महामारी की त्रासदी और बकवास झेल रहा आदमी

सूचना की महामारी (इंफोडेमिक ) से जूझता आम जनजीवन !  

PRAVASISAMWAD.COM

      हमारा भारत देश विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है और सामाजिकता, हम भारतवासियों (चाहे दुनियाँ के किसी भी कोने में क्यों न हों) के रगों में ख़ून की तरह दौड़ रही है। सामाजिक होना मतलब एक दूसरे के कुशल-मंगल,अच्छे बुरे की खबर का आदान प्रदान और सिर्फ अपने काम से ही काम नही रखना दूसरों के काम पर भी एक तिरछी बनाये रखना।

कालांतर में हमारी यही सामाजिकता कब कुशलक्षेम से वृथा बकवाद यानी गॉसिप में बदल गई पता ही नहीं चला।हमनें पश्चिमी सभ्यता से प्रेरणा लेकर परिवार संयुक्त से एकल तो बना लिए और भाग दौड़ की ज़िंदगी में लोगो के पास एक दूसरे के लिए समय भी नहीं बचा, लेकिन वो कहावत है ना कि आदत लत और बिवाय तीनों मरने पर ही जाए…तो गप्प यानी गॉसिप की आदत कैसे जा सकती है…वो तो चली आ रही है शायद नारद मुनि से शुरू होकर शाश्वत निरंतर, हाँ स्वरूप जरूर बदलते रहे…कभी जो कानों कान सफर करतीं थीं बातें अब चलभाषयंत्र यानी मोबाईल फ़ोन पर फारवर्ड होती हैं…सामाजिकता अब अपने आधुनिक कलेवर में सोशल मीडिया बन वसुधैव कुटुम्बकम को अपना प्रचार वाक्य(टैग लाइन) बना हमारे जीवन मे रच बस गई। देश विदेश की गप्पें नमक मिर्च लगाकर तबियत से बैकग्राउंड म्यूजिक के साथ हमारे मोबाईल फ़ोन पर हर वक़्त काबिज़ और हम जो सामाजिक प्राणी ठहरे चटखारे ले ले कर उनका आस्वादन करते रहे।

वीडियो कॉलिंग की सुविधा आ जाने के बाद तो मामला ये हो गया कि बस जरा गर्दन झुकाई और दीदार कर लिया! इन सोशल मीडिया टूल्स ने समाज को फिर से करीब ला दिया। बचपन के छूटे लंगोटिया यार फिर से मित्रसूची में आबद्ध हुए।भूले बिसरे नाते रिश्ते फिर से स्थापित हुए।बात शुरू तो एंटरटेनमेंट यानी मनोरंजन से हुई लेकिन सामाजिक प्राणियों के अति उत्साह ने उसे एक अलग ही स्तर पर पहुँचा दिया।यहां गौरतलब ये है कि हमारे देश की करीब सैंतीस करोड़ जनता विभिन्न सोशल मीडिया मंचों से जुड़ी है जो निरंतर मीडिया कंपनियों, राजनीतिक पार्टियों और विज्ञापनों के निशाने पर  रहती हैं। हम भारतीयों की अतिसंवेदनशील मानसिकता को इनसब के द्वारा बख़ूबी भुनाया जाने लगा। इस होड़ में खबरें कब अफवाह में तब्दील हो गईं पता ही नहीं चला। इनफार्मेशन कब  मिसिन्फॉर्मेशन और इंफ़ोमर्शियल बन दिल-ओ-दिमाग पर हावी हुआ इसका तो भान तक नही हुआ।

हर कोई कोरोना महामारी का विशेषज्ञ बन बैठा। घर बैठे स्मार्ट फ़ोन से किसी भी जानकारी या अफवाह को बिना सोचे समझे अग्रसारित करने की जैसे होड़ लग गई। सूचना और अफ़वाहों की ऐसी सुनामी आई कि इस को विश्व स्वास्थ्य संगठन को आधिकारिक रूप से इंफोडेमिक का नाम देना पड़ गया।

