Thursday, December 19, 2024

प्रॉम नाईट: पेरेंटिंग ब्लूज

जब से इस प्रॉम नाईट के सवाल का गोला दागा गया है, क़सम से जितनी भी अंग्रेजी गालियां आती हैं सब दे डाली हैं उन सब हिंदी फिल्मों को जिनमे प्रॉम नाइट्स का फिल्मांकन ऐसे महिमा मंडित कर के किया गया है जैसे चार धाम यात्रा या फिर कुम्भ का स्नान हो, कि जो नहाये वो ही पार,और  बाकियों की तो जैसे ज़िन्दगी ही बेका

इन मुए अंग्रेजी स्कूलों और अंग्रेज़ी तालीम को आज तक इतना नहीं कोसा होगा जितना पिछले दो चार दिनों से कोस रही हूँ, ऐसा नहीं कि अंग्रेजी मीडियम पढाई के विरुद्ध हूँ या कोई खुन्नस है, खुद भी इंग्लिश मीडियम से ही पढ़ी हूँ और अंग्रेजी की उपयोगिता और महत्व को बखूबी समझती हूँ, मगर जब से इस प्रॉम नाईट के सवाल का गोला दागा गया है, क़सम से जितनी भी अंग्रेजी गालियां आती हैं सब दे डाली हैं उन सब हिंदी फिल्मों को जिनमे प्रॉम नाइट्स का फिल्मांकन ऐसे महिमा मंडित कर के किया गया है जैसे चार धाम यात्रा या फिर कुम्भ का स्नान हो, कि जो नहाये वो ही पार,और  बाकियों की तो जैसे ज़िन्दगी ही बेकार ! नहीं समझे ! अच्छा चलो पूरी कहानी बयां कर दें……..

…… शायद आप में से किसी की राय से हमारी उलझन सरल हो, क्या पता आपके सुझाये रस्ते से हमारा मसला भी हल हो, माजरा ये है की बिटिया रानी ने शनिवार की रात को बड़ा लाड लगाया, फुट मसाज देते हुए फ़रमाया की मम्मा, एक खुशखबरी है, हमारी बाछें खिल गईं, कि हो न हो होनहार बिरवान ने फिर कोई नया तीर मारा है, पढ़ने, गाने, बनाने किसी न किसी क्षेत्र में फिर कुछ न कुछ उखाड़ा है। हमने कहा बताओ ऐसी क्या खुशखबरी है जो श्रवण कुमार बने जाते हो, ऐसे तो बेटा! तुम बिन बात हाथ भी न आते हो। आज कर रहे हो चरणों की सेवा, ऐसी कौन सी चाहिए तुमको मेवा?  बिटिया कुछ सकुचाईं, नज़रें नीचे कर इठलाईं और बोली प्रॉम नाईट के आयोजन का आया है समाचार, बस आपकी मंज़ूरी की है दरकार।

अब तो सवाल दर्द दे जाते है, और हम लिबरल होने के प्रेशर में अनहोनी बातें भी मान जाते हैं, मगर आज अजब कश्मकश है आई , महफूज़ दोनों का होना है लाजिमी, एक उसकी सोच, उसके भरोसे का मसला है दूसरा उसकी सुरक्षा  का मामला है। 

मंज़ूरी की है दरकार….. ये तो थी पूर्व कथा जनाब, अब सुनिए आगे का हाल….  प्रॉम नाईट की खबर सुनते ही हमारा दिल धड़का फिर क्रोध के वशीभूत हो हमारा नथुना फड़का, सोचा ये कैसे संभव है! संस्कारी स्कूल में ये सब नया क्या उपद्रव है। कलेजा थाम जब मांगी तफ्सील (डिटेल्स) , हाय दिल यूं बैठा,जैसे किसी ने हमारी फुल्ली फंक्शनल किडनी की कर ली हो डील। उधर चटखारे ले ले कर बिटिया सब हाल सुनाती रही, कि कैसे तीन तीन लड़कों ने किया है प्रॉम नाईट के लिए प्रोपोज़, इधर मैं दिल ही दिल में सोच रही कि कैसे इस आईडिया को करूँ डिस्पोज़। इधर मैं दिल ही दिल में मना करने के मंसूबे बनाती रही उधर बेटी सामान की लिस्ट गिनवाती रही। बात इतनी सी होती तो शायद फिर भी ठीक था। बात जब ड्रेस कोड पर आई तो मेरी सटक ली, देख के मेरी तनी हुई भृकुटि, बात उसको भी खटक ली। बोली आप नहीं समझोगी, जेनेरशन गैप आखिर आड़े आ ही गया, मेरा लड़की होना मेरी राह में रोड़े अटका ही गया। आप तो कहती थीं के आपकी नज़रों में नहीं है कोई भेद ,लेकिन आज का आपका रवैया देख हो रहा मुझको खेद…..

