Friday, November 22, 2024

सिनेमा के जादूगरों पर रोशनी लाना बाकी है

इस सिनेमाई भाषा ने पूरे देश को एक सूत्र में पिरोने का काम किया है। हिंदी सिनेमा की सबसे पहली दादा साहब फाल्के की फिल्म सत्य हरिश्चन्द्र की पटकथा बंबई के थियेटरों के लिए डायलॉग लिखने में शूर मराठा विष्णु केलकर ने लिखी थी जिसे हिंदी से कोई लेना देना नहीं था

देवेंद्र नाथ

 

हिंदी सिनेमा का सौ साल से बेशी का इतिहास हो चला है और इस दरम्यान हिंदी सिनेमा ने हिंदुस्तानी भाषा की एक नयी पौद बोयी है जो अब विशाल बरगद सदृश्य हो चला है। इस  हिंदी के इतर इस भाषा को लोग हिंदुस्तानी के नाम से जानते हैं और हिन्दी, संस्कृत, उर्दू, फारसी , बंगला , तामिल  , पंजाबी , उडिया , अंग्रेजी आदि का इसपर जबरदस्त  असर देखा जा सकता है।  यूं कहिये कि हमारी सारे प्रदेशों की बोलियों की मिठास को चुरा कर उसकी चासनी इसमें डाली गयी है और तब बनी यह हिंदुस्तानी भाषा। इस सिनेमाई भाषा ने पूरे देश को एक सूत्र में पिरोने का काम किया है। हिंदी सिनेमा की सबसे पहली दादा साहब फाल्के की फिल्म सत्य हरिश्चन्द्र की पटकथा बंबई के थियेटरों के लिए डायलॉग लिखने में शूर मराठा विष्णु केलकर ने लिखी थी जिसे हिंदी से कोई लेना देना नहीं था।

हिंदुस्तानी सिनेमा के इन्द्रधनुषी दास्तान को अपने इन्तहां तक पहुंचाने में बहुत से शिल्पकारों को याद करना और उनकी विलक्षणताओं कलमबंद करना बहुत मुश्किल है;  चूंकि उनके बारे में बताने या मालूमात रखने वाले दुनिया के रंगमंच से गायब हो चुके हैं। भाषा या बोलियों का हिसाब इसलिए कि हमारे हिंदी सिनेमा के कलाकारों की भाषा, बोलियों और उनके मजहब को दरकिनार कर ही यह हिंदुस्तानी सिनेमा का फिरदौस अपनी कीमत पर कायम है।

क्लैपर बाय से आभिनेता बने जीवन , मोकामा के गुरमैत बदमाश रामायण तिवारी , पटना शहर के फक्कड़ आवारा संजय मिश्रा, धनबाद के पढाकू विनय विनय पाठक, अभिनय की बुलंदियों पर काबिल पंकज त्रिपाठी को लेकर अफसाना लिखना चाहता हूँ। इनकी जादुई कारस्तानी और तिलश्म से भरी कहानी के गवाहों को तलाशना बहुत मुश्किल है। सफलता के परचम  लहरा कर तो ये चले गये और छोड़ गये हैं अपनी इन्द्रधनुषी नज्जारा जिन्हें देख कर सहसा हमें विश्वास ही नहीं होता कि हमारे बीच भी ऐसे भी करिश्माई कारसाज भी हुआ करते थे

