कर्म ही तप है श्रद्धा से
करने की मिली है सीख
प्रेम से झोली भर डाली
बिन माँगे ही भीख
तामसिक प्रवृत्ति हमारे जीवन में जन्मजात हैं, इन्हें सिखलाया नहीं जाता स्वतः प्रकट होते हैं जैसे — क्रोध , अहंकार , घृणा , ईर्ष्या वगैरह किन्तु सत्व गुण को प्रकट करने केलिए प्रयत्न करना पड़ता है — जैसे — दया , प्रेम , करुणा , दान और सेवा इत्यादि| दुःख सभी के जीवन में अवश्य आता है चाहे वह महात्मा हो , साधू हो या साधारणव्यक्ति| यह दुःख ही क्लेश का कारण है जो हमारी क्षमता को कमजोर बनाता है| इससे मुक्ति की उपाय — योग में है — आत्मसजगता के द्वारा
सं. योग प्रिया (मीना लाल)