Monday, December 23, 2024

कहानी: गुलाब फिर गुलाब है

जीवन में कई बार और लगभग हर बार ऐसा  होता है कि सबसे मोहक और हृदहग्राही भावों का कोई भविष्य नहीं होता

PRAVASISAMWAD.COM

फूल की सबसे सफल परिणति है बीज हो जाना, बाकी मन मोहना, भौंरों को रिझाना, मधुमक्खियों को शहद के लिए रस देना आदि सहयोगी क्रियाएँ हैं | इस हिसाब से आम के मंजर गुलाबों की अपेक्षा अधिक सफल हैं क्योंकि उनमें भविष्य है  संभावनाएं  हैं , फिर भी गुलाब गुलाब है | जीवन में कई बार और लगभग हर बार ऐसा  होता है कि सबसे मोहक और हृदहग्राही भावों का कोई भविष्य नहीं होता |  वे गुलाबों की ही भाँति मन को मोहते हैं, जीवन में खुशबु घोलते हैं और फिर समाप्त हो जाते हैं या फिर किसी डायरी में सूख जाते हैं| डायरी में सूखे गुलाब अपनी खुद  की समाधि नहीं होते अपितु प्रेम के दस्तावेज़ होते हैं , जिन्हें प्रतीक रूप में डायरियाँ संजोह रखती हैं | उनके नज़रों से गुजरने मात्र से भावनाओं का ऐसा ज्वार निकल पड़ता है कि बस पूछो ही मत |

पुरानी किताबों को लॉक-डाउन  के समय झाड़ते व साफ़ करते समय एक ऐसा ही दस्तावेज़ रेणु की डायरी से गिर पड़ा |  यह दस्तावेज़ लगभग २४ -२५  वर्ष पुराना है, जब रेणु कक्षा आठवीं या सातवीं की छात्रा थीं |  उम्र का यह  पड़ाव गुलाब को गेहूँ से अधिक आवश्यक मानता है और उन्हीं दिनों का यह गुलाब रेणु की डायरी में पड़ा है | यह गुलाब रेणु को किसी ने दिया नहीं था, बल्कि इसे रेणु ने ही किसी सार्वजानिक बगीचे से तोड़ा था |  इस गुलाब पर वह बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी डालना चाहती थी, वह चाहती थी कि यह गुलाब उसके प्रेम का संदेशा लेकर उसके सहपाठी तुषार तक जाए|  वैसे रेणु तब भी अभी के समान ही बहुत सुन्दर थी और तुषार तब भी अब जैसा ही अलसाया हुआ सा, थका हुआ सा, सुस्त सा, परन्तु ईमानदार और हँसमुख |

२४-२५ सालों में ज़िन्दगी बहुत आगे निकल जाती है | सारे कोमल भाव यथार्थ के थपेड़ों को सहते सहते ख़त्म हुए से जान पड़ने लगते हैं परन्तु जैसे कोई बीज जीवन को छुपा रखती है ठीक उसी प्रकार हमारा ह्रदय भी इन भावों को समेटे रहता है , और ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार अनुकूल परिस्थिति पाते ही बीज में से अंकुर फूट पड़ते हैं, थोड़ी सा भी मौका पाते ही सारे कोमल भाव इस कदर उभर आते हैं कि हम पर हावी हो जाते हैं | उन भावनाओं में बह चुकी रेणु को याद आया कि फेसबुक पर तुषार का फ्रेंड रिक्वेस्ट आया हुआ है और जब रिक्वेस्ट आ ही चुका है तो एक बार बात करके हाल चाल लेने में तो  ऐसी  कोई बुराई नहीं |

रेणु फेसबुक पर मैत्री स्वीकार करती है और इससे पहले कि वह तुषार को टोके, तुषार की तरफ से एक औपचारिक हेल्लो आ जाता है | हेल्लो है तो औपचारिक परन्तु अब ४० के हो चुके तुषार के अकेले होने की कहानी भी कह रहा है | तुषार एक प्राइवेट कंपनी में मैनेजर है, उसकी एक बेटी है जो बहुत छोटी है और पत्नी से उसके सम्बन्ध मधुर नहीं हैं | वह डाल्टेनगंज में अकेला रहता है और वहीँ नौकरी करता है | रेणु से उसको कोई उम्मीद नहीं है, बस उसे ज़रुरत है एक दोस्त की | उसका अकेलापन हमसफ़र नहीं ढूँढता है बल्कि ऐसा कोई साथी ढूँढता है जो कम से कम दो कदम तो साथ चले | रेणु का भी अपने पति से सम्बन्ध कुछ ठीक नहीं है और वह अपने १२ वर्षीय बेटे को लेकर अपने मायके गोड्डा में रहती है | वह अपने जीवन में बहुत व्यस्त है और शायद वह खाली होना भी नहीं चाहती | वह नहीं चाहती कि देवी रति उसे रत्ती भर भी अपने प्रभाव  में ले सकें | आवश्यकताओं की सूची में रोटी आज भी चाँद से बहुत ऊपर है |

...इत्तेफाक है कि दोनों जानते हैं कि इस रिश्ते का कोई भविष्य नहीं, पर मनुष्यता पर जितना उपकार आम का या गेहूं का है उससे कहीं अधिक उपकार गुलाब का है| गुलाब है तो ज़िन्दगी सुन्दर है

उस औपचारिक हेल्लो के बाद फिर दोनों ने एक दूसरे से बातें की, एक दूसरे का दर्द साझा किया| दोनों दूरभाष के माध्यम से ही संपर्क में हैं पर क्या कोई गले मिलकर रोया होगा जो वे रोये| आँसू जो कोई पूछ न मिलने से आँखों में ठिठके पड़े थे, आज सृष्टि को लील लेना चाहते थे | अब दोनों को बातें करते दो दिन बीत गए हैं | तुषार खुश है, रेणु भी खुश है | दोनों खुश इसलिए नहीं हैं कि दोनों को दर्द की कोई दवा मिल गई है, दोनों खुश हैं क्योंकि दोनों को गुलाब मिल गया है | इत्तेफाक है कि दोनों जानते हैं कि इस रिश्ते का कोई भविष्य नहीं, पर मनुष्यता पर जितना उपकार आम का या गेहूं का है उससे कहीं अधिक उपकार गुलाब का है| गुलाब है तो ज़िन्दगी सुन्दर है |

************************************************************************

Readers

These are extraordinary times. All of us have to rely on high-impact, trustworthy journalism. And this is especially true of the Indian Diaspora. Members of the Indian community overseas cannot be fed with inaccurate news.

Pravasi Samwad is a venture that has no shareholders. It is the result of an impassioned initiative of a handful of Indian journalists spread around the world.  We have taken the small step forward with the pledge to provide news with accuracy, free from political and commercial influence. Our aim is to keep you, our readers, informed about developments at ‘home’ and across the world that affect you.

Please help us to keep our journalism independent and free.

In these difficult times, to run a news website requires finances. While every contribution, big or small, will makes a difference, we request our readers to put us in touch with advertisers worldwide. It will be a great help.

For more information: pravasisamwad00@gmail.com

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisement -

EDITOR'S CHOICE