साल 2019 जब अपने अंजाम तक आया तो सौगात में कोविड 19 नामक पैंडेमिक यानी वैश्विक महामारी लाया। नए साल 2020 में नित नई चुनौतियों का सामना किया हम भारतीयों ने….पहले जो इक्के दुक्के साम्प्रदायिक मामले सोशल मीडिया के सौजन्य से घटित होते थे अब पूरे पूरे दंगे अंजाम दिए जाने लगे..ये सब चल ही रहा था तभी इस नई नवेली प्राणलेवा बीमारी के पदार्पण की आहट ने सोशल मीडिया के सभी ज्वलंत विषयों पर तुलसीदल फेरने का काम कर दिया। अब सारा सोशल मीडिया कोरोना विषाणु के   कारण-निवारण पर केंद्रित हो गया। नई बीमारी और उससे जनित परिस्थितियों से प्रायः सभी अनभिज्ञ ही थे क्या सरकारी तंत्र क्या आम जनता सबकी एक सी हालत! बस अंधेरे में तीर चलाने वाली बात। इतनी बड़ी समस्या उसपर इतनी बड़ी जनसंख्या को संभालना, कोई मामूली बात नही है साहब! दूसरों की देखी कर हमनें भी कोरोना विषाणु पर अपने दरवाज़े बन्द कर लिए…अरे बन्द क्या किये जबरन बन्द करवाया गया डंडे के ज़ोर पर वर्ना तो हम जो कि सामाजिक प्राणी हैं समाज से इस तरह कट कर नहीं जी सकते थे।इधर जनता टांगें पसार घर में विराजमान हुई उधर सोशल मीडिया पर अफवाहों के चरखा बड़ी तेज़ी से चल पड़ा….जनता में व्याप्त भय और उत्कंठा को बहुत अच्छी तरह से भुनाया जाने लगा।

हर कोई कोरोना महामारी का विशेषज्ञ बन बैठा। घर बैठे स्मार्ट फ़ोन से किसी भी जानकारी या अफवाह को बिना सोचे समझे अग्रसारित करने की जैसे होड़ लग गई। सूचना और अफ़वाहों की ऐसी सुनामी आई कि इस को विश्व स्वास्थ्य संगठन को आधिकारिक रूप से इंफोडेमिक का नाम देना पड़ गया। इंफोडेमिक यानी सूचना की महामारी! इंफोडेमिक शब्द इन्फॉर्मेशन और एंडेमिक यानी स्थानिक को मिला कर बनाया गया है। शब्द इतना नया है कि अभी तक इसका हिंदी तर्जुमा नही हो पाया है। डब्लू.एच. ओ. की उद्घोषणा में इस इंफोडेमिक यानी सूचना की सुनामी को भी इस घातक विषाणु से कम घातक नहीं आंका गया था।

वैश्विक स्तर पर कोरोना विषाणु पर तरह तरह के शोध शुरू हुए,वैज्ञानिक जुट गए …इधर फ़ेसबुक, व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी के होनहारों द्वारा भी विषाणु की सम्पूर्ण कुंडली निकालने की कोशिश हुई । सोशल मीडिया पर तमाम अनुसन्धान हुए।मसलन कोरोनो विषाणु की उत्पत्ति पर अलग अलग धारणाएं आ गईं जिनके अनुसार कभी चीन तो कभी चमगादड़, कभी जैविक हथियार तो कभी ईश्वर का प्रकोप,कभी प्रदूषण तो कभी मांसाहार को कारण बताया गया और शोध की पराकाष्ठा तो तब हुई जब “फाइव जी” मोबाईल नेटवर्क को इस महामारी की जड़ बताया गया।

