Sunday, November 17, 2024

रेलयात्रा का सु(दु:)खद संयोग

दुनिया में दुःख है और गौतम बुद्ध कह गए हैं कि इसका कारण भी है सो मैं मान लेता हूँ कि मेरे हर बात पर अकारण दुखी होने का भी कोई कारण अवश्य होगा

रेलयात्रा का अपना एक अलग आनंद है। सरपट दौड़ती रेल, कई विविध किस्म के सहयात्री और लंबा खालीपन। रेलयात्रियों के पास जितना खाली समय होता है, उतना पुराने ज़माने के जमींदारों के पास ही होता था। इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि हमारी पीढ़ी को मोबाइल फोन इस खाली समय में भी खाली नहीं छोड़ता और जो थोड़े बहुत लोग इसके आदि नहीं हैं उन्हें भी इस अवसर का आनंद लेना नहीं आता। खैर, दुनिया में दुःख है और गौतम बुद्ध कह गए हैं कि इसका कारण भी है सो मैं मान लेता हूँ कि मेरे हर बात पर अकारण दुखी होने का भी कोई कारण अवश्य होगा।

इधर कुछ दिनों पहले राजधानी एक्सप्रेस की यात्रा का सुखद संयोग बना। राजधानी में रेल प्रशासन यात्रियों के लिए भोजन की व्यापक व्यवस्था करता है, लेकिन फिर भी कुछ लोग जिनके घर अच्छा और सुस्वादु भोजन बनता है वे अनावश्यक रूप से अपना भोजन लेकर चलते हैं।

ऐसा ही एक जोड़ा सुबह चार बजे मेरे कंपार्टमेंट में भी आया। दोनों लोग पढ़े-लिखे और सभ्य प्रतीत हो रहे थे, हालांकि मुझे पत्नी ही ज्यादा सुंदर और आकर्षक लगीं। उनकी वेशभूषा, उनके बोलने, उनके चलने, यहाँ तक की उनके मिडिल बर्थ पर चढ़ने तक में एक अदा थी। वो जरा लाऊड थीं और वे कुछ ऊँचा बोल रही थीं। यदि ऐसा कोई पुरुष करता तब भी मैं कुछ नहीं करता पर भीतर से खिन्न तो हो ही जाता, पर उन पर मुझसे क्रोध भी न हो सका, झुंझलाहट भी नहीं हुई। मैं भी दूसरी तरफ के मिडिल बर्थ पर ही था, सो मुझे उनके सेवा भाव सम्पन्न पति द्वारा बत्ती बुझाए जाने तक उनसे एक दो मिनट बतियाने का अवसर मिला। ट्रेन चल पड़ी और अपनी चाल से चलती रही और थका होने के साथ ही अस्वस्थ होने के कारण मुझे नींद आ गई।

 यह कशिश पराठे की है कि उस महिला की यह समझ में नहीं आता। हालांकि मेरे मित्रों का सर्वसम्मति से यह मानना है कि यह कशिश कबाब और पराठे की ही है। इश्क तो मुझसे जवानी में भी न हो पाया था  

सुबह लगभग आठ बजे नाश्ते के लिए ट्रेन के सर्विस बॉय ने मुझे जगाया और नाश्ता दिया। मुझे ब्रेड-ऑमलेट खासा पसंद है, सो मन  का नाश्ता मिलने से मन प्रसन्न हुआ लेकिन ईश्वर की मुझपर कृपा रही है कि मुझे कभी अपने भाग्य पर मुग्ध होने नहीं देते। वह जोड़ा हॉट-पॉट से निकालकर कबाब और लच्छा पराठा खाने लगा। जब उतनी सुंदर महिला किसी से कबाब या पराठा लेने का आग्रह करे, भले ही वह व्यक्ति उसका पति ही क्यों न हो, मन में उस पुरुष के भाग्य से ईर्ष्या तो होती ही है।

इस घटना को लगभग एक महीना बीत गया लेकिन जैसे पाकीज़ा फ़िल्म में हर बार जब रेल गुज़रती थी तो साहबजान(मीना कुमारी) को राजकुमार की वह पाती (आपके पैर देखे…) सुनाई देती थी, मुझे भी हर रात छोलनी पर लच्छा पराठा उठाए वह महिला दिखाई देती है।

यह कशिश पराठे की है कि उस महिला की यह समझ में नहीं आता। हालांकि मेरे मित्रों का सर्वसम्मति से यह मानना है कि यह कशिश कबाब और पराठे की ही है। इश्क तो मुझसे जवानी में भी न हो पाया था।

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