इंद्रियनिग्रह
योग ने सदैव मानव जीवन के कल्याण हेतु मनोनिग्रह एवं इंद्रियनिग्रह की बात की है|
निग्रह— अर्थात् — निः—-नियंत्रण में करना
ग्रह—- जिसको ग्रहण किया है
अब प्रश्न यह उठता है कि जो मन और इंद्रियाँ प्रकृति ने हमें अमुल्य निधि के स्वरूप प्रदान की हैं उस पर नियंत्रण क्यों औरकैसे ? ईश्वर ने इस सृष्टि में जितने भी पदार्थ डाले चाहे वह जड़ हो अथवा चेतन सबका एक प्रयोजन है, ताकि शुद्धआनन्दमयी चेतन स्वरूप अपने आपको, अपनी कला को , अपने सदगुणों को इंद्रियों के माध्यम से व्यक्त कर सके| अतः मनएवं इंद्रियों का विचार पूर्वक सदुपयोग करना ही हमारा उद्देश्य होना चाहिए |
भक्ति की शुरूआत प्रेम की भावना से होती है
भक्ति जीवन में एक मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक परिवर्तन है| इसका संबंध आन्तरिक भावना से हैं जो व्यक्तिगत है, मनऔर मस्तिष्क से कतई नही है| भक्ति की शुरूआत प्रेम की भावना से होती है जो सीमित न होकर असीमित होती है| यह एकउर्जा है जिसमें अपार शक्ति निहित है| इसे बतलाया नही जा सकता सिर्फ अनुभव किया जा सकता है| नारद भक्ति सूत्र मेंकहा गया है——“अनिर्वचनीयं प्रेम स्वरूपम मूकास्वादनवत् ”
अर्थात् प्रेम का स्वरूप वर्णनातीत है| यह गूंगे के स्वाद लेने के समान है|भक्ति का मतलब है सच्चा प्रेम—-” सा त्वमस्मिनपरमप्रेमरूपा ”