Tuesday, May 21, 2024
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जैविक खेती ने किया कमाल

भानू  प्रताप सिंह

जिला बरेली, तहसील आंवला के किसान निहाल सिंह आज अपने इस सेंटर पर युवाओं और किसानों को जैविक खेती के गुर सिखातें हैं। क्योकि निहाल सिंह आज है एक सफल किसान आज हर साल 35 करोड़ रुपये का अकेले आर्गेनिक मेंथा का एक्सपोर्ट करने वाली निहाल सिंह की कंपनी ’पवित्र मेंथा’ के साथ 3000 किसान जुड़े हुए हैं।

शुरुआत में किसानों को घाटा हुआ तो निहाल सिंह को खुद से पूरा करना पड़ा, लेकिन हार नहीं मानी। “हमारे पास मार्केटिंग का विभाग नहीं है, अमेरिका और जर्मनी के ग्राहक सीधे आकर मिले,“ किसान निहाल सिंह ने बताया। किसान परिवारों का दर्द करीब से महसूस करने वाले निहाल सिंह बताते हैं, “मैं पढ़ने में अच्छा था, जब मैं छोटा था तो माता जी एक प्राइमरी टीचर को दिखाते हुए हमेशा कहतीं-बेटा एक दिन तू ऐसे ही प्राइमरी टीचर बनना। पिता जी भी कहते थे कि बेटा हम तुम्हें इसलिए पढ़ा रहे हैं कि आगे इस मिट्टी में न लोटो, हमने अपनी पूरी जिं़दगी इसमें बिता दी।“निहाल सिंह आज किसान जरूर हैं और देश की मिट्टी से प्यार भी है, लेकिन आर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने के लिए जर्मनी और अमेरिका जैसे देशों की यात्रा लगातार करते रहते हैं।

कैसे करते हैं आर्गेनिक मेंथा का कारोबारकिसान निहाल सिंह की कंपनी ’पवित्र मेंथा’ ने वर्ष 2019 में कुल 40 करोड़ रुपये का कारोबार किया। इसमें से 35 करोड़ का कारोबार केवल आर्गेनिक मेंथा का रहा। आर्गेनिक मेंथा की खेती और निर्यात के बारे में निहाल सिंह कहते हैं, “अभी मेंथा के कारोबार में धोखाधड़ी बहुत शुरू हो गई है, आज सिंथेटिक मेंथा का कारोबार ओरेजिनल मेंथा से ज्यादा है।

आर्गेनिक की जरूरत ही तब पड़ी जब लोगों ने धोखाधड़ी शुरू कर दी। अब तो सिंथेटिक मेंथा भी आ गया है। जो लोग मेंथा ऑयल से अपना उत्पाद बनाते हैं वो आर्गेनिक मेंथा को तरजीह दे रहे हैं।“अमेरिका और जर्मनी जैसे देशों को आर्गेनिक मेंथा के एक्सपोर्ट के बारे में निहाल सिंह बताते हैं, “सारा मेंथा खाने वाली चीजों में जा रहा है। आर्गेनिक मेंथा कास्मेटिक या दवाइयों में जाता है, अगर केमिकल हैं तो बहुत खतरनाक होते हैं, स्किन को नुकशान पहुंचाते हैं तो फायदा नहीं होता है, सुगंध का भी असर होता है, आर्गेनिक वाले का थोड़ा अच्छा रहता है।““आर्गेनिक मेंथा में दिक्कत क्या है कि लोग सही तरह से समझ नहीं पा रहे। इंसेक्ट (कीट) लगते हैं बीमारी ज्यादा नहीं लगती। अगर क्राप प्रोटेक्शन (फसल का बचाव) सही रखेंगे तो कीट नहीं लगेंगयही हम अपने किसानों को सिखाते हैं,“ निहाल समझाते हैं।

