योग के आयाम: क्षमा - pravasisamwad
August 7, 2021
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योग के आयाम: क्षमा

Sketch by Shailja

योग की श्रृंखला में  “क्षमा” एक महत्वपूर्ण सीढ़ी है जो अष्टांग योग के प्रथम पायदान “यम” के अंतर्गत आता है। हालांकि महर्षि पतंजलि ने अपने यम में इसकी चर्चा नहीं की है किन्तु महर्षि याज्ञवल्क्य के दस यमों में क्षमा भी एक है।

यूं तो क्षमा बहुत छोटा और आसान सा लगने वाला शब्द है किन्तु व्यवहारिक जीवन में यह हमारे व्यक्तित्व के रुपांतरण का बीज है। पिछले कई दशकों से हमने योग की चर्चा हर घर, देश और विदेशों में सुनी है किन्तु इसके सकारात्मक आयाम हमें छू तक नहीं पाये बल्कि हमारी मानसिकता में दिन प्रतिदिन विकृतियों का ही समावेश होता गया है।

आखिर योग का वह कौन सा पक्ष है जिसे हमने अनदेखा करने की भूल की है? सन 2013 में बिहार योग विद्यालय, मुंगेर ने ‘विश्व योग सम्मेलन’ का आयोजन किया और उसी के पश्चात वहां के परम आचार्य, पद्मभूषण परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती जी ने योग के उस अछूते अध्याय का पुनरावलोकन अपने घोर मंथन के आधार पर किया :— योग के आध्यात्मिक पक्ष का। अर्थात मानव जीवन में सकारात्मक गुणों को पुनः स्थापित करना।

क्षमा सिर्फ वाणी से नहीं बल्कि हृदय से होनी चाहिए जो अभ्यास की प्रक्रिया है। जिसका सरलतम  मार्ग स्वामी जी ने बताया है :– रात्रि में सोने से पहले आत्म विश्लेषण करें। पूरी घटना को चलचित्र की भांति देखें और सामने वाले के साथ साथ अपनी प्रतिक्रिया का भी अवलोकन करें द्रष्टा भाव से विचार करें। जरूरत पड़ने पर दूसरे को क्षमा करने के साथ साथ स्वयं भी क्षमा याचना करें। ऐसा प्रतिदिन रात में सोने से पहले करें। आप देखेंगे कि कुछ दिन , महीनों के बाद जिन्हें देखकर आप क्रोधित हो उठते थे उसकी तीव्रता घटने लगेगी। पूर्ण श्रद्धा एवं विश्वास से किया गया प्रयास आपके व्यवहार में एक सकारात्मक परिवर्तन को जन्म देगा और तब आप क्षमा करने में हृदय से सफल हो पायेंगे। सही मायने में यही योग की परिणति है।

— सं. योगप्रिया (मीना लाल)

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