Wednesday, April 24, 2024
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घरेलू पर्यटन की संभावनाएं

भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़े बता रहे हैं कि जून 2019 तक भारतीय पर्यटकों ने विदेश भ्रमण पर 59.6करोड़ डॉलर(करीब 4000 करोड़ रुपये) खर्च कर एक रिकॉर्ड कायम किया जो 2018 से डेढ़ गुणा अधिक है।विश्व पर्यटन संस्था ने भी चौंकानेवाली तथ्य परोसे हैं कि 2017 में विदेश घूमनेवाले  यात्रियों की संख्या मात्र 2.4 करोड़ थी जो 2019 में बढ़कर 5 करोड़ हो गयी

डॉ अशोक कुमार, पटना

कोरोना कहर के डंक ने विश्व परिवार को अपने घर में बन्दी बनाते हुए पूरे संसार की अर्थव्यवस्था को पक्षाघात की परिधि में लाकर खड़ा कर दिया है। सभी प्रकार के उद्योग धंधे शीतनिष्क्रियता से अब धीरे धीरे उबरने लगे हैं वहीं सबसे लुभावनी और रोमांचकारी पर्यटन उद्योग की दुनिया अभी भी उजड़ी-बिखरी नजर आ रही है। पर्यटन आंकड़े साक्षी हैं कि वुहान वायरस के जन्मदात्री चीन की धरती के प्राणी पूरे विश्व में सबसे अधिक घुमक्कड़ माने जाते हैं जो पूरे संसार के कोने कोने छान मारने की ललक रखते हैं। लॉकडाउन की लीला ने पर्यटन क्षेत्र को भी जीवन के अन्य क्षेत्रों की तरह शिथिल कर दिया था।विश्व के सभी टूर कम्पनियां बन्द हैं,पिछले वर्ष के अप्रैल माह से प्रारम्भ होने वाले टूर पैकेज अभी भी स्थगित हैं, तमाम टूर मैनेजर अपने घर के कोने में कैद से हैं और घुमक्कड़ी दुनिया के शौकीन किंकर्तव्यविमूढ़ हैं।लॉक डाउन के विसर्जन के बाद एक लंबा समय लगेगा कोरोना कोप से उबरने में।एक मनोवैज्ञानिक भय ने जो दृश्य उपस्थित किया है उससे पर्यटक अपने सुरक्षित स्वास्थ्य कारणों से कुछ दिनों तक घूमने से परहेज भी कर रहे हैं, फलतः टूर कम्पनियों के विराट आधारभूत संरचनाओं में मौन निष्क्रियता अभी भी बनी हुई है क्योंकि जान है तो जहान है की प्रमुखता बन गयी है।

भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़े बता रहे हैं कि जून 2019 तक भारतीय पर्यटकों ने विदेश भ्रमण पर 59.6करोड़ डॉलर(करीब 4000 करोड़ रुपये) खर्च कर एक रिकॉर्ड कायम किया जो 2018 से डेढ़ गुणा अधिक है।विश्व पर्यटन संस्था ने भी चौंकानेवाली तथ्य परोसे हैं कि 2017 में विदेश घूमनेवाले  यात्रियों की संख्या मात्र 2.4 करोड़ थी जो 2019 में बढ़कर 5 करोड़ हो गयी।कभी समुद्र पार की यात्रा को समाज ने धर्म विरुद्ध ग्रन्थि की दृष्टि से विचार कर रखा था लेकिन घुमक्कड़ी संसार की विराटता ने आज लोगों को विदेश घूमने की जो उत्कंठा प्रबल की है वह यात्रियों में आये आत्मविश्वास,उत्साह,उमंग और ज्ञानार्जन की पटकथा रच रहा है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद संसार में उत्पन्न स्थिरता और शांति के फलस्वरूप लोगों में दुनिया देखने की ललक तेजी से विकसित हुई थी और अब तो इस शौक में उत्तरोत्तर हो रही वृद्धि आकर्षण का केंद्र बन चुका है। पर्यटन उद्योग आज कई देशों के मूल आर्थिक अस्तित्व के रूप में विद्यमान है जबकि अपनी प्राकृतिक विविधताओं, संसाधनों और ऐतिहासिक धरोहरों के लिए पहचान हेतु विख्यात भारतवर्ष इसमें पीछे है। विश्व पर्यटन सङ्गठन के आंकड़ों से स्पष्ट है कि कुल 136 पर्यटन मंच के देशों में अपना देश 40वें स्थान पर विराजमान है। सोशल स्टेटस की प्रतियोगिता की दृष्टि में हम विदेश घूमने का रुख तो कर लेते हैं किंतु देशीय पर्यटन स्थलों से जी चुराने में कसर भी नही छोड़ते। विदेश घूमने हम अवश्य जाएं लेकिन कोशिश करें कि हमारा घरेलू पर्यटन क्षेत्र भी दुनिया के देखने लायक कैसे बने।इस हेतु प्रथमतः देश में विद्यमान पर्यटन स्थलों की ओर रुख करने की आवश्यकता है। यद्यपि भारत में यह उद्योग फल फूल रहा है और लोगों के उत्साह में तेजी आ रही है।पर्यटन की सीमा सिर्फ पहाड़ों, ऐतिहासिक स्थलों और तीर्थस्थानों तक नहीं रहकर ग्रामीण पर्यटन की ओर भी उन्मुख है।लोग ग्राम्य जीवन की गतिविधियों से भिज्ञ होना चाहते हैं वहाँ के सांस्कृतिक विरासत,कला,दस्तकारी, शिल्पकारी आदि चीजों से रूबरू भी होने की जिज्ञासा पाले हुए हैं। पारिवारिक विखंडन ने भी व्यक्ति को अपने मन बहलाव हेतु कहीं भी घूमने का आधार उपलब्ध कराया है।