निहाल अपने साथ काम कर रहे किसानों को वर्मी कम्पोस्ट आदि बनाने की ट्रेनिंग देकर उनकी यूनिट लगाने में मदद करते हैं। जिससे रासायनिक खाद की खपत कम हो और लोगों का पैसा बचे। मिट्टी की सेहत को सुधारने के लिए निहाल कहते हैं, “कुछ कठोर निर्णय लेने होंगे, पिछली दो  पीढि़यों से केमिकल की लत पड़ गई है, जब तक केमिकल नहीं हटेगा हमारी फसलों से, तो जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानक हैं हम पूरे नहीं कर पाएंगे। “हम उत्पादन में निपुण हैं, हमारे पास युवा है, ऊर्जा है। ब्रिटानिया हमारा गेहूं 150 रुपये किलो बेच रहा है, 100 ग्राम गेहूं लगा के मैकडोनॉल्ड 400 रुपये का पिज्जा बेचता है। जबकि इससे किसान को कितना मिलता है?

एक बहुराष्ट्रीय कंपनी की नौकरी को छोड़ कर खेती करने के अपने प्रयोग के बारे में जब निहाल सिंह ने अपने माता-पिता को बताया तो शुरुआत में किसी को यह अच्छा नहीं लगा, लेकिन निहाल अपने माता-पिता को समझाने में सफल रहे और जैविक पद्धति से खेती करने की ठान ली। और आज महज चार एकड़ से आर्गेनिक खेती शुरू करने वाले बरेली के युवा किसान निहाल सिंह बन गये है करोड़पति बन सकतें हैं आप भी करोड़पति बषर्ते आप भी समझले तकनीक और बढालें कदम खेतों की ओर

सरकार इन कंपनियों से कहे कि आर्गेनिक किसान से अच्छे रेट पर खरीदें, इससे क्वालिटी भी सुधरेगी, और किसानों को भी फायदा होगा,“ निहाल सिंह कहते हैं। आर्गेनिक का मार्केट न होने से किसान कैसे इसकी भरपाई करे इस पर निहाल सिंह कहते हैं, “भ्रष्टाचार ने बहुत सारी चीजों को निगल लिया है। भ्रष्ट वो लोग हैं जिन्हें जो जिम्मेदारी दी गई वो स्वार्थ बस ईमानदारी से काम नहीं किया। जिन्हें जिम्मेदारी दी गई कि देश की खेती को आगे बढ़ाना है, उन लोगों ने बीज और कीटनाशक कंपनियों को आगे बढ़ाया, जबकि देश पीछे चला गया। पेस्टीसाइड कंपनी का उत्थान हुआ, किसान नीचे आ गया।“ “देखिए, कई चीजों से लड़ा हूं, युवा के लिए रास्ता ही नहीं दिया जा रहा। हर जगह अदृश्य रुकावटें हैं,

“मेरा पूरा समर्पण जैविक खेती के लिए है। हमने कुछ स्पेशल नहीं किया बस उसी पुरानी पद्धति में जो हमारे पूर्वज करते थे, उसमें थोड़ा अध्ययन किया और जैविक खेती में लागू किया,“ निहाल सिंह बताते हैं, “जो पहले खराब हो चुका है उसे सुधारने के लिए काम किया। जिससे पहले हम शिखर पर थे उन कारणों का भी अध्ययन किया।“

निहाल सिंह अपने खेती में किए गए प्रयोगों के बारे में बताते हैं, “एग्रीकल्चर को लोग सिर्फ खेती ही मान लेते हैं, जबकि ’कल्चर’ एक पद्धति है, इसे हम लोग भूल सा गए हैं। हम पहले विश्वगुरू कृषि की ही बदौलत थे, लेकिन आज खेती को निम्न दर्जे का माना जाने लगा।“

एक बहुराष्ट्रीय कंपनी की नौकरी को छोड़ कर खेती करने के अपने प्रयोग के बारे में जब निहाल सिंह ने अपने माता-पिता को बताया तो शुरुआत में किसी को यह अच्छा नहीं लगा, लेकिन निहाल अपने माता-पिता को समझाने में सफल रहे और जैविक पद्धति से खेती करने की ठान ली। और आज महज चार एकड़ से आर्गेनिक खेती शुरू करने वाले बरेली के युवा किसान निहाल सिंह बन गये है करोड़पति बन सकतें हैं आप भी करोड़पति बषर्ते आप भी समझले तकनीक और बढालें कदम खेतों की ओर l

— साभार हॉटलाइन

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