मन एवं इन्द्रियाँ
मन एवं इन्द्रियाँ एक दूसरे की पूरक हैं| मन सबका केंद्र बिंदु है| इन्द्रियाँ वे खिड़कियाँ हैं जिनके द्वारा मन अपने आप को बाह्य रूप में अभिव्यक्त करता है| योग ने मन के संयम पर बल दिया है ताकि इन्द्रियाँ स्वाभाविक रूप में संयमित हो जाएँ| मन अथवा इन्द्रियों को बलपू्र्वक वश में नहीं किया जा सकता| इसके लिए मैत्री भाव की आवश्यकता है——
पहले प्रशिक्षण, फिर परिणाम
—-सदैव इन्द्रियों की प्रकृति एवं स्तरों पर इनके काम को समझना—-
—- सदैव निरीक्षण—आत्मविश्लेषण—सुझाव—अभ्यास—समीक्षा—अभिव्यक्ति
—पू्र्व की घटनाओं से शिक्षा—सुझाव—कर्म
निरंतर अपने व्यवहार का अवलोकन करते हुए नया दृष्टिकोण अपनाना|
विधि—-प्रतिदिन रात में सोते समय अपनी दिनचर्या को दृष्टाभाव भाव से देखना, अनावश्यक सूचनाओं के भंडारन को खाली करना ताकि मन शान्त और हल्का प्रतीत हो और सकारात्मक सूचनाओं को ग्रहण करने की क्षमता प्राप्त कर सके|