Friday, November 22, 2024

दास्तान-ए-इश्क़ भाग # 5

सभी कृष्ण सुदामा से प्रेम नहीं करते, प्रायः नहीं करते।जो कमजोर दिखता है, उसको कुचलने की कोशिश की जाती है

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नौकरी मिल गई और अब मन थोड़ा निश्चिंत हुआ। रोटी की चिंता दूर होने पर चाँद को देखने और उसकी सुंदरता पर मोहित होना उपलब्ध हो जाता है।

ABC बैंक ने प्रारंभिक प्रशिक्षण के लिए हमें जयपुर भेजा जहाँ हमें लगभग एक सवा महीने का प्रशिक्षण लेना था। हमारे संस्थान से हम तीन लोग वहाँ गए थे, जिनमें से एक हमारीअपनी रेश्मा जी भी थीं, वही लम्बी जुदाई, बड़ी आँखों और बड़ी ज़ुल्फों वाली। जयपुर स्टेशन से प्रशिक्षण केंद्र तक हम एक ही गाड़ी से गए थे, उनके पिता जी भी साथ ही थे। उनका मुझपर विशेष अनुराग रहा और उसके दुष्परिणाम स्वरूप उन्होंने हमें भाई-बहन करार दिया।

अब हम जयपुर में प्रशिक्षण केंद्र में थे। वहाँ न केवल हमारे क्लास और कमरे एयर कंडीशन थे बल्कि सुस्वादु भोजन की भी व्यापक व्यवस्था थी। वहाँ पंजाब-राजस्थान के भी प्रशिक्षु आए थे और देखने तथा रहन-सहन के मामले में उनके और हमारे बीच कृष्ण और सुदामा का फर्क था।

सभी कृष्ण सुदामा से प्रेम नहीं करते, प्रायः नहीं करते। जो कमजोर दिखता है, उसको कुचलने की कोशिश की जाती है।

ऐसे ही तनाव – झुकाव के साथ, अपने से लंबी लड़कियों की उपस्थिति में, बिना झुके बिना किसी से टकराए प्रशिक्षण भी पूरा हुआ और हम सब अपने-अपने पदस्थापन के स्थान की ओर रवाना हुए।

एक शाम हम सभी साथी बैठकर आपस में अपनी कलात्मक प्रतिभा का प्रदर्शन कर रहे थे और दूसरे के प्रदर्शन का आनंद ले रहे थे। हम सभी लगभग 25-30 वर्ष के आयुवर्ग में थे और उस उम्र में हर व्यक्ति के अंदर अपने को बेहतर दिखाने की चाह होती है। इसका सबसे सरल ज़रिया होता है दूसरे को नीचा दिखाना।

इसी निकृष्ट भावना से ग्रस्त कुछ खलों ने मुझसे गाना सुनने की ज़िद की। संगीत का और मेरा परस्पर कोई संबंध ही नहीं है। मैं बेसुरा कहे जाने योग्य भी नहीं और मैंने अपनी यह विवशता व्यक्त करते हुए डॉ कुमार विश्वास की कविता “कोई दीवाना कहता है” का पाठ किया। सभागार में उपस्थित सर्वजन साधु साधु कहने लगे। मुझपर और कविताएँ सुनाने का दबाव डाला गया। मुझे सबसे अधिक सुनाने योग्य कविता मधुशाला ही लगी, परन्तु जनता पहले बंध के बाद ही ऊब गई और उसी दिन जनतंत्र पर से मेरा विश्वास उठ गया।

ऐसे ही तनाव-झुकाव के साथ, अपने से लंबी लड़कियों की उपस्थिति में, बिना झुके बिना किसी से टकराए प्रशिक्षण भी पूरा हुआ और हम सब अपने-अपने पदस्थापन के स्थान की ओर रवाना हुए।

क्रमशः

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