* ब्याज-स्तुति का उत्कृष्ट उदाहरण है बेनी कवि द्वारा रचित कविता राधा सौंदर्य। इसमें कवि गिनवाते हैं कि राधा रानी ने कौन सा अंग किस जीव का चोरी किया है।
* ब्याज- निंदा का उत्कृष्ट उदाहरण है शोले फ़िल्म का वह दृश्य जिसमें अमिताभ बच्चन हेमा मालिनी की मौसी के पास धर्मेंद्र के विवाह का प्रस्ताव लेकर जाते हैं। शब्दों के ऐसे चतुर इस्तेमाल में ऐसी संभावना बराबर बनी रहती है कि सामने वाला भाव को न समझ पाए और गलतफहमी की स्थिति उत्पन्न हो जाए।
कई बार शब्दों को साध चुके लोग शब्दों के साथ खेलते हैं और उसका उपयोग इस प्रकार करते हैं कि शब्दों से प्रकट भाव उस शब्द के मूल भाव से बिल्कुल जुदा होता है, कई बार तो ठीक विपरीत भी।
हिंदी साहित्य में ब्याज-स्तुति और ब्याज-निंदा अलंकारों की चर्चा है। ब्याज-स्तुति उपर से निंदा जान पड़ती है और ब्याज-निन्दा स्तुति। ब्याज-स्तुति का उत्कृष्ट उदाहरण है बेनी कवि द्वारा रचित कविता राधा सौंदर्य। इसमें कवि गिनवाते हैं कि राधा रानी ने कौन सा अंग किस जीव का चोरी किया है। पूरी कविता का भाव स्तुति का है भले शब्दों में राधा रानी को कवि अहीर की चोरनी कहते हैं।
इसके विपरीत ब्याज- निंदा का उत्कृष्ट उदाहरण है शोले फ़िल्म का वह दृश्य जिसमें अमिताभ बच्चन हेमा मालिनी की मौसी के पास धर्मेंद्र के विवाह का प्रस्ताव लेकर जाते हैं। शब्दों के ऐसे चतुर इस्तेमाल में ऐसी संभावना बराबर बनी रहती है कि सामने वाला भाव को न समझ पाए और गलतफहमी की स्थिति उत्पन्न हो जाए।
कई बार न समझने का ढोंग करके भी कहने वाले की खिल्ली उड़ाई जाती है।
एक बार ऐसी ही खिल्ली उड़ाई गई हमारे मोहल्ले के खान चाचा की। खान चचा कम पढ़े लिखे झारखंड के एक सामान्य व्यापारी थे लेकिन सफेद गेल्हा वाला मलमल कुर्ता पहनने पर नवाब वाजिद अली शाह की रूह उनके शरीर में पनाह ले लिया करती थी। ऐसा ही एक मौका आया था उनकी बेगम के इंतकाल पर।
चचा कुछ- कुछ ब्याज-स्तुति के अंदाज़ में रो रहे थे और अपना दुख व्यक्त करते हुए बार- बार कहते कि दगा दे गई। उनका इस बात को कई बार दुहराना हमारे एक मित्र के लिए असह्य हो गया या यह भी हो सकता है कि उन्होंने चचा के शब्दों को अभिधा में ही समझा हो। वे उनको सांत्वना देने लगे कि जाने दीजिए चचा इतना दुखी मत होइये। ढाढ़स भी अजीब मसला है और प्रायः धैर्य का बांध सांत्वना पाकर और भी अधिक टूट जाता है और ऐसे में चचा अपनी उक्ति को बार-बार दोहराने लगे, या खुदा वो बेवफा निकली दगा दे गई। अब हमारे मित्र के लिए उनका यह नाटक सह पाना असंभव हो गया था और वे बोल उठे जाने दीजिए चचा क्या कीजिएगा? ह*जादी थी…
इतना कहना था कि चचा लठ लेकर हमारे मित्र पर छूट पड़े। उसके भाग जाने पर उनपर गालियों की वो बारिश की कि क्या सावन भादो में हुई होगी?
कविता भी वैसी ही मजलिस में सुनाई जानी चाहिए जहाँ उसे समझने वाले लोग हों।
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