हमारे जीवन के दो पक्ष हैं– सांसारिक और आध्यात्मिक| शांतिपूर्ण एवं सुखमय जीवन के लिए इन दोनो में समन्वय आवश्यक है| हमारी चेतना बहिर्मुखी है। यह उस चुम्बक के समान है जो सांसारिक सुख रुपी लोहे के कणों की ओर आकर्षित होती है| वहाँ यह सुख- दुःख , प्रेम – घृणा , मोह – माया रूपी अनुभवों को भोगती है|
आध्यात्मिकता उस लकड़ी के टुकड़े के समान है जिसकी ओर चेतना का बहाव है ही नहीं, यद्यपि लकड़ी में ही वह अग्नि तत्व विद्यमान है जो प्रज्वलित होकर अंधकार को दूर करने में समर्थ है|
— सं. योगप्रिया (मीना लाल)