यायावरी में रास्ता ही मंज़िल होता है, खानाबदोशी में वहाँ पहुँचना होता है जहाँ भोजन मिले पर चाकरी में जहाँ मालिक भेजे वहाँ जाना होता है, वह भी समय से और कुल के बावजूद भी मैं हूँ तो एक सम्मानित चाकर ही और सम्मानित भी कितना हूँ यह मेरा दिल और मेरे सहकर्मी ही जानते हैं
जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्ते बिहार राज्ये अररिया नगरे कुछ ऐसे भी स्थान हैं जिनका विकास के मानचित्र पर अंकन नहीं हो पाया है। ये स्थान हैं भी यह या तो वही जानता है जो यहाँ रहता है या फिरवो जिसे यहाँ जाना पड़ता है। मेरी किस्मत में खानाबदोशी है जिसे मैं आत्मगौरव के लिए यायावरी कहता हूँ और इसी कारण मुझे इनमें से कई स्थानों के दर्शन हुए और हो रहे हैं। ख़ैर, आज ऐसी ही एक जगहपहुँचने की मेरी यात्रा में मेरी जो दशा हुई है कि क्या ही कहूँ अब?
मैं सुबह लगभग ७ बजे दही-चूड़ा-आम का जलपान कर रोज की ही भाँति यात्रा पर निकल गया। आज यात्रारम्भ में ही मुझे लग गया कि सब ठीक नहीं जानेवाला। चूँकि आज पहली बार मुझे 20 मिनट तककोई भी गाड़ी नहीं मिली और स्मरण रहे कि मैं यात्रा के लिए यात्री गाड़ी मात्र पर निर्भर नहीं रहता। मुझे चिंता हो रही थी चूँकि मुझे नियत समय से नियत स्थान पर पहुँचना था। यायावरी में रास्ता ही मंज़िलहोता है, खानाबदोशी में वहाँ पहुँचना होता है जहाँ भोजन मिले पर चाकरी में जहाँ मालिक भेजे वहाँ जाना होता है, वह भी समय से और कुल के बावजूद भी मैं हूँ तो एक सम्मानित चाकर ही और सम्मानित भीकितना हूँ यह मेरा दिल और मेरे सहकर्मी ही जानते हैं। इन परिस्थितियों में मैं उधर जानेवाली पहली बस पर चढ़ गया, सीट नहीं मिली लेकिन इससे मुझे लेशमात्र भी दुख नहीं हुआ। दुखी होने के लिए सुखीहोना एक आवश्यक शर्त है और तुलसी बाबा ने बहुत पहिले ही बता दिया है कि पराधीन सपनेहुँ सुख नाहिं। इन्हीं ख़यालो में रास्ता गुज़र रहा था। बस चल कम रही थी और रुक ज्यादा रही थी फिर भी बसवाले ने लाओत्से के कथन
Nature never hurries, yet everything is accomplished से प्रेरणा लेते हुए 30 मिनटों की यात्रा को लगभग एक घंटे में पूरा किया। यदि हम पर्वतारोहण से शब्द उधार लें तो इस पड़ाव का मेरीइस यात्रा में वही स्थान है जो पर्वतारोहण में बेस कैम्प का होता है। मोटे तौर पर यात्रा अब शुरु होनी थी।
मैं एक बस पर बैठा जिसको देखकर वही लग रहा था जो रागदरबारी के लेखक को ट्रक देखकर लगा था। इस बस को 8:05 में खुलना था लेकिन वह 8:20 तक भी बस टस से मस नहीं हुई। पूछने परकंडक्टर ने कहा कि आज साढ़े नौ बजे वाली बस रद्द है सो यह बस साढ़े नौ बजे खुलेगी। मेरी कभी कोई प्रेमिका नहीं रही सो मुझे प्रतीक्षा का अभ्यास लगभग नहीं ही है और वैसे भी समय पर पहुँचने कीअनिवार्यता के कारण इतनी प्रतीक्षा करना मुझे उपलब्ध भी नहीं था सो मैंने बगल के पान दुकान से वैकल्पिक उपाय पूछा। पान वालों के जुगाड़ पर मेरी गहरी आस्था है, चूँकि बचपन में मैंने उनको पान से दाँतदर्द का उपचार करते देखा है। उसने बताया कि बस एक किलोमीटर की दूरी पर एक चौक से बैटरी चालित रिक्शा मिलेगा जिससे 4 किलोमीटर जाने के बाद कई बस और टेम्पू मिल जाएंगे।
यदि हम पर्वतारोहण से शब्द उधार लें तो इस पड़ाव का मेरी इस यात्रा में वही स्थान है जो पर्वतारोहण में बेस कैम्प का होता है। मोटे तौर पर यात्रा अब शुरु होनी थी।
मुझे चलने के बाद पता चला कि इस स्थान पर एक किलोमीटर की दूरी तय करने के लिए ढाई किलोमीटर चलना पड़ता है। बैट्री चालित गाड़ी ने भी 4 किमी की यात्रा 8 किमी में पूरी की। वहाँ बस स्टैंडपहुँचते ही स्टैंड के एजेंट ने एक टेम्पू पर बिठा दिया। टेम्पू का पाँवदान मेरे पैर रखते ही सेवानिवृत्त हो गया, मैं भी गिरते-गिरते बचा। इसके बाद टेम्पू चल पड़ा, उसका धुँआ इतना काला था कि काली घटा काघमण्ड घटाने वाली रमणी के केश भी लजा जाएँ। 15 मिनट चलने के बाद एक अजीब सी खरखराहट के साथ टेम्पू बन्द पड़ गया। ड्राइवर ने बताया कि मोबिल ख़त्म हो गया है और फिर उसने एकमोटरसाइकिल गैरेज से जली मोबिल लेकर गाड़ी में डाला। उसके बाद उसने गाड़ी को शेल्फ से स्टार्ट करना चाहा। यह उसने महज दिखावे के लिए किया था चूँकि दो-तीन बार के बाद ही उसने हमसे टेम्पू कोधक्का लगाने के लिए कहा। हमने धक्का लगाकर उस गाड़ी को स्टार्ट किया और यात्रा पुनः चालू हुई।
किसी राहगीर के हाथ न दिखाने पर भी वह रोक कर सबसे पूछता चलता कि चलेंगे। विलंब के भय से मैं थोड़ा विचलित हो गया और उससे झल्लाकर कहा कि पीपल के भूत से भी पूछ ही लो और इस परउसकी और मेरी हल्की बहस हो गई। इसपर उसने मुझसे पूछा कि क्या आपका भाड़ा वापस कर दूँ? यहीं उतरेंगे आप? क्रोध और अज्ञान में निर्णय अक्सर गलत हो जाते हैं लेकिन मेरा उसके प्रस्ताव को मानलेने का निर्णय उतना भी गलत नहीं था और उपर से एक जैसा दिखने पर भी यह टेम्पू पिछले वाले से बेहतर रहा। इसने मुझे नियत समय से कुछ क्षण पूर्व मेरी मंज़िल पर पहुँचा दिया।
मैं परेशान हूँ कि वापस भी लौटना होगा।😊
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