Thursday, May 2, 2024
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योग के आयाम: मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार

हमारे अंतःकरण में समाहित मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार हमारी कमजोरियाँ नहीं अपितु आध्यात्मिक पथ के साधन हैं| इनकी शक्तियों का सदुपयोग ही जीवन की उपलब्धि है| श्री दुर्गा सप्तशती में श्लोक आता है —

” मनोबुद्धिरहंकारा चित्तरूपा चिता चितिः

सर्वमन्त्रमयी सक्ता सत्यआनन्दस्वरूपिणी ”

हे! सत्यआनन्दस्वरूपिणी माँ! मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार रूपी मंत्रों के साम्राज्य की जो शक्ति है वो आप ही हमारी चित्ति शक्ति हैं|

” अहंकारं मनो बुद्धिं रक्षेन्में धर्मधारिणी ”

हे धर्मधारिणी माँ! आप हमारे मन, बुद्धि और अहंकार की रक्षा कीजिए|

अर्थात्—- रक्षा किसकी करते हैं? अमुल्य सम्पत्ति की और ये चारों हमारे अनमोल धन हैं जो ईश्वर प्रदक्त हैं|

— सं. योगप्रिया (मीना लाल)

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