stories Archives - pravasisamwad
Browse Tag

stories

दास्तान-ए-इश्क़ भाग #6

इश्क़ के अंकुर निकले और वे भी वहाँ जहाँ इसकी संभावना सबसे कम थी। यह मेरे जीवन का सबसे सेक्युलर काल था PRAVASISAMWAD.COM मेरा पहला पदस्थापन गया हुआ था, जो गया हुआ पदस्थापन ही था। गया के विषय में प्रचलित है कि वहाँ की नदी में पानी नहीं, पहाड़ों पर पेड़ नहीं और आदमी में माथा नहीं। पहले दो तो स्पष्ट ही दिख जाते हैं, तीसरे के लिए कुछ वक़्त गया में बिताना पड़ता है। ABC बैंक की AC बिगड़ी हुई थी, संस्कृति सुधार की सीमाओं को लाँघकर बिगड़ी हुई थीं और ऐसे में यह ख्याल कि फ़ैज़ ने यह शेर ABC बैंक वालों को ही ध्यान में रखकर लिखा होगा सहसा मन मे आ ही जाता है। दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया तुझ से भी दिल–फ़रेब हैं ग़म रोज़गार के कहने को दो शिफ़्ट लगती थी पर हम सुबह 8 से शाम 8 तक कैश काउंटर चलाते थे। फुर्सत साँस लेने की भी नहीं थी, लेकिन जीवन का प्रस्फुरण आदर्श परिस्थितियों का मोहताज नहीं होता। इश्क़ के अंकुर निकले और वे भी वहाँ जहाँ इसकी संभावना सबसे कम थी। यह मेरे जीवन का सबसे सेक्युलर काल था और इस काल में मैं हिन्दू-मुसलमान में परस्पर वैवाहिक संबंधों का जबरदस्त पक्षधर रहा। कुछ दिनों बाद मैंने अपना ध्यान धार्मिक एकता से हटाकर जातीय एकता पर लगाया। इश्क़ ने स्वयंसेवकों की शाखा से मुझे ऐसा तोड़ा कि मैं न मनुवादी ही रहा, न संघी। ख़ैर, यहाँ मयकशी में मैंने नित नए परचम लहराए। सुबह 6 बजे तक पीते रहने के बाद पौने 8 बजे शाखा में उपस्थित होने से लेकर, शाम 8 बजे से रात 11 बजे तक शाखा में पीने तक, सब कुछ किया गया। इस काल में मुझे ज्ञात हुआ कि भारतीय स्त्रियों को शराब से कुछ विशेष बैर है। यह ज्ञान आते-आते जीवन में 28 पतझड़ बीत चुके थे। इस तरफ़ बहार शायद आई ही नहीं या आई भी तो बिना मुझसे मिले चली गई। अकबर इलाहाबादी का यह शेर पढ़ते हुए वक़्त कट रहा था वो गुल हूँ ख़िज़ाँ ने जिसे बर्बाद किया है उलझूँ किसी दामन से मैं वो ख़ार नहीं हूँ और तब तक शाखा प्रबंधक के पद पर प्रोन्नति के साथ पदस्थापना का पत्र मिला। अब लगने लगा कि बस-अंत ही नहीं होता, बसन्त भी होता है। क्रमशः… ************************************************************************ Readers These
Go toTop