प्राण, श्वास और जीवन शैली – योग के दृष्टिकोण से

प्राणायाम हमेशा ही योगाभ्यास करने के उपरांत ही किया जाना चाहिए। प्राणायाम पर विचार करने के पूर्व हमें ये समझना चाहिए की एक श्वांस पर हमारा जीवन ही नहीं टिका है बल्कि मस्तिष्क की तमाम क्षमताएँ उस पर निर्भर करती हैं

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समय से अपनी दिनचर्या की शुरुआत करने के लिए हमें स्वयं और परिवार के सदस्यों को हमेशा प्रोत्साहित करना चाहिए।कहना आसान होता है कि एक समय से सोने और जागने मात्र से होता क्या है ? हम रात को देर तक जागते हैं तो सुबह देर से उठ ही सकते हैं … परंतु हमें ये समझना होगा की हमारे अंदर जितने भी प्राणमय कोष हैं उनपर और हमारे प्राण पर हमारी जीवन शैली का काफ़ी असर रहता है ।

जिस तरह की हमारी दिनचर्या होती है , जिसमें शारीरिक श्रम , सोना , जागने का समय , भोजन का समय और भोजन में ग्रहण किए जाने तत्व , काम करने के घंटे , परिवार तथा कार्यक्षेत्र के सहयोगियों से हमारे सम्बन्ध आदि होते हैं , का अच्छा या बुरा असर हमारे शरीर में प्राण के प्रवाह पर पड़ता है। हमारी सोच , मन के भाव , कल्पनाएँ – इन सब का और भी अधिक प्रभाव प्राण के प्रवाह पर पड़ता है। तभी तो हम महसूस करते हैं की डर , चिंता , परेशानी हमें अचानक थका देती है।आपने महसूस किया होगा की सुख में हम चाहे जितना भी खुश हो लें , कोई ख़ुशी से नहीं थकता परंतु दुःख में शक्ति का क्षय होता है । लगता है जैसे कुछ करने , सोचने और समझने की ताक़त ख़त्म हो गयी । इसी वजह से कई बार किसी ख़ास शारीरिक अंग में कोई परेशानी उभरने लगती है या फिर चयापचय सम्बन्धी ( metabolic dysfunction) रोग उभरने लगते हैं ।

प्राणायाम इस पूरी परिस्थिति को विपरीत कर देता है और प्राण ठीक प्रकार से संतुलित हो कर पूरे शरीर को ऊर्जा से ओतप्रोत रखता है। प्राणायाम हमेशा ही योगाभ्यास करने के उपरांत ही किया जाना चाहिए। प्राणायाम पर विचार करने के पूर्व हमें ये समझना चाहिए की एक श्वांस पर हमारा जीवन ही नहीं टिका है बल्कि मस्तिष्क की तमाम क्षमताएँ उस पर निर्भर करती हैं।

स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने अपनी पुस्तक “आसन प्राणायाम मुद्रा बंध” में यह कहा है कि आमतौर पर लोग ठीक तरह से साँस नहीं लेते क्योंकि उनकी श्वास लेने की प्रक्रिया बहुत छोटी और उथली होती है जिसकी वजह से फेफड़ों की पूरी क्षमता उपयोग में लायी ही नहीं जाती।उनका कहना है की साँस गहरी लेनी चाहिए तथा साँस लेने की गति धीमी होनी चाहिए। अगर हम इतना ही सजगता के साथ करते हैं तो हम आसानी से मानसिक रूप से शांत हो सकते हैं। असामान्य श्वसन प्रक्रिया अनेक तरह की असामान्य शारीरिक और मानसिक स्थितियाँ उत्पन्न कराती हैं । इस सब का परिणाम असंतुलित व्यक्तित्व, आंतरिक विरोधाभास और अनेक तरह की बीमारियाँ होती हैं।

प्राणायाम इन तमाम विपरीत स्थितियों को बिलकुल बदल कर रख देता है। इससे एक नियमित श्वाँस – श्वाँस का चक्र बनने लगता है और नकारात्मक चक्र टूटने लगता है। सबसे महत्वपूर्ण ये होता है कि शरीर और मन दोनो स्वाभाविक रूप से शांत हो जाते हैं। धीमी श्वसन प्रक्रिया हमारी आयु बढ़ाती है। हमने देखा होगा की कुछ जीव – जंतुओं में तेज़ी से साँस लेने वालों की उम्र बहुत कम होती है, जैसे – ख़रगोश , चिड़ियाँ , कुत्ता आदि, परंतु वहीं – हाथी , कछुआ आदि की उम्र बहुत लम्बी होती है क्योंकि वो धीमी और गहरी साँस लेते हैं। प्रकृति के जाने कितने ही नियम मनुष्य और अन्य जीव – जंतुओं पर समान रूप से लागू होती है , तभी तो हमारे ऋषि – मुनियों ने कितने शोध और मनन के बाद इन सारे तथ्यों को हमारे लिए प्रस्तुत किया की हम उसका लाभ उठा सकें।

सही दिनचर्या , प्राणायाम का अभ्यास , गहरी और धीमी साँस लेने के प्रति सजगता हमें शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रखती है। शर्त बस एक है – नियमित अभ्यास !

— वन्दना ज्योतिर्मयी

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