विषाणु की उत्पत्ति को हर सम्भव तरीके से स्थापित करने के बाद उससे बचाव के हर सम्भव तरीकों को ढूंढने की होड़ गई ।मास्क और विसंक्रमन जल के प्रयोग विधि पर हर प्रकार की भ्रामक जानकारी सरकारी घोषणाओं (गवर्नमेंट गाइडलाइन्स) के इर्दगिर्द ऐसे फैल गईं कि जनता में भ्रम की स्थिति पैदा हो गई।टिकटॉक,यू ट्यूब पर मास्क और सैनिटाइजर बनाने की अनेकानेक विधियों का प्रतिपादन दृश्य समेत किया गया और भोली जनता ने पूरी तन्मयता से देखा अनुपालन किया। सैनिटाइजर और मास्क इतनी जमाखोरी हुई कि दाम आसमान छूने लगे।लेकिन इस आपाधापी में  मास्क के सही उपयोग और उसके समुचित रख रखाव सम्बंधित जानकारी मसलन मास्क से सिर्फ मुँह ही नही नाक को भी ढकने की जरूरत है या मास्क की सफाई  इत्यादि पर जरूरी जानकारियाँ नगण्य ही रहीं।भ्रान्तियाँ और फैलीं।सरकारी एजेन्सियाँ भी इसमें में कहाँ पीछे रहने वाली थीं आयुष मंत्रालय ने बिना किसी वैज्ञानिक प्रामाणिकता के वैकल्पिक चिकित्सा जैसे होमियोपैथी या आयुर्वेद में मौजूद औषधियों को सम्भावित उपचार और प्रतिरोध के नाम पर खूब प्रचारित किया गया।होमियोपैथी में “आर्सेनिक एल्बम”  नामक दवा को कोरोना प्रतिरोधी कह कर प्रचारित किया गया जबकि यह साधारण फ्लू की दवा है परिणाम स्वरूप लोगों ने बेवजह ही इस दवा का सेवन किया। उसी प्रकार आयुष काढ़े का भी आविर्भाव कोरोना मारक पेय के रूप में हुआ। इसके अवयव सामान्य रोग प्ररिरोधी क्षमता को बढ़ाने में भले ही कारगर हों लेकिन कोरोना के परिपेक्ष्य में इस काढ़े की प्रमाणिकता कितनी है वो आज भी विमर्ष का विषय है।इसके परिपेक्ष्य में पत्र सूचना कार्यालय (प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो) तथा आयुष विभाग को कड़ी आलोचना का सामना भी करना पड़ा। आयुष विभाग के काढ़े की तर्ज पर सोशल मीडिया के तमाम टूल्स ने इतने काढ़े इतने मिश्रण ईजाद कर दिये कि आम इंसान सोच में पड़ गया कि कौन सा खाये और कौन सा छोड़े!गिलोय,तुलसी,नींबू, आंवला,अदरक, लौंग,इलाइची,शहद, कालीमिर्च हल्दी और न जाने क्या क्या…इतनी चिकित्सकीय भ्रान्तियाँ पैदा की गईं कि लोग आज तक द्विविधा में पड़े हैं। यहाँ गौरतलब यह है कि आयुर्वेद के विषय में एक और बहुत गम्भीर भ्रांति जनमानस में बहुत गहरे पैठी हुई है कि इसके सेवन के दुष्परिणाम यानी साइड इफेक्ट्स नहीं होते। चाहे औषधि का उपयोग कितना ही बेवजह और बेहिसाब क्यों न हो।ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। औषधि सेवन का भी एक अनुशासन होता है चाहे वह आयुर्वेद हो होमियोपैथी हो या एलोपैथी। हमारे शास्त्रों में भी कहा गया है कि “अति सर्वत्र वर्जयेत”।

इंफोडेमिक यानी सूचना की महामारी! इंफोडेमिक शब्द इन्फॉर्मेशन और एंडेमिक यानी स्थानिक को मिला कर बनाया गया है। शब्द इतना नया है कि अभी तक इसका हिंदी तर्जुमा नही हो पाया है। डब्लू.एच. ओ. की उद्घोषणा में इस इंफोडेमिक यानी सूचना की सुनामी को भी इस घातक विषाणु से कम घातक नहीं आंका गया था।

