Sunday, December 22, 2024

दास्तान-ए-इश्क भाग # 3

जब मैं काशी पहुँचा तब मुझे ज्ञात हुआ कि क्यों एक ब्रह्मचर्य व्रत धारी धनुर्धर काशी नरेश की कन्याओं को हर ले गया था

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सन 2000 में 12वीं की परीक्षा देने के साथ ही काशी हिंदू विश्वविद्यालय में दाखिले की परीक्षा दी। जब मैं काशी पहुँचा तब मुझे ज्ञात हुआ कि क्यों एक ब्रह्मचर्य व्रत धारी धनुर्धर काशीनरेश की कन्याओं को हर ले गया था। उन्हीं में से एक अम्बा के लिए उनको शाल्व नरेश से युद्ध भी करना पड़ा और इसी अम्बा के कारण उनकी दुखद मृत्यु भी हुई।

वर्तमान परिस्थितियों और इतिहास बोध से हलकान मैं बाबा विश्वनाथ की शरण में गया। मैंने बाबा से कहा कि बाबा मुझे इनके केशों में मत उलझने दीजिएगा। कहीं न कहीं शंख, ढोलआदि के कारण या किसी अन्य कारण से भी कुछ कम्युनिकेशन गैप आ गया और बाबा ने मुझे केश पाश से मुक्त करने की बजाय केश मुक्त कर दिया। मैं बाबा की नगरी पहुँचते ही’चंद्रशेखर’ हो गया। ‘चंद्रशेखर’ होते हुए स्त्रियों को अपनी ओर आकर्षित करना विरले ही लोगों से सम्भव होता है और इसी एकमात्र कारण से मैं पंडित नेहरू का बड़ा सम्मान करता हूँ।

 यहाँ इश्क की कोई कहानी बन न पाई, कई बार तो मुझे अपनी लैलाओं का नाम तक भी पता न हो सका। लेकिन दिल हारना बदस्तूर जारी रहा।खैर, कई एकतरफा मुहब्बतोंकी चोट और शराब से गम गलत करते हुए स्नातक भी पूरा हुआ

ऐसा नहीं कि बाबा ने मेरे ब्रह्मचर्य को और लंबा करने के लिए कुछ नहीं किया। कला संकाय(Arts faculty) में सह शिक्षा नहीं थी। अब हमारी परिस्थिति यह थी कि स्त्रीलिंग के नामपर बस चाय थी और होठों से लगाने को सिगरेट। बच्चे ममहर में वैसे भी बिगड़ जाते हैं और जब आपका मामा बनारस के आध्यात्मिक दरोगा हो तो फिर शराब पीना आ ही जाताहै।(काल भैरव बनारस के आध्यात्मिक दरोगा हैं, माँ दुर्गा के भाई हैं जिस नाते हमारे मामा हुए और उनपर चढ़ावे में शराब चढ़ती है)। तो स्नातक के पहले तीन वर्ष में यही सब चला।किसका गम था यह तो नहीं पता लेकिन जॉन एलिया का यह शेर हम जैसों के लिए ही था:

तेरा फ़िराक़ जान-ए-जाँ ऐश था क्या मिरे लिए

या’नी तिरे फ़िराक़ में ख़ूब शराब पी गई

किसका फिराक था यह नहीं पता, किस बात की खुशी थी यह भी नहीं मालूम लेकिन शराब क्या देवदास ने पी होगी जो हमने पी। शराब जो वहाँ से लगी, तो वह नितीश कुमार जी केतुगलकी फरमान तक लगी ही रही।

यहाँ इश्क की कोई कहानी बन न पाई, कई बार तो मुझे अपनी लैलाओं का नाम तक भी पता न हो सका। लेकिन दिल हारना बदस्तूर जारी रहा।खैर, कई एकतरफा मुहब्बतों की चोटऔर शराब से गम गलत करते हुए स्नातक भी पूरा हुआ।

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