हाँ दीदी आपको हम कभी भूल नहीं पाएँगे और आपके जाने के दर्द का सांत्वना भी हमको आपके गीतों से ही मिलेगा। हमारे हृदय-प्रदेश में स्थापित अपने सिंहासन पर आप सदैव विराजमान रहेंगी। पीढ़ियाँ आपको सुनेंगी और जानेंगी की भारतीय संगीत की परंपरा कितनी समृद्ध है
जीवन की यात्रा का आखिरी पड़ाव मृत्यु है और जो भी जन्मा है उसकी मृत्यु भी निश्चित रूप से होनी है। कवि नीरज जी ने हिन्दी भाषा को मृत्यु की सहज स्वीकार्यता का स्तवनगीत दिया:
न जन्म कुछ, न मृत्यु कुछ बस इतनी सिर्फ बात है।
किसी की आँख खुल गई किसी को नींद आ गई।
गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी प्रसिद्ध कहानी पोस्टमास्टर में लिखा है :
So the traveller, borne on the breast of the swift-flowing river, consoled himself with philosophical reflections on the numberless meetings and partings going on in the world—on death, the great parting, from which none returns.
मृत्यु को उन्होंने ऐसी विदाई कहा है जिसके बाद कोई लौटता नहीं। बनारस शहर तो मसान में मस्ती की बात करता है। विद्यानिवास मिश्र ने लिखा भी है :
हम यदि मसान की मस्ती कायम न रख सके तो हमारा शिव शव हो जाएगा।
इन सभी दर्शनों के कवच के सुरक्षित मेरा हृदय आज सुबह स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर की मृत्यु की सूचना पाकर विदीर्ण हो गया। अपने सभी ज्ञान, कुल दर्शन, सभी सांत्वनाओं के बावजूद उनका जाना बहुत खल रहा है। ऐसा लग रहा है कि कोई घर का बड़ा हमको छोड़कर चला गया है।
इतनी प्रसिद्धि, इतना यश, इतनी गहन साधना और इतनी सादगी विरले ही किसी एक व्यक्ति में देखने को मिलती है पर लता दीदी को यह सब बहुत सहज उपलब्ध था। वे माता सरस्वती की मानस पुत्री, उन्हीं का अंश थीं और सरस्वती पूजा के विसर्जन का दिन ही उनके शरीर त्यागने के लिए सबसे उपयुक्त था। लगता है कि गंगापुत्र की भाँति ही शारदापुत्री ने भी प्राणों को ग्रहों के सही संयोग के लिए रोक रखा था।
लता दीदी ने बहुत से गाने गाए हैं और उनके गाये सभी गाने उम्दा ही रहे, पर फिर भी पता नहीं क्यों आज मुझे “आज फिर जीने की तमन्ना है, आज फिर मरने का इरादा है” ही बार बार याद आ रहा है। सच में यदि जीने की तमन्ना हो तो मरने का इरादा करना ही पड़ता है। लता दीदी ने एक भरपूर ज़िन्दगी जी, कला की साधना और सेवा भी खूब की। यह गाना लगता है दीदी ने आज के लिए ही गाया था:
तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे
हाँ तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे
जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे
संग संग तुम भी गुनगुनाओगे
हाँ तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे
हाँ दीदी आपको हम कभी भूल नहीं पाएँगे और आपके जाने के दर्द का सांत्वना भी हमको आपके गीतों से ही मिलेगा। हमारे हृदय-प्रदेश में स्थापित अपने सिंहासन पर आप सदैव विराजमान रहेंगी। पीढ़ियाँ आपको सुनेंगी और जानेंगी की भारतीय संगीत की परंपरा कितनी समृद्ध है।
मेरी नम आँखों से आपको विनम्र श्रद्धांजलि। 🙏
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