Friday, April 19, 2024
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लता जी की आवाज़, पूरे देश की पहचान है …

लोरी से ले कर भजन , ग़ज़ल से लेकर अनगिनत चुलबुले गीतों में आपने अपनी आत्मा डाली है बरसों .. कठिनतम रागों पर आधारित अनगिनत कॉम्पज़िशन को सहज ही गा डाला है, ये कूवत किसमें होगी? हज़ारों हज़ार गीतों में सिर्फ़ आपकी आवाज़ ने प्राण फूंके, और जब बेहतरीन काव्य को आपकी आवाज़ का सानिध्य मिला फिर वो इतिहास बन गया, ये आपके अलावा और कौन कर सकता है

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कल ही बहार की आमद पर फूल देखे , आसमान का रंग देख , खुद से कहा था – सखी बसंत आया ! और आज ये सवाल है की ये बहार का मौसम है या ख़िज़ाँ का ? संगीत की दुनिया का एक अहम रंग जो उड़ गया , एक मज़बूत तार टूट गया .. राग रागिनियाँ तुम कहो , तुमने क्या खोया ?

लोरी से ले कर भजन , ग़ज़ल से लेकर अनगिनत चुलबुले गीतों में आपने अपनी आत्मा डाली है बरसों .. कठिनतम रागों पर आधारित अनगिनत कॉम्पज़िशन को सहज ही गा डाला है, ये कूवत किसमें होगी? हज़ारों हज़ार गीतों में सिर्फ़ आपकी आवाज़ ने प्राण फूंके, और जब बेहतरीन काव्य को आपकी आवाज़ का सानिध्य मिला फिर वो इतिहास बन गया, ये आपके अलावा और कौन कर सकता है?

आपने अपनी आवाज़ से जाने कैसी कैसी तसवीरें बनायीं, की जिसे सुन के ही बहार – ख़िज़ाँ – बरसात – बर्फीली तनहाइयों को लाखों दिल मन की आँखों से महसूस करते रहे .. आँखों की महकती ख़ुशबू के तसव्वुर को ख़ूबसूरत अंजाम देकर, फ़ुर्सत के रात दिन, सुस्त और तेज़ कदम रस्ते, सावन की फुहार, और अजीब दास्तानों के जाने कितने ही राज़ आपने अपनी सुरीली आवाज़ से खोले!

कितनी ही पीढ़ियों ने आपके गाए गीतों को अपने जीवन के सुख – दुःख को जोड़ कर देखा, गुनगुनाया, और आँसू भी बहाए हैं, और जो सिलसिला आपने शुरू किया है वो आपके जाने के बाद भी आने वाली पीढ़ियाँ जारी रखेंगी । आप नहीं हैं अब, फिर भी आपके गीतों की महक अनंत समय तक हिंदुस्तान की फ़िज़ाओं में बनी रहेगी !

आपकी आवाज़ की मासूमियत ताउम्र बनी रही , पर दूसरी तरफ़ बड़े परिपक्व भाव, जैसे कि मदन मोहन जी की -मैं का से कहूँ पीर अपने जिया की, जैसी अभिव्यक्ति आपके सिवा कोई और नहीं कर सकता था ! सूरज को दिया दिखाने सामान ही हैं ये बातें क्योंकि आपकी कला शब्दातीत है ।कला जगत को आपने अपरिमित रूप से दिया है , कैसे कोई शब्दों में बाँध सकता है इसे ?

ग़ालिब ने दर्द से भरकर कभी कहा था कभी वही दुहरा रही हूँ –

जू- ए – ख़ूँ आँखों से बहने दो ,के है शाम – ए – फ़िराक़
मैं ये समझूँगा के शम्माए दो फ़रोजाँ हो गयीं ….

यहाँ करोड़ों लोगों के दिल भींग गए हैं लता जी , आँखों की बात क्या करें … !

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