धूमिल आज़ादी के पहले और बाद का ज़ख़्म खाया दिलो-जिगर रखते थे , जीवन मूल्यों और सामाजिक संरचना , अवसरवादिता और ज़िंदगी से जूझते मन – प्राण की एकदम नंगी तस्वीर प्रस्तुत करते रहे ,अपने इतने अल्प-काल के जीवन में। PRAVASISAMWAD.COM सुदामा पांडेय धूमिल को पढ़ती हूँ