कई चमत्कारिक नुस्खे वायरल हुए इस दावे के साथ कि इनके सेवन से जिनको कोरोना संक्रमण है या जिनको नहीं है सभी को कोरोना से हमेशा के लिए निजात मिलेगी। ऐसा ही एक उपचार था गौमूत्र तथा पंचगव्य(गाय के घी, ढूध दही गोबर तथा गौमूत्र का मिश्रण) सेवन। इसी अतिउत्साह में सरकार के नियम कानून को ताख़ पर रखते हुए अखिल भारतीय हिन्दू महासभा नामक संगठन ने बाकायदा गौमूत्र सेवन समारोह ही रख दिया और करीब दो सौ लोगों ने यज्ञ और पूजन के बाद गौमूत्र और पंचगव्य का सेवन किया। इसकी देखा देखी कई वाकये सामने आए जिसमें कई लोगों की तबीयत बिगड़ने के मामले भी सामने आए। इस मामले में सरकार के लोग भी पीछे नही रहे।असम राज्य की एक विधायक ने बाकायदा विधानसभा में गौमूत्र द्वारा कोरोना की चिकित्सा की सम्भावना की बात कही।खैर ये मामला तो अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा मंच से मलेरिया की दवा को कोरोना का शर्तिया इलाज बताए जाने के सामने कुछ भी नहीं है। महामहिम ट्रम्प की उस घोषणा के बाद विश्व भर में हाईड्रोक्लोरोक्विन नामक दवा की खरीद अप्रत्याशित रूप से बढ़ गई, तथा इसके निर्यात को लेकर भारत और अमेरिका के बीच खासी तनातनी भी हो गई। बाद में डब्ल्यू. एच.ओ. ने खुलासा किया कि हाईड्रोक्लोरोक्विन  कोरोना विषाणु के लिए बिल्कुल भी कारगर दवा नही है और ख़ुद ट्रम्प महोदय को ट्विटर पर यह बात स्वीकारनी पड़ी। इस मिसिन्फॉर्मेशन कि भुक्तभोगी फिर से जनता ही बनी कितनों की जान पर बन आई।कुल मिलाकर देखा जाए तो इस चिकित्सकीय भ्रांति रूपी महामारी ने समान रूप से सब को ग्रसित किया है क्या अमेरिका जैसे  देश के राष्ट्रपति और क्या हम आप! इन जानलेवा ग़लतियों से सबक न सरकारों ने लिया न ही जनता ने। भ्रांति और अफवाहों का सिलसिला अहर्निश जारी रहा। नित नए अफवाहों को हवा दी जाती रही और जनता उन्हें बिना परखे बिना कसौटी पर कसे खुद आजमाए या नही अग्रसारित बड़ी तत्परता से करती रही।

कोरोना और मद्यपान को लेकर भी बहुत भ्रान्तियों का दुष्प्रचार हुआ, यहाँ तर्क या यूं कहें कि कुतर्क यह था कि जिस प्रकार अल्कोहल मिश्रित सैनिटाइजर बाहरी सतह के संक्रमण से मुक्त करने में सक्षम है उसी प्रकार अल्कोहल (शराब) शरीरस्थ संक्रमण को भी दूर करेगा। फेसबुक व्हाट्सएप तथा कुछ नामी न्यूज़ चैनलों पर ऐसी खबरें दिखाई गईं कि मद्यपान से कोरोना विषाणु के संक्रमण से निजात मिल सकती है। फिर क्या था..… जनता कोरोनो के भय,सामाजिक दूरी(सोशल डिस्टेनसिंग) और लॉक डाउन सब को नज़रअंदाज़ कर शराब की लाइनों में खड़ी हो गई। क्लोरीन और मेथेनॉल के सेवन के कई वाकये हमारे देश के अलग अलग हिस्सों से आये। ईरान में ऐसी ही एक घटना सामने आई जिसमे करीब आठ सौ लोगों की जान मेथेनॉल नामक अल्कोहल पीने से हो गई तथा इसके सेवन से काफी संख्या में लोगों के नेत्रहीन होने की खबरें भी आईं।एक बार फिर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्पष्टीकरण किया कि कोरोना के उपचार या प्रतिरोध का मद्यपान से  सीधा या टेढ़ा किसी भी प्रकार का कोई सम्बंध नहीं है।

