पाँच रुपये की दिहाड़ी से वैश्विक कला मंच तक: तेजु बहन की असाधारण यात्रा - pravasisamwad
December 25, 2025
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पाँच रुपये की दिहाड़ी से वैश्विक कला मंच तक: तेजु बहन की असाधारण यात्रा

जब सत्रह वर्षीय तेजु बहन अपने पति गणेश जोगी के साथ राजस्थान से अहमदाबाद आईं, तब उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि उनकी ज़िंदगी इतनी नाटकीय रूप से बदल जाएगी। रोज़ी-रोटी के संघर्ष में तेजु एक दिहाड़ी मज़दूर के रूप में सीवर की खुदाई का काम करती थीं और इसके बदले उन्हें रोज़ केवल पाँच रुपये मिलते थे। वहीं, गणेश जोगी भजन गायकों के एक पारंपरिक परिवार से थे और स्थानीय कार्यक्रमों में भजन गाकर जो थोड़ा-बहुत कमा पाते थे, उसी में गुज़ारा करते थे। वे अक्सर तेजु को भी अपने साथ ले जाते थे।

उनकी ज़िंदगी में एक निर्णायक मोड़ तब आया जब उनकी मुलाक़ात प्रसिद्ध समकालीन कलाकार हाकू शाह से हुई। हाकू शाह ने दंपती की छिपी हुई रचनात्मक क्षमता को तुरंत पहचान लिया। जब उन्होंने गणेश को छह रुपये प्रतिदिन पर अपने साथ काम करने का प्रस्ताव दिया, तो गणेश सहर्ष तैयार हो गए। लेकिन उन्हें तब आश्चर्य हुआ जब शाह ने उन्हें एक कलम थमाई और कहा “जो मन में आए, उसे काग़ज़ पर उतारो”।

पति और हाकू शाह दोनों के प्रोत्साहन से तेजु बहन को भी अपनी रचनात्मकता को आज़माने के लिए प्रेरित किया गया। एक रूढ़िवादी समुदाय से आने के कारण, जहाँ महिलाओं से घरेलू कामों तक सीमित रहने की अपेक्षा की जाती थी, तेजु पहले झिझक रही थीं। लेकिन धीरे-धीरे मार्गदर्शन और आत्मविश्वास के साथ उन्होंने चित्र बनाना शुरू किया और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

इसके बाद शुरू हुई एक संतोषजनक और सृजनात्मक यात्रा। एक के बाद एक चित्र बनाते हुए तेजु बहन ने अपने जीवन अनुभवों, संघर्षों, सपनों और कल्पनाओं से भरी एक अलग ही दृश्य-भाषा रच दी।

आज 58 वर्ष की उम्र में तेजु बहन अपनी विशिष्ट चित्रशैली के लिए जानी जाती हैं, जो व्यक्तिगत स्मृतियों और रोज़मर्रा के जीवन को जीवंत रूप में प्रस्तुत करती है। जो यात्रा कभी अपने पति के साथ शुरू हुई थी, वह अब एक पारिवारिक परंपरा बन चुकी है—जिसमें उनके बच्चे और पोते-पोतियाँ भी कला से जुड़ गए हैं।

उनके जीवन और कला को Drawing from the City नामक एक चित्र-पुस्तक में संकलित किया गया है, जो ग़रीबी से कला की दुनिया तक उनके सफ़र को दर्शाती है। यह पुस्तक रिसोग्राफ़ी तकनीक से मुद्रित है, जो एक पर्यावरण–अनुकूल छपाई विधि है और प्रकृति के प्रति उनके सम्मान को दर्शाती है।

 

आज तेजु बहन की कला दुनिया भर के लोक कला महोत्सवों में प्रदर्शित की जाती है, जहाँ उनकी कभी अनसुनी आवाज़ अब वैश्विक मंच पर गूंज रही है। तेजु बहन की कहानी इस बात का सशक्त प्रमाण है कि यदि प्रतिभा को विश्वास और अवसर मिल जाए, तो वह किसी भी परिस्थिति से ऊपर उठ सकती है।

आज भी तेजु बहन गाती हैं, चित्र बनाती हैं और अपने सपनों को कला में ढालती हैं यह दिखाते हुए कि सृजनशीलता कहीं भी और जीवन के किसी भी चरण में पनप सकती है।

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