Sunday, November 17, 2024

स्त्री-विमर्श

स्त्रियों का क्रोध प्रतिशोध चाहता है और वह इसके लिए कोई भी कीमत अदा करने को तैयार हो उठती। प्रतिशोध वे लें किसी से भी, अंततः प्रभावित पुरुष ही होते हैं।

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आज मेरा मन स्त्री-विमर्श का हो गया है। वैसे भी स्त्री-विमर्श पुरुषों के लिए सबसे रुचिकर विषय होता है। चालीस पार करने के पश्चात पुरुष-मन में यूँ भी आसक्ति बढ़नेलगती है। यह लिप्सा उम्र के साथ कितनी बढ़ती है इसका अंदाजा आप इस   बात से लगाएँ कि बूढ़े ययाति ने अपने पुत्र पुरु से उसका यौवन ले लिया था, हालाँकि कुल भोग-विलास के बाद ययाति इस नतीजे पर पहुँचे थे कि भोग से भोग-लिप्सा मिटाना घी से आग बुझाने जैसा है।

स्त्रियों का क्रोध प्रतिशोध चाहता है और वह इसके लिए कोई भी कीमत अदा करने को तैयार हो उठती है। प्रतिशोध वे लें किसी से भी, अंततः प्रभावित पुरुष ही होते हैं। अभीऊपर मैंने जिन ययाति की बात की वास्तव में उनका असमय बुढ़ापा उनकी पत्नी देव्यानी के प्रतिशोध का ही परिणाम था।

देवयानी दैत्य-गुरु शुक्राचार्य की कन्या थीं। उस समय दैत्यों के राजा वृषपर्वा थे और उनकी कन्या का नाम था शर्मिष्ठा। देवयानी और शर्मिष्ठा सहेलियाँ थीं और दोनों में प्रचुरकुलाभिमान था। एक दिन देवयानी के द्वारा शर्मिष्ठा को ठिठोली में नीच कुल का बताने पर शुरू हुई बहस, हाथापाई तक पहुंच गई। राजा की पुत्री होने के कारण शर्मिष्ठा नेआचार्य पुत्री देवयानी को भिक्षुक कुल का बताया और चूंकि वे दैत्य कन्या थीं सो शारीरिक बल की श्रेष्ठता के कारण उसने देवयानी को बल भर पीटा, तत्पश्चात उसे कुएँ मेंधकेल दिया और उसे मृत समझकर वहाँ से चली गई।

स्त्री-विमर्श पुरुषों के लिए सबसे रुचिकर विषय होता है। चालीस पार करने के पश्चात पुरुष-मन में यूँ भी आसक्ति बढ़ने लगती है।यह लिप्सा उम्र के साथ कितनी बढ़ती है इसका अंदाजा आप इस   बात से लगाएँ कि बूढ़े ययाति ने अपने पुत्र पुरु से उसका यौवन ले लिया था, हालाँकि कुल भोग-विलास के बाद ययाति इस नतीजे पर पहुँचे थे कि भोग से भोग-लिप्सा मिटाना घी से आग बुझाने जैसा है

रात्रि को जब पुत्री घर न लौटी तो शुक्राचार्य को चिन्ता हुई। उन्होंने पुत्री को खुजवाया  और उसे लेने पहुंचे, पर जब उन्होंने सारी बात जानी और यह भी जाना कि पुत्री किसीभी प्रकार वृषपर्वा के राज्य में लौटने को तैयार नहीं हैं तो वे वृषपर्वा के दरबार में पहुँचे। वहाँ उन्होंने दैत्यराज से अपने राज्य छोड़कर जाने की बात कही जिसपर वृषपर्वाविचलित हो उठे। उन्होंने तरह-तरह से मिन्नतें की, शर्मिष्ठा ने अपनी सहेली से क्षमा याचना की पर देवयानी का मन प्रतिशोध की अग्नि में धधक रहा था। उसने क्षमा की शर्तरखी कि जहाँ भी देवयानी का विवाह होगा, शर्मिष्ठा भी वहाँ उसकी परिचारिका बनकर उसके साथ जाएगी। दैत्यराज और शर्मिष्ठा ने यह शर्त मान ली और जब देवयानी काविवाह ययाति से हुआ तब शर्मिष्ठा परिचारिका बनकर दुल्हन के साथ ही विदा हुई।

स्त्री देवयानी ही नहीं थी अपितु शर्मिष्ठा भी थी। उसने देवयानी से प्रतिशोध लेने के लिए ययाति के साथ गुप्त विवाह कर लिया। ययाति को इस बात की भनक तक न थी औरमात्र पुरुष सुलभ उदारता में उन्होंने शर्मिष्ठा से विवाह किया था। यूँ भी कोमल मन और उदार हृदय पुरुषों से प्रायः दासियों की पीड़ा देखी नहीं जाती और वे उस से सहानुभूतिजनित प्रेम कर बैठते हैं । जब यह भेद  देवयानी   पर खुला तब बेचारे ययाति उसके कोपभाजन बने और शुक्राचार्य से शाप पा असमय वृद्ध हो गए।

ययाति का मन तब भी न देवयानी के प्रति और न शर्मिष्ठा के प्रति ही कलुषित हुआ। उनको सिर्फ अपना यौवन चाहिए था वह भी अपनी पत्नियों से प्रेम करने हेतु।

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