मिसिन्फॉर्मेशन की हद तब पार हुई जब कोरोना संक्रमण को सांप्रदायिक रंग दे दिया गया। व्हाट्सएप,ट्विटर,फेसबुक और अधिकांश न्यूज़ चैनल दिन रात सम्प्रदाय विशेष पर निशाना साध हर सम्भव तरीके से उन्हें रोगवाहक साबित करने की होड़ में लग गए। इस घटना से सम्बंधित इतने  विडियो वायरल हुए कि सही ग़लत का फ़र्क करना मुश्किल हो गया।देश भर से छुटपुट हिंसा की वारदातों की खबरें सुर्खियों में बनी रहीं। फलस्वरूप जनमानस में भय और वैमनस्य और अविश्वास की स्थिति उत्पन्न हुई जो कि अतिदुर्भाग्यपूर्ण है। इस संकट के समय मे जब देश को एकजुट होकर इस महामारी से पार पाने की आवश्यकता थी तब ये सोशल मीडिया टूल्स हमे आपस मे लड़ा कर और कमज़ोर करने में लगे थे। मगर इसमें जनता भी उतनी भागीदार है, वो कहते हैं ना कि ताली एक हाथ से नहीं बजती।

फिर देश के जाने माने योगगुरु के सौजन्य से एक आयुर्वेदिक औषधि कोरोनिल का समारोहपूर्वक प्रक्षेपण हमारे कोरोना ग्रसित देश पर   मिसाईल की मानिंद हुआ विषाणु से शत प्रतिशत आरोग्य के दावे और सरकार के आयुष विभाग के ठप्पे के साथ। जनता तो मन मयूर हुई कि चलो आख़िरकार हमारे अपने आयुर्वेद ने ही तोड़ निकल आया। उत्साहित जनता दौड़ पड़ी कोरोनिल रूपी संजीवनी को हासिल करने के लिए। लेकिन कालांतर में कोरोनिल भी कोरोना की कसौटी पर खरी नहीं उतरी, और उत्तरोत्तर जाँच के बाद यही पता चला कि यह दवा भी महज इम्युनिटी बूस्टर यानी प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाने वाली औषधि ही है इसका कोरोना के उपचार से कोई विशेष लेनादेना नहीं है। जनता फिर ठगी गई।लेकिन हमारी सोच हमेशा सकारात्मक है,हम भारतीय आशान्वित है कि कहीं किसी दिन इसी सोशल मीडिया के किसी अवतार से कोई ऐसा चमत्कारिक तोड़ सामने आएगा जिसके आगे कोरोना विषाणु चारों खाने चित्त हो जाएगा। साहब उम्मीद पर ही तो दुनिया क़ायम है!सम्पूर्ण विश्व इस कोरोना वायरस के टीके की उम्मीद में बैठा है।

 

कोरोना विषाणु रोधी टीके के सम्बंध में भी बहुत सारी जानकारी हर रोज़ सामने आती रही है और साथ ही भ्रांतियाँ भी उन जानकारियों के साथ साथ गलबहियां डाले डोल रही हैं। सबसे विलक्षण अफ़वाह टीके के सम्बंध में मशहूर धनकुबेर श्रीमान बिल गेट्स को लेकर आई है।इस षड़यंत्रकारी दुष्प्रचार में बताया गया है कि कैसे कोरोना वैक्सीन की आड़ में  लोगों के शरीर में माइक्रोचिप प्रत्यारोपित करने की साजिश रची जा रही है। इस आशय के वीडियो लगभग दर्जन भर देशों में अलग भाषाओं में कुछ संशोधन के साथ वायरल हुए और परिणाम स्वरूप प्रतिरोधी टीके के बाज़ार में उपलब्ध होने के पूर्व ही उसका बहिष्कार भी शुरू हो गया है। ऐसी अफवाहें जनता में  भीषण संशय और द्विविधा का संचार करतीं हैं जो भविष्य में भयंकर दुष्परिणाम लेकर आएंगी।

