हम भूल के भँवर में ही फँस कर रह जाते हैं और परिणति तक पहुँच नहीं पाते
भूल — सीखने की प्रक्रिया है जिसकी परिणति सुधार तक ले जाती है ……| किन्तु जीवन की विडम्बना है कि हम भूल के भँवर में ही फँस कर रह जाते हैं और परिणति तक पहुँच नहीं पाते |
ठीक वैसे ही जैसे एक नाविक नाव पर बैठता है , चप्पू चलाता जाता है और जब उसकी तंद्रा टूटती है तो वह अपने आप को उसी स्थान पर पाता है जहाँ से उसने चप्पू चलाना प्रारम्भ किया था क्योंकि उसने कील से रस्सी को खोला ही नही था | अतीत से सीखना और निरंतर आगे की ओर बढ़ना यही जीवन है |
— सं. योगप्रिया (मीना लाल)