यद्यपि कुछ राज्यों ने पर्यटन मानचित्र पर अपनी पहचान बनाई है लेकिन अधिकांश प्रांत जहां इसकी अपार संभावनाएं निहित हैं उसपर ध्यान नहीं दिया गया है।हर राज्य में टूर ऑपरेटर या टूर कम्पनियों की भरमार तो है जो यात्रियों को विदेश की सैर के लुभावने व्यंजन परोसते हैं परंतु उसी राज्य में जो पर्यटन पहचान के स्थल हैं वह उनकी प्राथमिकता से वंचित हैं।

पर्यटन आज एक ऐसा उद्योग है जो अपने साथ कई अन्य उद्योग साथ लिए फिरता है जो देश की आर्थिक दशा-दिशा परिवर्तित कर सकता है। जनवरी 2019 में प्रयागराज के कुम्भ मेले में करीब 15 करोड़ लोगों ने भाग लेकर एक कीर्तिमान स्थापित किया। हालांकि,यह एक शुद्ध धार्मिक आयोजन रहा लेकिन विदेश से भी अधिसंख्यक यात्रियों की उपस्थिति ने मेले के स्वरूप को पर्यटन का दर्जा दिलाने में कोई कसर नहीं रखा। अपना देश एक प्राचीन सभ्यता के विभिन्न आयामों से लैश समृद्ध विरासत का महत्वपूर्ण अंग है। यहां प्राचीन कला, अवशेष एवं बहुल स्मारक,विविधता भरी वनस्पतियों से यहां के प्राकृतिक सौंदर्य की छटा देखते बनती है।तमाम संस्कृतियों एवं जायकों का यहाँ सात्विक संगम है।चिंता इस बात की है कि “अतुल्य भारत एवं अतिथि देवो भवः” के भाव धरा पर पूर्णतः उतर नहीं पाए हैं।

इसके कारणों में सबसे प्रमुख है पर्यटन भाव के प्रति राज्य सरकारों की उदासीनता और मानसिक कृपणता। यद्यपि कुछ राज्यों ने पर्यटन मानचित्र पर अपनी पहचान बनाई है लेकिन अधिकांश प्रांत जहां इसकी अपार संभावनाएं निहित हैं उसपर ध्यान नहीं दिया गया है।हर राज्य में टूर ऑपरेटर या टूर कम्पनियों की भरमार तो है जो यात्रियों को विदेश की सैर के लुभावने व्यंजन परोसते हैं परंतु उसी राज्य में जो पर्यटन पहचान के स्थल हैं वह उनकी प्राथमिकता से वंचित हैं। इसके कारणों पर गौर किया जाय तो जो पर्यटन स्थल चिन्हित हैं वहां आधारभूत सरंचनाओं यथा होटल,वाहन,गाइड के समुचित अभाव के साथ उन स्थलों को समुचित रूप से विकसित भी नहीं किये जाने का प्रमाण है।

चूंकि,कोरोना विभीषिका ने इस सेक्टर को भी अपने दामन में समेट लिया है अतःराज्यों के आर्थिक विकास की गति में पर्यटन एक प्रमुख स्रोत सिद्ध हो सकता है बशर्ते इसकी पहचान और प्रगति हेतु हर राज्य सरकार गम्भीरतापूर्वक कार्य योजना तैयार कर उसपर करवाई करे। बेहतर होगा कि राज्य सरकार अपने राजधानी स्थित टूर कम्पनियों से भी मन्तव्य ले और पर्यटन स्थलों को चिन्हित कर उसे विकसित करने में समन्वय बनाये रखे।टूर कम्पनी यदि घरेलू पर्यटन के लिए राज्य सरकारों से विमर्श करती है और अपने सकारात्मक सुझाव से अवगत कराती है तो नए ढंग से गढ़े लघु पैकेज जन-जन के लिए आकर्षक हो सकते हैं। प्रादेशिक पर्यटन का श्रीगणेश वर्तमान माहौल में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।प्रत्येक टूर कम्पनी के कुछ नियमित ग्राहक भी हैं जिनसे तादात्म्य स्थापित कर समय समय पर कार्यशाला/सेमिनार के आयोजन से पर्यटन के प्रचार-प्रसार में लाभ की संभावना है। इससे टूर कम्पनियों में छाई नैराश्य भाव और राज्यों में आई आर्थिक मंदी में एक अदभूत समन्वय की पटकथा लिखी जा सकेगी और कोरोना से उत्पन्न प्रतिकूलताओं से उबर सकने में सहायक होगा।

डॉक्टर अशोक कुमार, सदस्य, बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग, पटना

— साभार हॉटलाइन 

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