हिंदुस्तानी सिनेमा के पितामह देवकी बोस , आदमी के विलक्षण और सूक्ष्मेतर संवेगों के बहुतेरे चित्रकार सत्यजीत राय , इंसान के अंदरुनी जज्बातों के फनकार नीतिन बोस, संपादक और सफल निर्देशक विमल राय , ऐतिहासिक शौर्य के गीतकार भरत व्यास (अभिनेता बी एम  व्यास के भाई) , आज भी जीवित सौ साल से ज्यादा वयस और हजारों फिल्मों के गवाह के नाजिर हुसैन (चरित्र आभिनेता) , हिंदुस्तानी सिनेमा के शहंशाह और मुहब्बत के राजदार मेहबूब खान , नखरेबाज शहरयार याकूब खान , मीठी तान और सुरीले सुरों के रचयिता बसंत देसाई ,  किरदारों में अपनी कलम से जान फूंकने वाले डायलॉग रायटर वजाहत मिर्जा , रईस बाप की औलाद और अंत में फटेहाल जिंदगी बसर करने वाले मासूम अदाकार भारत भूषण , आरा भोजपुर के सबके नचैया रसिया संगीतकार चित्रगुप्त (श्रीवास्तव) , कभी बारात में क्लार्नेट बजाने वाले महल के नायाब संगीतकार खेमचन्द प्रकाश ,  फिल्मों में दरकिनार जिंदगी की बारीकियों का शानदार हिसाब रखने वाले गुरूदत्त , बुलंद आवाज के मालिक ओमपुरी , मदनपुरी और चमनपुरी के भाई और कड़क आवाज के सरताज व पैरलल सिनेमा के नुमाइंदा और करेक्टर आर्टिस्ट अमरीशपुरी , सुपरस्टार और बांका छैल छबीला हिरो राजेश खन्ना, सुरीली गले का जादूगर और चंचल चित्त के किशोर कुमार , मिनटों में गिरगिट सा चेहरा बदलने में माहिर के एन सिंह, बाप के किरदार में सदैव मजबूर ओमप्रकाश ,  जुबान से शातिर दीखते राधाकिशन , अपने लिए खुद डायलॉग तय करने वाले चरित्र अभिनेता कुमार,  बिल्लौरी आंखों वाले चंन्द्रमोहन , लंबे धींगड़े अक्खड़ नौजवान श्याम , कंटीले अंदाज और मक्कारी से लबरेज प्राण के हुनरमंदियों पर लिखना मेरी जिंदगी का सबब है।

 

 महिला अदाकारों में लंदन में पली बढी और हिंदी सिनेमा की ऐतिहासिक हिरोइन हिमांशु राय की माशूका देविका रानी , चंपाकली की आफताब सुंदरी ,  खूबसूरती की जीवंत मुजस्सिमा एवं बंगला हिंदी सिनेमा दर्शकों के दिल की धड़कन सुचित्रा सेन , चंचल हसीना सविता चटर्जी , फरेबों की मलिका कुलदीप कौर ,  रोमांटिक अदाओं और आंख मिचौली करती कल्पना कर्तिक , बेलौस और बिंदास वीणा (तजौर सुल्ताना) , चंन्द्रहास की मर्दानी हिरोइन दुर्गा खोटे ,बिहार हुसैनगंज की नबावन और दिलफरेब रक्कासा कुमकुम ,  मदमाती छलकती  वैजंतीमाला, तीसरी कसम की हीरा बाई और मुख्तसर जमालो वहीदा रहमान , अल्हड़ चकोरी तनूजा, हिरणी सी आंखोंवाली साधना शिवदासानी , हुस्नफरेब जबीन जलील, चित्तचोर शकीला , हुस्न से लबरेज़ दिलकश हसीना मधुबाला , जलवाफरोश शीला रमानी , खुशूसन छबीली हिरोइन की चैन चुराने वाली शशिकला , छमकछल्लो कक्कू , बढिया निदशकों की सोहबत में बुलंदियों को छुने वाली बदकार नाक चढाती नाटी नटेली जया भादुड़ी , फर्श से अर्श तक की तकदीर की मुश्तकबिल जमाल़ो मुमताज़ , जबरदस्त हुस्नेजमाल  सेक्सी आशा पारेख , शरबती आंखों वाली दिलकश मीना कुमारी।

क्लैपर बाय से आभिनेता बने जीवन , मोकामा के गुरमैत बदमाश रामायण तिवारी , पटना शहर के फक्कड़ आवारा संजय मिश्रा, धनबाद के पढाकू विनय विनय पाठक, अभिनय की बुलंदियों पर काबिल पंकज त्रिपाठी को लेकर अफसाना लिखना चाहता हूँ। इनकी जादुई कारस्तानी और तिलश्म से भरी कहानी के गवाहों को तलाशना बहुत मुश्किल है। सफलता के परचम  लहरा कर तो ये चले गये और छोड़ गये हैं अपनी इन्द्रधनुषी नज्जारा जिन्हें देख कर सहसा हमें विश्वास ही नहीं होता कि हमारे बीच भी ऐसे भी करिश्माई कारसाज भी हुआ करते थे।

— साभार हॉटलाइन

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