Saturday, April 27, 2024
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यायावरी की मस्ती

दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया

तुझ से भी दिल-फ़रेब हैं ग़म रोज़गार के

— फैज़

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यायावरी की मस्ती की चर्चा बहुत से लेखकों ने की है लेकिन यदि आपकी यात्रा का संयोग उस दिन का हो जिस दिन बिहार में किसी सरकारी नौकरी की बहाली की परीक्षा हो तो आपकी यात्रास्वतः यातना बन जाती है। कुछ ऐसा ही संयोग इस शुक्रवार दरभंगा से पटना आने के क्रम में मेरे साथ घटित हुआ।

शिक्षक भर्ती परीक्षा के अभ्यर्थियों की भारी भीड़ के कारण पटना जाने वाली किसी बस में बैठने की जगह नहीं थी सो मैं एक बस में खड़े-खड़े यात्रा करने के लिए चढ़ा। यात्रा लगभग तीन-चार घंटेकी होनी थी लेकिन उम्मीद थी कि यात्रा के बीच में कहीं न कहीं बैठने की जगह मिल ही जाएगी।

बस चल रही थी और मैं सीट की आस में बेचारगी भरी दृष्टि से इधर-उधर देख रहा था। मैंने देखा कि अभ्यर्थियों में कुछ रमणियाँ भी हैं और उनको देखने मात्र से कष्ट का अनुभव कुछ कम हुआ।उनकी बातें सुन अपने विद्यार्थी जीवन की यादें ताज़ा हो उठीं और मैं उनकी बातों में शामिल हो गया। पेपर कैसा था? के साथ मैंने उनमें से एक से बातें शुरु की और फिर तो बातों का सिलसिला चलपड़ा।

मैंने फैज़ के शेर :

दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया

तुझ से भी दिल-फ़रेब हैं ग़म रोज़गार के

से अपनी दास्तान शुरु की और उसे नौकरी की समस्याओं से अवगत करवाया। वह कन्या अयोध्या से थी और उसके बात करने के लहजे में अवध की खुशबू थी। वह मधुबनी की अव्यवस्था से लेकरयात्रा में हुए कष्टों की कहानी कहती जा रही थी और मैं मंत्रमुग्ध सा सुनता जा रहा था। अब मुजफ्फरपुर आ चला था और उसके बगल की सीट खाली हो गई थी, जिसपर उसके आग्रह करने पर मैंबैठ गया। बस मुजफ्फरपुर बस पड़ाव से कुछ ही आगे बढ़ी थी कि बस वाले ने किसी दूसरे बस की हाजीपुर तक की सवारी को बस पर चढ़ा लिया। अब बस फिर से खचाखच भर गई।

बस ने अभी रामदयालु चौक पार किया ही था कि भाड़े को लेकर हाजीपुर से चढ़े अभ्यर्थियों और बस के खलासी के बीच घनघोर विवाद हो गया। खलासी ₹150.00 से कम पर मानने को तैयार नथे, अभ्यर्थी ₹100.00 (जो कि उचित किराया है) से ज्यादा देने को तैयार न थे। इसी बीच बस चालक ने बस खड़ी कर दी। अब खलासी कहने लगा कि जिसे भी 150 नहीं देने वो बस से उतर जाए।इस पर एक अभ्यर्थी के अभिभावक, जो पूर्व में जेपी आंदोलन में भाग ले चुके थे, का आंदोलनकारी जज़्बा जाग गया। वो कह उठे कि इतने बड़े समूह में होते हुए आप सब सुशिक्षित लोग किस प्रकारएक खलासी को अपना शोषण करने दे सकते हैं। मामला जो शांति की ओर बढ़ चला था वह उनकी एक पुकार पर फिर उग्र हो गया।

सामान्यतः तीन घंटे में पूरी होने वाली यात्रा के शुरु हुए लगभग तीन घंटे बीत जाने के बाद भी हमने अब तक लगभग आधी दूरी ही तय की थी। मनोनुकूल सहयात्री मिल जाने के कारण यह विलंबमुझे उतना नहीं खल रहा था। फिर भी खड़ी बस से मेरी सहयात्री परेशान हो रही थी और उसके मनोभावों से साम्य बनाए रखने के लिए मुझे भी नाराज़गी का अभिनय करना पड़ रहा था। समय बीतनेके साथ भीड़ अति उग्र हो गई थी और मेरी समझ में मार के डर से खलासी उचित भाड़ा लेने पर तैयार हो गया और बस किसी तरह फिर से चली।

केशव केशन अस करी जस अरिहूं न कराहिं,

चंद्रवदन मृगलोचनी ‘बाबा’कहि-कहि जाहिं।

अपनी बातें सुनाती हुई वो कभी पर्याप्त बहाली न निकालने के कारण योगी सरकार नाराज़ होती तो कभी राम मंदिर के शीघ्र पूरे होने की आस पर खुश। मैं सामान्यतः मोदी-योगी के विरुद्ध कुछ भीनहीं सुन पाता लेकिन जब कहने वाला आपको अच्छा लगता है तो उसकी कही कोई बात आपको बुरी नहीं लगती। ऐसे में मैं सभी बातों में उसका समर्थन करता रहा। मेरे न चाहने पर भी पटना आ हीगया और हम एक ही ऑटो से अगमकुआं से पटना जंक्शन तक आए। ऑटो से उतरने के बाद उसने कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिए थैंक यू अंकल कहा…

मेरे मन में महाकवि केशवदास की ये पंक्तियां घूमने लगीं और मैं उनके दर्द में शरीक हो गया :

केशव केशन अस करी जस अरिहूं न कराहिं,

चंद्रवदन मृगलोचनी ‘बाबा’कहि-कहि जाहिं।

(केशव कवि कहते हैं कि मेरे केशों ने मेरा जितना अहित किया है उतना कोई शत्रु भी नहीं करेगा।

चन्द्र के समान उज्ज्वल बदन वाली मृगनैनियाँ मुझे बाबा कह कर जा रही हैं।)

 

मेरे मामले में केश के सफेद होने की जगह न होना कारण था उनके द्वारा मुझे अंकल कहे जाने का।

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