जनसंख्या: सिक्के के दो पहलू

विश्व की लगभग 2.4 प्रतिशत ज़मीन पर दुनिया की 17 प्रतिशत आबादी बसी है जो निरंतर इस आंकड़े में इज़ाफ़ा करती हुई 2027 तक चीन को भी पछाड़ने जा रही है

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इन दिनों जनसंख्या और जनसंख्या के नियंत्रण के मुद्दे ने तूल पकड़ा हुआ है। दुनिया के सातवें बड़े देश में दुनिया की दूसरी बड़ी आबादी फलफूल रही है। इसको अगर आंकड़ों की शक्ल दें तो समस्त विश्व की लगभग 2.4 प्रतिशत ज़मीन पर दुनिया की 17 प्रतिशत आबादी बसी है जो निरंतर इस आंकड़े में इज़ाफ़ा करती हुई 2027 तक चीन को भी पछाड़ने जा रही है।

हस्बेमामूल यह कि सीमित संसाधनों, सीमित भूमि, सीमित पानी और सीमित रोजगार पर असीमित जनसंख्या धीरे धीरे वरदान से अभिशाप की ओर अग्रसर होती जा रही है।

पूर्व में इमरजेंसी के वक़्त भी नियंत्रण के लिए कठोर कदम उठाए गए थे लेकिन परिणाम सर्वविदित है। आमजन की इसी प्रतिक्रिया ने सरकारों की इच्छाशक्ति को दबा दिया और इसका असर यहां तक दिखा कि परिवार नियोजन मंत्रालय का नाम बदल कर परिवार कल्याण मंत्रालय कर दिया गया।

ऐसे में मौजूदा सरकार को इस संबंध में बहुत सोच समझ कर कदम उठाना चाहिए। जल्दबाज़ी में बिना सोचे समझे लाये गए कानून का खामियाजा सरकार को भुगतना पड़ सकता है। समाज में बराबरी का अधिकार हमारे संविधान का सबसे मजबूत पहलू है, लेकिन यह नया बिल समाज में असमानता लाने वाला है।

कम संतान वाले दम्पति को अधिक सुविधाएँ और अधिक सन्तति वाले परिवारों को सुविधा से वंचित करना समाज में भेद उत्पन्न करने का काम करेगा। शुरुआत से ही  जनसंख्या नियंत्रण के मामले में सरकारों का विशेष ध्यान मुस्लिम, दलित और आदिवासी जनसंख्या पर रहा है ऐसे में इस बिल के प्रावधान कमज़ोर को और कमज़ोर बनाने वाले हैं।

इस बिल का दूसरा पहलू यह है कि परिवार नियोजन का सारा दारोमदार कमोबेश स्त्रियों के ऊपर छोड़ दिया गया है। इस स्थिति में  नियोजन के तमाम उपाय अपनाने को मजबूर स्त्रियां कई बार अपने स्वास्थ्य से समझौता कर बैठती हैं और कई दफा तो जान से हाथ धो बैठती हैं।

पितृसत्तात्मक समाज में पहले से ही कन्या संतान के प्रति जो रुख है किसी से छिपा नही है लेकिन इस बिल के लागू होने के बाद कन्याभ्रूण हत्या के मामले अप्रत्याशित रूप से बढ़ेंगे और लिंग अनुपात जो कि पहले से ही सोचनीय विषय है एक समस्या बन कर उभरेगा।

जनसंख्या नियंत्रण समय की मांग है लेकिन इसकी रोकथाम के लिए समाज को पुरस्कृत और वंचित करने की नीति के बजाय समाज के हर तबक़े को जनसंख्या नियंत्रण के लिए सजग और शिक्षित करना जरूरी है। स्त्रियों को शिक्षित करना उन्हें आत्मनिर्भर करना, उनके लिए रोजगार के अवसर प्रदान करना तथा उनके स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार करना इस दिशा में सरकार से अपेक्षित कदम हैं। श्रीलंका जैसे छोटे  देश ने विवाह की उम्र सीमा बढ़ा कर और स्त्रियों के लिए अनिवार्य शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण कदम उठा कर जनसंख्या पर नियंत्रण की वांछित स्थिति हासिल कर ली है तो क्या हमारे देश में यह मुमकिन नहीं है?

हमें यह भी नही भूलना चाहिए कि अगले डेढ़ दशक में हमारा देश जिसे युवा राष्ट्र कहा जाता है यूरोप और ब्रिटेन की तरह वृद्ध जनसंख्या वाले देशों की श्रेणी में आ जाएगा और अगर ज़बरन जनसंख्या नियंत्रित कर दी गई तो हमारी अर्थव्यवस्था एकदम से चरमरा जाएगी।

विकासशील देश से विकसित देश तक के सफर में व्यावधान भी पड़ सकता है। जनसंख्या नियंत्रण जैसी गंभीर समस्या का निदान एक सोची समझी नीति के तहत होना चाहिए न कि इस तरह के अधपके अधिनियमों को चुनावी हड़बड़ी में आननफानन में लागू करने की कोशिश कर के लोगों को एक और आंदोलन करने को सड़क पर उतरने को मजबूर कर के।

जनसंख्या जैसी गंभीर समस्या का समाधान भी गम्भीरता, धैर्य और सूझबूझ से निकालना होगा ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियों को रोटी कपड़ा और मकान जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए विश्व युद्ध नही लड़ना पड़े।

(हॉटलाइन से साभार)

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