महामारी ने वैश्विक अर्थव्यवस्था पर तो लॉक डाउन लगा ही दिया था इस चिकित्सकीय भ्रांति की सुनामी ने इस आग में घी का काम किया।मसलन एक भ्रांति के अनुसार मांसाहार तथा मांस उद्योग को कोरोना संक्रमण का कारण माना गया। इस सिलसिले में केंद्रीय मंत्री को आगे आकर स्पष्टीकरण देना पड़ा कि मांसाहार में कोई हानि नही है ।मंत्री महोदय को मांसाहार की अपील करनी पड़ी क्योंकि मांसाहार से कोरोना संक्रमण की भ्रांति ने मांस उद्योग की रीढ़ ही तोड़ डाली। लाखों किसानों और उसकी आपूर्ति कड़ी में जुड़े करोड़ों लोगों की रोज़ी रोटी छिन गई। देश को भी बहुत आर्थिक नुकसान हुआ।अनुमानतः रोजाना 1500 से 2000 कड़ोड का नुकसान अकेले मुर्गीपालन उद्योग ने उठाया है। इसका नुकसान प्रकारांतर से जनता पर भी पड़ा क्योंकि भारतीय खानपान में प्रोटीन तथा पोषण की  35 फीसदी आपूर्ति केवल मांसाहार से होती है। मांसाहार की अनुपस्थिति में पोषण एक चिंता का विषय बन कर उपस्थित हुआ।ध्यातव्य हो कि प्रोटीन शरीर की प्रतिरोधी क्षमता को संवर्धित करता है अंततोगत्वा इन अफवाहों और मिसिन्फॉर्मेशन के चक्कर मे नुकसान तो जनता का ही होता है।

इस पूरे विमर्श का हस्बेमामूल ये है कि आज विश्व सिर्फ कोरोना ही नहीं अपितु कोरोना से जुड़ी भ्रांतिजन्य परिस्थितियों से भी लड़ रहा है। इस परीक्षा की घड़ी में सरकारी तंत्र एवं  आम जनता को समान रूप से जिम्मेदारी लेने और सहयोग करने की आवश्यकता है।

फेक न्यूज़ ने सरकार के लिए हर स्तर पर मुश्किलें खड़ी की हैं।चाहे केंद्र स्तर हो या राज्य या फिर स्थानीय।सरकारी तंत्र जितना विषाणु   से सम्बंधित प्रबंधन में व्यस्त रहा उतना ही भ्रांतिजन्य परिस्थितियों के प्रबंधन में भी उलझा रहा। ख़ुद माननीय प्रधानमंत्री जी ने नाम सम्मेलन के अंतरराष्ट्रीय मंच से सम्पूर्ण विश्व की आबादी को इस इंफोडेमिक से सावधान रहने की अपील की है।  इस संदर्भ में लोकतंत्र के सभी पायदानों को अपने अपने कर्तव्य के सम्यक निर्वहन की आवश्यकता है।मीडिया को भी अपनी जिम्मेदारी गम्भीरता पूर्वक निभाने की जरूरत है।इससे सम्बंधित कानून में भी सुधार कर इसको पैना बनाने की जरूरत है क्योंकि मौजूदा आई.टी.ऐक्ट 2008 इस समस्या से निपटने के लिए दंतहीन ही साबित हुआ है। कुछ राज्यों में आपदा प्रबंधन ऐक्ट (सेक्शन 54) के तहत इन अफ़वाहों और उससे जुड़े शरारती तत्वों को रोकने का काम किया है। इसमें हुई सन्साधन के नुकसान की कहीं कोई भरपाई नही है।

