Thursday, May 2, 2024
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योग: मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य का साधन

आवश्यक ये है कि हम कुछ अत्यंत सफल और सरल, सदियों से माने हुए तरीक़ों पर भी दृष्टि डालें और उसको जीवन का हिस्सा बनाएँ वर्तमान जीवन शैली में घर बैठे काम औरआराम में व्यायाम का आयाम अत्यंत ही विचारणीय है

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आजकल स्लिम और ट्रिम दिखने की होड़ में एक बात जो ख़ास ख़याल रखने की है, वह है सही तरह से और सही तरीक़े का व्यायाम किया जाना । हर कोई हर व्यायाम नहीं कर सकता यहकहना उचित ना भी हो पर यह कहना सर्वथा अनुचित होगा कि हम हर तरह के व्यायाम को अपनी जीवनशैली बना सकते हैं ! Gym जाने , इलिप्टिकल , कार्डीओ , strength training , हाई इंटेन्सिटी exercise आदि ढेरों चीजें आसपास सुनाई देती हैं । दूसरों को देख कर हम प्रभावित भी होते हैं और कुछ देख सुन कर शुरू भी कर देते हैं ।

आवश्यक ये है कि हम कुछ अत्यंत सफल और सरल, सदियों से माने हुए तरीक़ों पर भी दृष्टि डालें और उसको जीवन का हिस्सा बनाएँ । वर्तमान जीवन शैली में घर बैठे काम और आराममें व्यायाम का आयाम अत्यंत ही विचारणीय है।
योग एक ऐसा मार्ग है जो ना सिर्फ़ शरीर अपितु मन और मस्तिष्क पर भी असर करता है । हम कह सकते हैं की एक पंथ दो काज हो जाते हैं ।

तात्पर्य ये है कि योग शरीर को लचीला बनाने , या ध्यान करने तक ही सीमित नहीं । पूरे शरीर में प्राण शक्ति के प्रवाह में योग बहुत सहायक होता है । कोई भी आसन शरीर के वाह्य अंगोंके लिए लाभप्रद होते हुए अंदरूनी हिस्सों के लिए भी फ़ायदेमंद होता है । उदाहरण स्वरूप – मेरुदंडासन (स्लिप डिस्क से पीड़ित लोगों के लिए वर्जित है ) यकृत एवं अन्य उदर के अंदर केअंगों को क्रियाशील तो बनाता ही है साथ ही आँतों के कीटाणुओं को भी दूर करने में मदद करता है । इससे मानसिक एकाग्रता और संतुलन शक्ति भी खूब बढ़ती है ।
योग में श्वास प्रश्वास से सम्बंधित कई बातें जुड़ी हैं , किसी भी आसान को करने की एक प्रक्रिया निश्चित होती है और ये निर्धारित होता है की कब साँस अंदर लेनी है , कब उसे छोड़नी है ।शारीरिक क्रियाएँ श्वास के साथ क्रमबद्ध तरीक़े से की जाती हैं और उसका परिणाम ये होता है की हर योगासन मस्तिष्क पर अलग अलग तरह का प्रभाव डालता है । किसी आसान सेतनाव से मुक्ति, किसी से पूरी एकाग्रता, किसी से नाड़ी संस्थान में पूर्ण संतुलन और किसी से चिंतन शक्ति का विकास होता है । अगर पूर्ण प्रशिक्षित हो कर योगासन किए जाएँ तो अनंतजीवन शक्ति का विकास के साथ साथ जीवन के प्रति शांतिपूर्ण प्रवृत्ति का विकास होता है।

खरी चीज़ को पहचानने में देर हो सकती है पर एक बार जब उसके फ़ायदे समझ जाएँ तो फिर वो छूटती नहीं। बात बस इतनी है की अगर हमारे देश में जब बादाम उपजता हैतो हमें अमरीकी बादाम खाने की आवश्यकता क्यों हो?

हज़ारों वर्षों पूर्व जिसे योगियों ने तमाम परिश्रम से , पूरी तरह जाँच परख कर , बहुत ही सरल कर के हमारे लिए उपलब्ध कराया है, उसका भरपूर उपयोग होना चाहिए ।

वैसे एक सच्ची और अच्छी बात ये है की आज की पीढ़ी जिस तरह  ‘जिम’ जाने के ताम-झाम को ले कर उत्साहित रहती है, उसी तरह योग को लेकर भी उनके विचारो में धीरे धीरे परिवर्तनआ रहे हैं।

खरी चीज़ को पहचानने में देर हो सकती है पर एक बार जब उसके फ़ायदे समझ आ जाएँ तो फिर वो छूटती नहीं। बात बस इतनी है की अगर हमारे देश में जब बादाम उपजता है तो हमेंअमरीकी बादाम खाने की आवश्यकता क्यों हो?

जब भारतीय ऋषि महर्षियों ने सदियों पूर्व और बाद में स्वामी सत्यानंद सरस्वती , श्री अयंगर, श्री श्री रविशंकर जैसे महान आत्माओं ने देश – विदेश में लोगों तक योग को पहुँचाने के इतनेप्रयास किए हैं तो क्यों ना हम अपनी धरोहर को उसके शुद्धतम रूप में स्वीकार करें, बजाय इसके कि अलग देशों के द्वारा रूपांतरित योग के स्वरूप को?

ये कुछ वैसी ही बात हो गयी की अंग्रेज भारत में उपजे कपास से अपने फ़ैक्टरी में कपड़े बना कर पुनः भारत में बेचा करते थे।
योग को अपनाना मतलब मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ होना है ! WHO भी अपने स्वास्थ्य की परिभाषा में शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के साथ आध्यात्मिकतत्व को भी उतना ही महत्वपूर्ण मानता है !

आज के भागदौड़ की ज़िंदगी में जब हम निरंतर जूझ रहे हैं , योग हमें स्वयं से जोड़ता है , ठहराव देता है। योग हमारी जड़ों को इतनी मज़बूती देता है की हमें अपने स्वास्थ्य और प्रसन्नता केलिए कहीं कुछ बाहर तलाशने की आवश्यकता नहीं रह जाती।
— वन्दना ज्योतिर्मयी

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