चेतक की स्मृति और उसके न होने की कसक कोसी क्षेत्र में भ्रमण के दौरान हो आना बहुत ही सामान्य है
हम मक्खियों से कितनी भी घृणा करें लेकिन हम सबके भीतर दोष देखने की एक जो प्रवृत्ति होती है, वह मक्खियों की प्रवृत्ति से काफी मिलती जुलती होती है। जिस प्रकार मक्खी पूरेस्वस्थ शरीर को छोड़ एक छोटे से घाव पर जा बैठती है, उसी प्रकार हम अपनी सारी सम्पूर्णताओं को छोड़कर मात्र एक कमी पर अटक जाते हैं। यह कमी दूसरों में दिखे तब तक तोचलो फिर भी ठीक है पर यदि यह अपने में दिखे तो आदमी बिना किसी दोष के अपराध बोध से घिर जाता है और फिर वह उस कमीं को किसी भी तरह दूर करना चाहता है। साँवलीलड़कियों का फेयर एंड लवली लगाना, मोटे लड़कों का तोंद अंदर खींचकर फोटो खिंचवाना, गंजों का विग लगाना आदि इसी का उदाहरण हैं।
मेरे पास बुलेट मोटरसाइकिल है पर इन दिनों मुझे चेतक की कमी महसूस हो रही है। हाँ महाराणा प्रताप के उसी चेतक की जिसके विषय में वीर रस शिरोमणि स्वर्गीय श्री श्यामनारायण पाण्डे ने अपनी कविता हल्दीघाटी में लिखा है कि :
पड़ी अचानक नदी अपार¸
घोड़ा कैसे उतरे पार।
राणा ने सोचा इस पार¸
तब तक चेतक था उस पार॥
चेतक की स्मृति और उसके न होने की कसक कोसी क्षेत्र में भ्रमण के दौरान हो आना बहुत ही सामान्य है क्योंकि यहाँ मुख्यमंत्री ग्राम सड़क योजना की सड़कों पर जब न तब ‘अपारदरिया’ आ कर खड़ी हो जाती है। अब बुलेट तो मेरे पूरा सोचने के बाद तक भी चुपचाप खड़ी रहती है, चेतक होता तो पार कर जाता।
कुछ लोग इस बात के लिए भी बिहार के पीएम मटेरियल मुख्यमंत्री को दोष देना चाहेंगे पर मैं तो गोस्वामी तुलसीदास की उक्ति ( समरथ को नहीं दोष गोसाई) में विश्वास करता हूँ औरअभी तो वे पीएम मटेरियल हैं। हालाँकि जिस पुस्तक से यह उक्ति ली गई है उसमें सायनाइड होने का दावा एक अन्य समर्थ आदमी ने किया है लेकिन जिसकी जितनी बुद्धि होगी वहउतना ही सोचेगा नS? और मक्खी वृत्ति पर मेरा एकाधिकार तो है नहीं।️
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