अब स्नातक पूरा होने को था, नौकरी मिलने की कोई संभावना नहीं थी और अपने विषय से मेरा कोई सरोकार नहीं था ऐसे में मैंने अपना भविष्य सुरक्षित रखने के लिए (नाकारा घोषित होने को तत्काल स्थगित रखने के लिए) प्रयोजनमूलक हिन्दी (पत्रकारिता) में दाखिला लिया
स्नातक में मेरा विषय सांख्यिकी प्रतिष्ठा थी, जिसने एक छात्र के रूप में मेरी प्रतिष्ठा काफी कम की और साथ ही साथ मेरे पल्ले भी उतनी ही पड़ी जितनी कि भारत सरकार के सांख्यिकीविभाग के आँकड़ों में सच्चाई होती है(लगभग शून्य)। अब स्नातक पूरा होने को था, नौकरी मिलने की कोई संभावना नहीं थी और अपने विषय से मेरा कोई सरोकार नहीं था। ऐसे में मैंनेअपना भविष्य सुरक्षित रखने के लिए (नाकारा घोषित होने को तत्काल स्थगित रखने के लिए) प्रयोजनमूलक हिन्दी (पत्रकारिता) में दाखिला लिया। इस काल का मेरे जीवन में वहीमहत्त्व है जो संस्कृत काव्य में श्लोक चतुष्टय का है।
इन दो वर्षों में मैंने अपना खोया हुआ आत्मविश्वास वापस पाया। शेरो-ओ-सुख़न की ज़िन्दगी में घनघोर वापसी हुई। हिन्दी विभाग के हिसाब से मेरी अंग्रेजी और अंग्रेजी विभाग के हिसाबसे मेरी हिंदी अच्छी है। इसका प्रयोग कर मैंने प्रयोजनमूलक हिंदी के विद्यार्थियों के मध्य अपने अच्छे विद्यार्थी होने का भ्रम बनाकर रखा। अगर कोई झूठ आप बराबर बोलते हैं तो आपकाअपना हृदय भी उसे सच मानने लगता है और इसी प्रकार अपनी झूठी छवि पर मैं खुद ही मुग्ध हो गया। इसी आत्म-मुग्धता में मैंने कक्षा की सबसे सुंदर दिखने वाली(सिर्फ दिखने वाली) महिला (तब कन्या) से इज़हार-के-मोहब्बत किया। बचपन में पढ़ी कविता राधा-सौंदर्य के हर स्तर पर वह खड़ी उतरती थी, केवल ‘पिक को चुरायो बैन’ की जगह ‘मिर्च को चुरायो बैन’होता तो वह इस कविता का ही मूर्त रूप होती। मेरी इज़हार का जो जवाब मुझे मिला, उसी का पूर्वानुमान कर गालिब ने सदियों पहले ये शेर कहा था।
निकलना खुल्द से आदम का सुनते आए थे लेकिन
बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले
इश्क़ अधूरा ही रहा पर कोर्स अपने नियत समय पर पूरा हुआ। अब स्नातक बेरोज़गार से मैं परास्नातक बेरोज़गार हो चुका था। अब मेरा पसंदीदा शेर
और भी दुख है ज़माने में मोहब्बत के सिवा
हो चला था।
क्रमशः…
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