हमारे अंतःकरण में समाहितमन, बुद्धि, चित्त और अहंकारहमारी कमजोरियाँ नहीं अपितु आध्यात्मिक पथ के साधन हैं| इनकी शक्तियों कासदुपयोग ही जीवन की उपलब्धि है|
श्री दुर्गा सप्तशती में श्लोक आता है—-” मनोबुद्धिरहंकारा चित्तरूपा चिता चितिःसर्वमन्त्रमयी सक्तासत्यआनन्दस्वरूपिणी “हे! सत्यआनन्दस्वरूपिणीमाँ! मन, बुद्धि, चित्त और अहंकाररूपी मंत्रों के साम्राज्य की जो शक्ति है वो आप ही हमारी चित्ति शक्ति हैं|” अहंकारं मनो बुद्धिं रक्षेन्में धर्मधारिणी”हे धर्मधारिणी माँ! आपहमारे मन, बुद्धि और अहंकारकी रक्षा कीजिए|
अर्थात्—- रक्षा किसकीकरते हैं? अमुल्य सम्पत्तिकी और ये चारों हमारे अनमोल धन हैं जो ईश्वर प्रदक्त हैं|— सं. योग प्रिया (मीना लाल)