खेद…… मुझको भी तो होता है तुमको ऐसे रोकने टोकने में, तुम नादान हो अभी तुम्हे क्या बताऊँ कितने सितम हैं लड़की होने में ,कभी टुकड़ों में तो कभी तंदूर में हम मिलते हैं।ज़ख्म दिल के इतनी आसानी से कहाँ सिलते हैं। अभी कल ही की है बात, किसी ने एसिड से किया घात,  दुर्घटना से अच्छी होती है सावधानी, बचपन से सुनी मैंने यही कहानी! काश ये कहानी मैं तुम्हारे लिए बदल पाती, जाओ जहां हो तुम्हारी मर्ज़ी और पहनो जो तुम्हारा मन हो बेटा, काश मैं भी तुमसे ये कह पाती … काश मैं ये अपनी सभी बेटियों से कह पाती! बेटियां तो बेटियां, बेटे भी नहीं महफूज़ जमाना कहाँ जा रहा, देख मैं भी हूँ कंफ्यूज। काश मैं ये दुनिया तुम बच्चों के लिए बेहतर बना पाती। काश……

फिर…… उसकी बात सुनकर अपना ज़माना याद आया, तब कहाँ ऐसे सवाल उठाये जाते थे,तब तो बाक़ायदा फरमान सुनाये जाते थे, ये वो जमाना था साहब, जब थप्पड़ से डर भी लगता था और दर्द भी हुआ करता था।

अब तो सवाल दर्द दे जाते है, और हम लिबरल होने के प्रेशर में अनहोनी बातें भी मान जाते हैं, मगर आज अजब कश्मकश है आई , महफूज़ दोनों का होना है लाजिमी, एक उसकी सोच, उसके भरोसे का मसला है दूसरा उसकी सुरक्षा  का मामला है।

खैर…… ये तो थी मेरे दिल की बात, मगर फिर देखने हैं बिटिया के भी जज़्बात, जाने की दे दी है उसको मंज़ूरी अब करनी है उसकी लम्बी चौड़ी फेहरिस्त भी पूरी । बात वेस्टर्न ड्रेस से जब साड़ी पर उतर आई, समझ लिया मैंने कि अब मेरी शामत पक्की है भाई। बचपन से मेरा साड़ी के मामले में है हाथ तंग हमारा ।  न पहनी न पहनाई, अब लगेगी भारी  चपत, हाय रे महंगाई। कपडे जूते ब्यूटीपार्लर के खर्चे ही नहीं थे खाली, साहब  प्रॉम नाईट की एंट्री फी ने तो हमारी  ईंट से ईंट से बजा ली। ओखली में जब डाला है सर, तो मूसल से क्या डरना, हींग लगे या फिटकिरी, अब रंग है चोखा चढ़ना। लगी हफ़्तों की तैयारी, सुपुत्री की प्रॉम नाईट पर शिरकत की आई बारी,जाना उसको था घबरा मैं रही थी, ऊपर से तो हंसती थी दिल ही दिल में डरती थी। भेजा तो था मगर कलेजे पर ही था हाथ जब तक बच्ची लौट कर न आ गई मेरे साथ। तफ्सील सुनी, तस्वीरें देखीं, बात तब एक समझ में आई, जमाना तो बदल गया है वाकई। जिन बातों के लिए हमें पड़ सकते थे डंडे अब वो मामूली हैं। इतने पर भी बिटिया रानी मुँह फुलाए बैठी हैं कि उनकी सज धज हेप नहीं थी। हमारे फैशन सेन्स को पुरातन कहने में उनको कोई झेंप नहीं थी। हमने मन ही मन सोचा  कि ये भी अच्छी है…. हींग फिटकिरी सब लगे लेकिन रंग…..

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Toshi Jyotsna
Toshi Jyotsna
(Toshi Jyotsna is an IT professional who keeps a keen interest in writing on contemporary issues both in Hindi and English. She is a columnist, and an award-winning story writer.)

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