पूरा विश्व हमारे भारत की उपलब्धि पर तालियां बजा रहा है और चारों ओर से शुभकामनाओं भरे संदेशे आ रहे रहें हैं।अमेरिका ब्रिटेन जैसे दिग्गज भारत की इस उपलब्धि पर उम्मीद भरी नज़रें टिकाए बैठे हैं। डब्लूएचओ भारत की तारीफों के पुल बांधते नही थक रहा। जब भारत समूचे उपमहाद्वीप के देशों को मुफ्त टीके भेंट कर रहा है तब स्वदेश में ही हमारी ख़ुद की इस असाधारण दोहरी उपलब्धि “मेड इन इंडिया” कोरोनारोधी वैक्सीन पर संशय जताया जा रहा है।
कहावत है कि “घर की मुर्गी दाल बराबर” बस बात वही है,इस विशुद्ध देसी टीके की क्या बिसात जब बड़ी बड़ी विदेशी कम्पनियों ने बड़े नामचीन रिसर्च लैबों के साथ मिल कर बड़ी लागत से महंगे कोरोनारोधी टीके बनाये हैं उनके आगे हमारे होनहार वैज्ञानिकों की दिन-रात की मेहनत,उनकी असाधारण प्रतिभा और प्रतिबद्धता,उनकी लगभग पाँच गुना कम लागत में बनाई गई उत्कृष्ट वैक्सीन भला क्यों कर क़ाबिले तारीफ होनी चाहिए!भारत के “मेक इन इंडिया” और “आत्मनिर्भर भारत” मुहीम के सिरमौर ये कोरोनारोधी वैक्सीन विपक्ष की नज़रों में सत्ता पक्ष का चुनावी हथियार मात्र है, जिसे हर हाल में निरस्त करना विपक्ष की मजबूरी है। सिर्फ प्रश्न पूछने को ही धर्म मान बैठे विपक्ष को पिछले परिणामों से सबक ले लेना चाहिए।
सत्तालोलुपता के वशीभूत होकर हर उस चीज़ को नकारने की, जो देश के लिए गौरव की बात है,स्वार्थ की राजनीति कहते हैं और जनता अब जागरूक है, सही ग़लत का फर्क समझती है।
इस समय हमारा देश न केवल कोरोनाजन्य विपत्तियों से जूझ रहा है बल्कि नकारात्मक विपक्ष की राजनीति से भी जूझ रहा है।सत्ता का विरोध महज इसलिये नही किया जाना चाहिए कि विरोध करना विपक्ष का धर्म है। सत्ता पक्ष से सवाल पूछने के हक़ के साथ साथ विपक्ष की देश के प्रति भी कुछ ज़िम्मेदारी बनती है। स्वस्थ राजनीति में देश और देश का गौरव सर्वोपरि होना चाहिए, संकट में कंधे से कंधा मिला कर चलने का जज़्बा होना चाहिए।एक राजनीतिक पार्टी के युवा और पढ़े लिक्खे फॉरेन रिटर्न नेता ने सार्वजनिक मंच से कोरोनारोधी टीके को पार्टी विशेष का बताते हुए टीका लगवाने से ही इनकार कर दिया। ऐसे गैरजिम्मेदाराना वक्तव्य पर ख़ुद उनके परिजनों ने भी तंज किये, कालांतर में युवा नेता ने सफाई भी दी लेकिन बात तो निकल गई थी…. दूर तलक भी जा पहुची और गंभीर बहस का मुद्दा भी बनी, वार पलटवार हुए लेकिन इन सबके बीच जनता का गुमराह होना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है।
यहाँ समझने वाली बात यह है कि स्वदेशी टीके का अकारण विरोध और उसकी गुणवत्ता पर संशय न केवल हमारे चिकित्सा वैज्ञानिकों का अपमान और उनके मनोबल को गिराने वाला है बल्कि यह आम जनता में भय,भ्रम और संशय का संचार भी करने वाला है। वृहत्तर परिपेक्ष्य में देखें तो वैश्विक स्तर पर भी टीके की गुणवत्ता पर सवाल उठ सकते हैं। ऐसी स्तरहीन और स्वार्थपरक राजनीति देश के विकास में सबसे बड़ी बाधा है। विपक्ष को यह नहीं भूलना चाहिए कि सर्वप्रथम वो जनता के प्रतिनिधि हैं और जनता के प्रति उनकी भी उतनी ही जवाबदेही बनती है जितनी सत्ता पक्ष की। सत्ता पक्ष को घेरने के क्रम में जनता में ऐसी अफ़वाहों का माहौल पैदा करना देश के साथ धोखा है ऐसे में बहुप्रतीक्षित स्वदेशी टीके पर घटिया राजनीति करना विपक्ष की मानसिक खीझ और दिवालियापन को दर्शाता है।
जिस प्रकार सत्ता पक्ष का चुनाव के दौरान मुफ़्त टीकाकरण का प्रलोभन सही नहीं था उसी प्रकार विपक्ष का स्वदेशी टीके की प्रामाणिकता और गुणवत्ता पर प्रश्न सही नही है।सभी राजनीतिक दलों को स्वार्थपरक राजनीति से ऊपर उठ कर एक साथ आकर स्वदेशी टीके का समर्थन करना चाहिए और जनता को जागरूक करना चाहिए क्योंकि देशधर्म सर्वोपरि है।
(Toshi Jyotsna is an IT professional who keeps keen interest in writing on contemporary issues both in Hindi and English. She is a columnist, and an award winning story-writer.)