वह माँ की ही बोली होती है जिससे शब्द से हमारा परिचय होता है। ध्वनि और अर्थ को परस्पर जोड़ पाने की हमारी क्षमता जिस बोली से आती है, वह प्रायः माँ की ही बोली होती है। वह जो बोली बोलती हैं उसी को मातृभाषा कहते हैं और इसे हम किताबों से नहीं पढ़ते, घुट्टी में पीते हैं। हम इसके बाद जो कुछ भी सीखते हैं उसके बिम्ब इसी भाषा से ही आते हैं
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माता का स्थान हर धर्म और हर संस्कृति में बहुत ऊँचा है। माँ मात्र जन्म देने वाली स्त्री ही नहीं होती, अपितु वह जननी होती है जो दुनिया से नवजात का परिचय करवाती है। मात्र एक जीव को जन्म देकर वह मुक्त नहीं होती, बल्कि वह रचती है एक सम्पूर्ण मनुष्य को जो अपने आप में एक ब्रह्माण्ड होता है।
सभी कहते हैं माँ के हाथ का खाना सबसे सुस्वादु होता है पर कभी सोचा कि ऐसा क्या है कि सबकी माँ ही सबसे सुस्वादु भोजन कैसे पका लेती है? स्वाद से प्रथम परिचय माँ की रसोई से होता है और फिर उसके इर्द-गिर्द हमारे स्वाद का अपना लोक बनता है।
वह माँ की ही बोली होती है जिससे शब्द से हमारा परिचय होता है। ध्वनि और अर्थ को परस्पर जोड़ पाने की हमारी क्षमता जिस बोली से आती है, वह प्रायः माँ की ही बोली होती है। वह जो बोली बोलती हैं उसी को मातृभाषा कहते हैं और इसे हम किताबों से नहीं पढ़ते, घुट्टी में पीते हैं। हम इसके बाद जो कुछ भी सीखते हैं उसके बिम्ब इसी भाषा से ही आते हैं।
मेरी मातृभाषा हिन्दी ही की एक बोली बज्जिका है। हम बज्जिको में अपन बात कह सकैत रही पर तब हमर बात बहुत आंचलिक रह जयतय। एहि ला हम मातृभाषा दिवस के बधाई हिंदी में दे रहल छी।
मातृभाषा दिवस की हार्दिक बधाई।
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पहला अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस कब मनाया गया ?
साल 1952 में बांग्लादेश में ढाका यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अपनी मातृभाषा का अस्तित्व बनाए रखने के लिए 21 फरवरी को एक आंदोलन किया था। इस आंदोलन में बांग्लादेश के कई युवा शहीद हो गए थे। इन शहीद युवाओं की स्मृति में ही यूनेस्को ने पहली बार साल 1991 को ऐलान किया कि 21 फरवरी को मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया जाएगा। पहला अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस साल 2000 में मनाया गया। बांग्लादेश में 21 फरवरी के दिन एक राष्ट्रीय अवकाश होता है। साल 2002 में संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की महासभा ने यूनेस्को के अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने वाले फैसले का स्वागत किया। 16 मई, 2007 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने “दुनिया के लोगों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली सभी भाषाओं के संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए” सदस्य राज्यों के एक प्रस्ताव भी भेजा था। मातृभाषा दिवस क्यों मनाया जाता है? अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने के पीछे का मकसद है कि दुनियाभर की भाषाओं और सांस्कृतिक का सम्मान हो। इस दिन तो मनाये जाने का उद्देश्य विश्व भर में भाषायी और सांस्कृतिक विविधता का प्रचार-प्रसार करना है और दुनिया में विभिन्न मातृभाषाओं के प्रति लोगों को जागरुक करना है।
साल 2002 में संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की महासभा ने यूनेस्को के अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने वाले फैसले का स्वागत किया। 16 मई, 2007 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने “दुनिया के लोगों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली सभी भाषाओं के संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए” सदस्य राज्यों के एक प्रस्ताव भी भेजा था। मातृभाषा दिवस क्यों मनाया जाता है? अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने के पीछे का मकसद है कि दुनियाभर की भाषाओं और सांस्कृतिक का सम्मान हो। इस दिन तो मनाये जाने का उद्देश्य विश्व भर में भाषायी और सांस्कृतिक विविधता का प्रचार-प्रसार करना है और दुनिया में विभिन्न मातृभाषाओं के प्रति लोगों को जागरुक करना है।
मातृभाषा दिवस क्यों मनाया जाता है ?
अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने के पीछे का मकसद है कि दुनियाभर की भाषाओं और सांस्कृतिक का सम्मान हो। इस दिन तो मनाये जाने का उद्देश्य विश्व भर में भाषायी और सांस्कृतिक विविधता का प्रचार-प्रसार करना है और दुनिया में विभिन्न मातृभाषाओं के प्रति लोगों को जागरुक करना है।
विश्व भर में बोली जाती हैं इतनी भाषाएं, भारत में हैं 1652 भाषाएं
विश्व में जो भाषाएं सबसे ज्यादा बोली जाती हैं. उनमें अंग्रेजी, जैपनीज़, स्पैनिश, हिंदी, बांग्ला, रूसी, पंजाबी, पुर्तगाली, अरबी भाषा शामिल हैं. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार लगभग 6900 भाषाएं हैं जो विश्व भर में बोली जाती हैं. इनमें से 90 प्रतिशत भाषाएं बोलने वाले लोग एक लाख से भी कम हैं. भारत की बात करें तो 1961 की जनगणना के अनुसार, भारत में 1652 भाषाएं बोली जाती हैं.
भारत में कुल कितनी भाषा बोली जाती है
पूरे भारत में कुल कितनी भाषाएं बोली जाती है यह बताना बेहद मुश्किल है। क्योंकि भारत में अनेक धर्म के लोग रहते है और अनगिनत भाषाएं बोली जाती है। बता दे साल 2011 में जनगणना के दौरान पता चला कि भारत में 121 भाषाएं ऐसी है, जो 10,000 से ज्यादा लोग बोलते है। लेकिन भारतीय संविधान के अनुसार भारत के केवल 22 भाषाओं को मान्यता प्राप्त है।
साभार: वैज्ञानिक चेतना
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