आज़ादी का सच! - pravasisamwad
August 15, 2021
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आज़ादी का सच!

यद्यपि यह कविता आज़ादी की रजत जयंती (१९७२) के अवसर पर लिखी गयी थी, किंतु आज के समय में भी अत्यंत सामयिक है!

कवि – स्व. रामकृष्ण सिन्हा

Title: Mother – Art by Kirtika

चाँदी काट रहे जो उनकी

रजत जयंती आज ,

क्यों ना मनाएँ धूम

पहनकर धवल रजत का ताज,

पहनेंगे फिर स्वर्ण ताज,

जब होगी स्वर्ण जयंती,

हीरों से लदकर मनाएँगे

हीरकमयी जयंती,

पर किसान मज़दूर

भीतर नहीं अन्न का दाना

यह देखो दुर्भिक्ष खड़ा है

नया पहनकर बाना ।

*************

रुकने को नृशंस शोषण है जुबली नहीं मनाकर ,

आज़ादी की करो दुआएँ अपने लाल चढ़ाकर ।।

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