आम जनता को अपने वाक तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरूपयोग किसी भी प्रकार के अफवाह या मिसिन्फॉर्मेशन के संचार में नहीं करना चाहिए।अब यहाँ प्रश्न आता है कि सही अथवा ग़लत सूचना की पहचान कैसे सम्भव होगी तथा अब आगे का रास्ता क्या है? तो उत्तर बहुत सरल है  कि जो जानकारी तर्कसंगत न लगे उनकी पड़ताल पहले अपने स्तर से करने के बाद ही अग्रसारित की जाए। इस सम्बंध में आजकल अनेक फैक्ट चेकिंग वेबसाइट हैं जहां दूध का दूध और पानी का पानी एक पल में किया जा सकता है। तो जागरूक बनें,फेक न्यूज़ के जाल में न फसें और न ही बिना सोचे समझे मिसिन्फॉर्मेशन के वाहक बनें। ऐसी अफवाहों से दूर रहें जो जानलेवा हो सकती हैं।इंफोडेमिक और पैंडेमिक से जूझती मानवजाति में और दुविधा और भ्रम की स्थिति न पैदा हो इसलिए हम सभी को जिम्मेदार नागरिक बनते हुए सरकार का साथ इस दोहरी लड़ाई में देना चाहिए ताकि मानवता की विजय हो। बाकी तो हम हैं ही सामाजिक प्राणी कोई न कोई नया शगल ढूँढ ही लेंगे दिल बहलाने को।

फेक न्यूज़ की जाँच पड़ताल

फैक्ट चेकिंग यानी तथ्यों की तह तक जा कर उनके सही ग़लत होने का सत्यापन करना। आज के दौर  मे जहाँ ऑनलाइन मीडिया के पदार्पण और न्यूज़ चैनलों के टी.आर.पी. की होड़ में विश्वनीय समाचार तथा फेक न्यूज़ के बीच मे फर्क करना बहुत कठिन हो गया है।सोशल मीडिया को तो खैर ऐसे अनफ़िल्टर्ड न्यूज़ की खान ही कह सकते हैं।  सन 2015 में  IFCN यानी इंटरनेशनल फैक्ट चेकिंग नेटवर्क का गठन हुआ।IFCN का उद्देश्य  था वैश्विक स्तर पर फैले हुए फेक न्यूज़ की निर्बाध गति पर स्पीड ब्रेकर का कार्य करना। भ्रांतिजन्य परिस्थिति पर काबू पाने के लिए फैक्ट चेकिंग वेबसाइटों का प्रादुर्भाव हुआ और IFCN के तहत अनेकों देशों में ऐसी तथ्य परीक्षक वेबसाइटों ने काम करना शुरु किया।

ये वेबसाइट प्रायः सभी प्रकार के मिसिन्फॉर्मेशन और फेक न्यूज़ की प्रामाणिकता का बहुत ही वैज्ञानिक तरीके से विश्लेषण कर सच जनता के सामने लाती हैं। हालाँकि अभी आम जनता में इनके अस्तित्व का ज्यादा ज्ञान नही है, परन्तु धीरे धीरे जनता में इनकी विश्वसनीयता बढ़ती जा रही है। हम यहाँ आपके लिए भारत की ऐसी दस शीर्ष वेबसाइटों की सूची लाये हैं जो सरकार तथा जनता दोनों के लिए इस इंफोडेमिक यानी फेक न्यूज़ की महामारी से लड़ने में सबसे बड़ा हथियार साबित हो रही हैं।सूची में दी गई सभी वेबसाइटें इंटरनेशनल फेक न्यूज़ नेटवर्क के गाइड लाइन के तहत कार्य करती हैं अतः पूर्णतया विश्वनीय हैं।

  1. बूम लाइव (BOOM.LIVE)
  2. न्यूज़ चेकर(NEWSCHECKER)
  3. फैक्ट क्रेसेंडो(FACT CRESCENDO )
  4. न्यूज़ मोबाईल फैक्ट चेकर(NEWS MOBILE FACT CHECKER)
  5. न्यूज़ मीटर (NEWSMETER)
  6. इंडिया टुडे फैक्ट चेक (INDIA TODAY FACT        CHECK)
  7. वेबक़ूफ़ (WEBQOOF)
  8. विश्वास न्यूज़ (VISHWAS.NEWS)
  9. फ़ैक्टली मीडिया एंड रिसर्च (FACTLY MEDIA AND RESEARCH)
  10. ऑल्ट न्यूज़ (ALT NEWS)

(हॉटलाइन से साभार)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here