियों की आत्मा से जोड़ने का आमंत्रण देती है। यह प्रदर्शनी रविवार तक खुली रहेगी।

इसका आयोजन संकला फाउंडेशन, एक गैर-लाभकारी संस्था, द्वारा किया गया है, जिसमें राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) जो पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) के अंतर्गत आता है और इंटरनेशनल बिग कैट एलायंस (IBCA) का सहयोग है। इस पहल का उद्देश्य कला के माध्यम से संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाना है।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के महासचिव भरत लाल, जो इस प्रदर्शनी के संरक्षक हैं, इसे ऐसा मंच मानते हैं जो न केवल बाघ संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाता है, बल्कि उन जनजातीय समुदायों की मौखिक परंपराओं को भी जीवित रखता है जो वर्षों से इन बाघों के साथ सहअस्तित्व में हैं।

इन कलाकृतियों में गोंड, वारली, भील, सोहराय, पटचित्र, पीथोरा और लोहाकम जैसी विविध जनजातीय कला शैलियों का संगम देखने को मिलता है, जो कलात्मक अभिव्यक्ति के साथ पारिस्थितिक संतुलन का भी उत्सव मनाती हैं।

संकला फाउंडेशन की टीम के अनुसार, इन कलाकृतियों को विक्रय हेतु भी रखा गया है, ताकि कलाकारों — जो अधिकांशतः जनजातीय पृष्ठभूमि से हैं  को प्रोत्साहन मिले और लोग इन चित्रों के माध्यम से भारत की वन्यजीव विरासत और लोककथाओं को अपने घरों और कार्यालयों का हिस्सा बना सकें।

अपने चौथे वर्ष में प्रवेश कर चुकी यह प्रदर्शनी “साइलेंट कन्वर्सेशन्स” समुदायों, कला और संरक्षण के बीच एक मजबूत सेतु का निर्माण करती है यह याद दिलाते हुए कि हर बाघ की कहानी, उन लोगों की भी कहानी है जो उसके साथ रहते हैं।

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